सुपर साइकिल में इंफ्रा सेक्टर, Nifty के मुकाबले मिला डबल रिटर्न; इन प्रोजेक्टस ने दिया बूस्टर डोज
भारत कई साल के इंफ्रा सुपर-साइकिल में जा रहा है. इंफ्रास्ट्रक्चर एग्जीक्यूशन के लिए मार्केट हाई बीटा बनाए रख सकता है. इंजीनियरिंग, कंस्ट्रक्शन, इंडस्ट्रियल्स, सीमेंट, पावर इक्विपमेंट और लॉजिस्टिक्स में कमाई की विजिबिलिटी मजबूत बनी हुई है. आइए इसे विस्तार से समझते हैं.
Infrastructure Capex Cycle: भारतीय शेयर बाजार 14 महीने बाद 27 नवंबर को अपने लाइफटाइम हाई पर पहुंचा. इस बीच स्मॉलकेस पर इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स ने इंफ्रास्ट्रक्चर इंडेक्स पर भरोसा दिखाया है. उनका कहना है कि भारत कई साल के इंफ्रा सुपर-साइकिल में जा रहा है. मैनेजरों ने कहा कि सरकारी खर्च अभी भी मुख्य वजह बना हुआ है, लेकिन प्राइवेट कैपेक्स रिवाइवल, जिसे PLI स्कीम, ग्लोबल सप्लाई-चेन में बदलाव और मैन्युफैक्चरिंग इंसेंटिव से मदद मिली है, इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर की ग्रोथ को मजबूती देता है. उनका मानना है कि इंफ्रास्ट्रक्चर एग्जीक्यूशन के लिए मार्केट हाई बीटा बनाए रख सकता है. इंजीनियरिंग, कंस्ट्रक्शन, इंडस्ट्रियल्स, सीमेंट, पावर इक्विपमेंट और लॉजिस्टिक्स में कमाई की विजिबिलिटी मजबूत बनी हुई है. आइए इसे विस्तार से समझते हैं.
निफ्टी के मुकाबले डबल रिटर्न
मैनेजर्स का कहना है कि इंफ्रास्ट्रक्चर इक्विटीज 2023-2025 में डिफेंसिव से हाई-बीटा, हाई-अल्फा सेक्टर में बदल गई हैं. निफ्टी इंफ्रास्ट्रक्चर इंडेक्स ने पिछले 1 साल में 14.5 फीसदी, 3 साल में 82.8 फीसदी और 5 वर्षों में 181.2 फीसदी के रिटर्न के साथ, लगातार निफ्टी 50 से बेहतर परफॉर्म किया है. निफ्टी 50 ने इसी समय में 10.5%, 41.5% और 100.3% का रिटर्न दिया. पिछले तीन साल में निफ्टी इंफ्रास्ट्रक्चर इंडेक्स ने निफ्टी 5O का लगभग दोगुना रिटर्न दिया है. उन्होंने बताया कि इंफ्रा में हर 1 रुपये के कैपेक्स का GDP पर लगभग 2.5-3.0 रुपये का असर पड़ रहा है.
इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बढ़ने की उम्मीद
स्मॉलकेस के इन्वेस्टमेंट मैनेजर और लोटसड्यू के फाउंडर अभिषेक बनर्जी ने कहा, ‘आने वाले साल में भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट काफी बढ़ने की उम्मीद है और InvITs 2030 तक करीब 25 लाख करोड़ रुपये के एसेट्स मैनेज कर सकते हैं. यह बढ़ोतरी अनुमानित, कॉन्ट्रैक्ट-बेस्ड रेवेन्यू स्ट्रीम पर आधारित है, जो आमतौर पर लगभग 10–12% का प्री-टैक्स यील्ड और लगभग 7–9% का पोस्ट-टैक्स रिटर्न देते हैं, जो आमतौर पर कई पारंपरिक फिक्स्ड-इनकम इंस्ट्रूमेंट्स से अधिक होता है.
