NSE का फरमान, थर्ड-पार्टी लोन नहीं बेच सकते शेयर ब्रोकर, रिसर्च एनालिस्ट रजिस्ट्रेशन भी नहीं देता छूट
NSE ने स्टॉक ब्रोकर्स को बैंकिंग लोन प्रोडक्ट्स के वितरण से रोक दिया है. नए सर्कुलर के तहत ब्रोकर्स केवल MTF और सीमित फंडिंग विकल्प ही दे सकेंगे. इस कदम का मकसद कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट रोकना और निवेशकों को मिस-सेलिंग व अत्यधिक लीवरेज के जोखिम से बचाना है.
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (National Stock Exchange of India) ने स्टॉक ब्रोकर्स के लिए एक सख्त नियामकीय सीमा तय करते हुए उन्हें थर्ड-पार्टी बैंकिंग लोन प्रोडक्ट्स के वितरण या ऑफर से साफ तौर पर रोक दिया है. NSE ने यह निर्देश एक ताजा सर्कुलर के जरिये जारी किया है जिसमें जून 2025 में जारी थर्ड-पार्टी प्रोडक्ट डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेमवर्क को और स्पष्ट किया गया है. एक्सचेंज ने कहा कि उसके संज्ञान में ऐसे मामले आए हैं, जहां ट्रेडिंग मेंबर्स बैंकिंग लोन प्रोडक्ट्स बेचते पाए गए, जो मौजूदा नियमों के दायरे से बाहर है.
क्या है सर्कुलर में
सर्कुलर में NSE ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि स्टॉक ब्रोकर्स को सेबी द्वारा समय-समय पर अनुमति दिए गए लेंडिंग प्रोडक्ट्स के अलावा किसी भी अन्य बैंकिंग लोन के वितरण की इजाजत नहीं है. फिलहाल, ब्रोकर्स को सिर्फ Margin Trading Facility (MTF) और T+1+5 फंडिंग जैसे सीमित प्रोडक्ट्स ही ऑफर करने की अनुमति है. इसके अलावा होम लोन, पर्सनल लोन, व्हीकल लोन, एजुकेशन लोन और सिक्योरिटीज के बदले लोन जैसे सभी बैंकिंग प्रोडक्ट्स पर रोक लगा दी गई है. NSE ने यह भी साफ किया कि चाहे कोई ब्रोकरेज फर्म रिसर्च एनालिस्ट जैसी अतिरिक्त रजिस्ट्रेशन रखती हो, फिर भी ट्रेडिंग मेंबर के तौर पर उस पर यह नियम पूरी तरह लागू होंगे.
क्यों पड़ी किसकी जरूरत
इस स्पष्टीकरण की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि जुलाई 2025 में सेबी (Securities and Exchange Board of India) द्वारा जारी FAQ के बाद कुछ मार्केट प्लेयर्स ने नियमों की अलग-अलग व्याख्या शुरू कर दी थी. कुछ ब्रोकर्स ने ड्यूल रजिस्ट्रेशन या ग्रुप-लेवल स्ट्रक्चर के जरिये बैंकिंग लोन बेचने को जायज ठहराने की कोशिश की. NSE ने अब साफ कर दिया है कि एक्सचेंज-लेवल दायित्व किसी अतिरिक्त रजिस्ट्रेशन से कमजोर नहीं पड़ते हैं.
निवेशकों पर असर
निवेशकों के लिहाज से यह कदम प्रिवेंटिव और प्रोटेक्टिव माना जा रहा है. अगर ब्रोकर्स ट्रेडिंग के साथ-साथ लोन भी बेचने लगें, तो कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट और मिस-सेलिंग का खतरा बढ़ जाता है. इससे निवेशक अनजाने में ज्यादा लीवरेज लेने के लिए प्रेरित हो सकते हैं. NSE का यह कदम ट्रेडिंग और उधारी के बीच साफ दूरी बनाए रखने की दिशा में है.
ब्रोकर्स के लिए इसका मतलब
ब्रोकर्स के लिए इसका मतलब है कि उन्हें अपने बिजनेस मॉडल, ऐप इंटरफेस और बैंकों/एनबीएफसी के साथ किए गए टाई-अप्स की दोबारा समीक्षा करनी होगी. हालांकि इससे कुछ अतिरिक्त रेवेन्यू पर असर पड़ सकता है, लेकिन लंबी अवधि में यह कदम कम्प्लायंस रिस्क कम करेगा.
Latest Stories
डॉली खन्ना के पोर्टफोलियो वाला यह स्मॉलकैप शेयर 24 दिसंबर को एक्स-डिविडेंड डेट पर होगा ट्रेड, क्या आपके पास है यह स्टॉक?
NBFC सेक्टर के इस पेनी शेयर ने छुआ अपर सर्किट, 1 रुपये से भी कम है कीमत, लगभग डेट फ्री है कंपनी
Market Outlook Dec 24: कंसोलिडेशन फेज में रह सकता है निफ्टी, 26400 अगला टारगेट
