ऑनलाइन बेटिंग ऐप्स पर सख्ती की मांग: सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जनहित याचिका, केंद्र को नोटिस
ऑनलाइन गेमिंग और फैंटेसी स्पोर्ट्स की दुनिया अब केवल खेल नहीं रही. इसके पीछे क्या चल रहा है, किसे इसका फायदा और किसे नुकसान हो रहा है. इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने अब देश की सबसे बड़ी अदालत सामने आई है. एक याचिका ने सबका ध्यान खींचा है.
भारत में ऑनलाइन गेमिंग और फैंटेसी स्पोर्ट्स की बढ़ती लोकप्रियता के बीच अब इस सैक्टर की नैतिकता और वैधानिकता पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं. करोड़ों युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने वाले इन ऐप्स के पीछे का सच अब सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तक पहुंच चुका है.
शुक्रवार यानी 23 मई को सर्वोच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई, जिसमें “गैरकानूनी” बेटिंग ऐप्स पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी. यह याचिका एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा दायर की गई है, जिन्होंने स्वयं को वैश्विक स्तर पर शांति दूत बताया है. याचिका में दावा किया गया है कि ये सट्टेबाजी ऐप्स भारत के युवाओं को गुमराह कर रहे हैं और लोकतंत्र की नींव को हिला रहे हैं. याचिकाकर्ता ने इसे लाखों नागरिकों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक बताया.
तेलंगाना की घटनाओं का हवाला
याचिका में मार्च 2025 में तेलंगाना में दर्ज एफआईआर का हवाला दिया गया है, जिसमें 25 बॉलीवुड सेलिब्रिटी, क्रिकेटर और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर पर जनता को भटकाने और सट्टा ऐप्स का प्रचार करने का आरोप है. इसके अलावा, ऑनलाइन सट्टेबाजी में कर्ज के चलते 24 लोगों की आत्महत्या का भी उल्लेख किया गया है.
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि यह पूरा कारोबार फैंटेसी स्पोर्ट्स और स्किल-बेस्ड गेमिंग के नाम पर चल रहा है, लेकिन असल में यह एक प्रकार का जुआ ही है. उन्होंने 1867 के पब्लिक गैम्बलिंग एक्ट का हवाला देते हुए कहा कि भारत में इस प्रकार की गतिविधियां अवैध हैं और इन्हें केंद्रीय कानून के तहत विनियमित किया जाना चाहिए.
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केंद्र सरकार को नोटिस, राज्यों को राहत
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और एन.के. सिंह की पीठ ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है, हालांकि फिलहाल राज्य सरकारों को नोटिस जारी नहीं किया गया है. अब सबकी निगाहें इस तरफ है कि सरकार इस नोटिस का क्या जवाब देती है.