हालांकि, मार्केट की अनिश्चितता के समय इन एसेट्स में कुछ समय के लिए उतार-चढ़ाव हो सकता है, लेकिन उनकी लगभग 10.2 फीसदी की हिस्टोरिकल वोलैटिलिटी इक्विटी मार्केट के 15.4% से काफी कम है, जिससे तुलनात्मक रूप से बेहतर परफॉर्मेंस मिलता है. इक्विटी से सिर्फ 0.42 के कोरिलेशन के साथ, इंफ्रास्ट्रक्चर प्लेटफॉर्म यूटिलिटीज की तरह ही काम करते हैं, जिससे लगातार, महंगाई से जुड़ी इनकम होती है, जिस पर आर्थिक उतार-चढ़ाव का ज्यादातर असर नहीं होता है.
कैपिटल प्रोजेक्ट्स पर सरकारी
भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर 2025 में एक अहम मोड़ पर है, जिसमें कैपिटल प्रोजेक्ट्स पर सरकारी खर्च 11.21 लाख करोड़ रुपये या GDP का 3.1 फीसदी से ज्यादा होगा, साथ ही नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन जैसी पॉलिसी और इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट के जरिए प्राइवेट सेक्टर की बढ़ती भागीदारी भी होगी. यह तेजी पारंपरिक और नए क्षेत्रों में फैली हुई है, जिससे 2025 में 16.87 लाख करोड़ रुपये की वैल्यू वाले मार्केट के 2030 तक 8 फीसदी कंपाउंड सालाना ग्रोथ रेट से बढ़कर 24.82 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का रास्ता तैयार हो रहा है. इन्वेस्टर्स के लिए, ये डेवलपमेंट कंस्ट्रक्शन, लॉजिस्टिक्स और एनर्जी स्टॉक्स में मौकों का संकेत देते हैं, साथ ही जॉब क्रिएशन और इकोनॉमिक मल्टीप्लायर के जरिए बड़े पैमाने पर मार्केट का भरोसा बढ़ाते हैं.
हाईवे और सड़कें
भारत का रोड इंफ्रास्ट्रक्चर कैपेक्स साइकिल की रीढ़ बना हुआ है, नेशनल हाईवे नेटवर्क 146,342 km तक पहुंच गया है और सालाना कंस्ट्रक्शन लगातार 10,000–11,000 km से ज़्यादा हो रहा है, जिसे भारतमाला, एक्सप्रेसवे कॉरिडोर और NHAI के मजबूत काम से मदद मिल रही है. HAM, PPP, TOT और तेजी से बढ़ रहे रोड InvITs के जरिए फंडिंग की संभावना स्थिर है, जिनसे 70,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई हुई है. बढ़ते ऑर्डर बुक, अनुमानित सरकारी कैपेक्स और विजन 2047 के तहत एक बड़ी पाइपलाइन से EPC/HAM डेवलपर्स, सीमेंट और स्टील सप्लायर्स, इक्विपमेंट OEMs, टोल ऑपरेटर्स और एसेट मैनेजर्स को फायदा हो रहा है.
एयरपोर्ट और एविएशन
भारत का एविएशन इकोसिस्टम दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रहा है. 2014 में ऑपरेशनल एयरपोर्ट 74 से बढ़कर 2025 में 163+ हो जाएंगे, जिसे UDAN, ग्रीनफील्ड विस्तार और AAI एसेट मोनेटाइजेशन का सपोर्ट मिला है. पैसेंजर ट्रैफिक में तेजी से बढ़ोतरी हुई है, जो देश में 150 मिलियन और कुल मिलाकर 202 मिलियन (अप्रैल-सितंबर 2025) को पार कर गया है. 2047 तक 350-400 एयरपोर्ट के लॉन्ग-टर्म टारगेट, बढ़ते नॉन-एयरो रेवेन्यू, एयरपोर्ट प्राइवेटाइजेशन और कार्गो/MRO ग्रोथ के साथ, एयरपोर्ट ऑपरेटर, टर्मिनल सर्विस, रिटेल कंसेशन, फ्यूल सप्लायर और मेंटेनेंस इकोसिस्टम के लिए मौके बढ़ रहे हैं.
सीपोर्ट्स, मैरीटाइम और लॉजिस्टिक्स
सागरमाला से जुड़े सुधारों ने टर्नअराउंड टाइम कम किया है और थ्रूपुट बढ़ाया है, FY24 में बड़े पोर्ट्स ने 795 MT हैंडलिंग की और 2025 तक पूरे भारत में कैपेसिटी 3,300 MTPA से अधिक करने का टारगेट है. लॉजिस्टिक्स, जो 2024 में 317 अरब डॉलर का मार्केट था, मल्टीमॉडल इंटीग्रेशन, मैकेनाइजेशन, कोस्टल शिपिंग और DFC-लिंक्ड एफिशिएंसी गेन पर 2029 तक 484 अरब डॉलर (CAGR 8.8%) तक पहुंचने का अनुमान है. पोर्ट-लेड इंडस्ट्रियलाइजेशन, 25,000 करोड़ रुपये का मैरीटाइम फंड और लॉजिस्टिक्स पार्क पोर्ट ऑपरेटर्स, कंटेनर टर्मिनल्स, इंटीग्रेटेड लॉजिस्टिक्स फर्म्स, वेयरहाउसिंग, कोल्ड-चेन और हिंटरलैंड ट्रांसपोर्ट प्लेयर्स के लिए संभावनाओं को बढ़ा रहे हैं.
एनर्जी और पावर (रिन्यूएबल्स सहित)
भारत का पावर सेक्टर एक बड़े बदलाव से गुजर रहा है, जिसकी कुल कैपेसिटी 476 GW (जून 2025) है, जिसमें 180 GW+ रिन्यूएबल्स शामिल हैं, और 2030 तक 500 GW नॉन-फॉसिल का टारगेट है. बढ़ती डिमांड (6–7% CAGR), पीक लोड लगभग 249 GW, और ट्रांसमिशन कॉरिडोर, स्मार्ट ग्रिड, हाइब्रिड पार्क और स्टोरेज सिस्टम में इन्वेस्टमेंट से लंबे समय के ऑर्डर की विजिबिलिटी बन रही है. PLI स्कीम, RE पार्क और शुरुआती हाइड्रोजन पायलट के जरिए पॉलिसी सपोर्ट रिन्यूएबल EPC, टर्बाइन/इन्वर्टर बनाने वालों, ट्रांसमिशन यूटिलिटीज और बैटरी-स्टोरेज डेवलपर्स के लिए ग्रोथ को बढ़ा रहा है.
डेटा सेंटर और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर
भारत की डेटा-सेंटर कैपेसिटी 350 MW (2019) से बढ़कर 1,030 MW (2024) हो गई है और 2025 तक 1,700 MW तक पहुंचने की राह पर है, जिसे क्लाउड अपनाने, AI/ML वर्कलोड, डेटा लोकलाइज़ेशन और हाइपरस्केलर विस्तार से मदद मिल रही है. यह सेक्टर, जिसकी वैल्यू 2025 में 89,482 करोड़ रुपये थी, 2030 तक दोगुनी होने का अनुमान है, जिसमें बिजली की बढ़ती मांग (8 GW तक पहुंचने की उम्मीद), ज़्यादा इस्तेमाल और राज्यों के मजबूत इंसेंटिव शामिल हैं. इससे फ़ायदा उठाने वालों में DC डेवलपर्स, रियल-एस्टेट प्लेटफॉर्म, पावर और कूलिंग सप्लायर, फाइबर प्रोवाइडर और इंटरकनेक्ट इकोसिस्टम शामिल हैं.
ग्रीन हाइड्रोजन और इमर्जिंग फ्यूल
2030 तक 5 MTPA के टारगेट के साथ, भारत का नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन स्टील, रिफाइनरी और फर्टिलाइजर में शुरुआती इन्वेस्टमेंट, इलेक्ट्रोलाइजर मैन्युफैक्चरिंग और इंडस्ट्रियल पायलट प्रोजेक्ट को तेज़ कर रहा है. 19,744 करोड़ रुपये के सपोर्ट और 125 GW रिन्यूएबल एनर्जी से जुड़ी पाइपलाइन के साथ, यह सेक्टर पायलट प्रोजेक्ट से बड़े लेवल पर जा रहा है, जिसमें 158 प्रोजेक्ट (11.2 MMTPA) पहले से ही पाइपलाइन में हैं. 30–40 अरब डॉलर का लॉन्ग-टर्म पोटेंशियल और यूरोप/एशिया में एक्सपोर्ट से जुड़े मौके इलेक्ट्रोलाइजर बनाने वालों, रिन्यूएबल हाइड्रोजन डेवलपर्स, कैटलिस्ट सप्लायर्स और पोर्ट-बेस्ड एक्सपोर्ट नोड्स को कई वर्षों की ग्रोथ के लिए तैयार करते हैं.
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