कभी जिगरी दोस्त थे ईरान-इजरायल, अमेरिका को दिया था चकमा; फिर किसकी लगी नजर कि एक दूसरे को मिटाने पर तुले

ईरान और इजरायल के बीच कभी गहरी दोस्ती थी, लेकिन अब वे दुश्मन बन गए हैं. 1948 में इजरायल के निर्माण के बाद ईरान इजरायल के लिए आगे आया. दोनों देशों ने अमेरिका को ठेंगा दिख कर, साथ मिलकर इराक के खिलाफ लड़ाई लड़ी. लेकिन फिर सत्ता परिवर्तन ने सब बदल दिया.

इजरायल और ईरान थे कभी दोस्त

Iran and Israel Friendship: ईरान और इजरायल की लड़ाई चरम पर पहुंच चुकी है, इसमें अमेरिका भी कूद चुका है. दोनों देश के पास इतनी सैन्य ताकत है कि ये युद्ध लंबे समय तक खींच सकता है. दोनों एक दूसरे पर लगातार हमले कर रहे हैं, कोई भी रुकने का नाम नहीं ले रहा. लेकिन ऐसा हमेशा से नहीं था. एक समय ऐसा भी था जब ईरान और इजरायल दोस्त थे. दोस्त क्या ये दोनों जिगरी थे. इतने जिगरी कि दोनों ने साथ मिलकर लड़ाई लड़ी वो भी अमेरिका को ठेंगा दिखाकर. लेकिन फिर ईरान में क्रांति हो गई जिसके बाद सब बदल गया. चलिए आपको इस बदलाव के पहले की कहानी बताते हैं. दोनों देशों में कितनी गहरी दोस्ती थी. दोनों एक दूसरे के लिए क्या-क्या नहीं करते थे और फिर क्या बनी ब्रेक की वजह?

कभी ईरान ने दी थी इजरायल को मान्यता

इस्लामिक देशों के बीच साल 1948 में इजरायल एक नया देश बना तो पश्चिम एशिया के ज्यादातर मुस्लिम बहुल देशों ने उसे मान्यता देने से इनकार कर दिया. लेकिन फिर एक चौंकाने वाला बयान आया. इस्लामिक देश ईरान और तुर्की ने इजरायल को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी. ये दोनों देश शिया बहुल देश हैं. लेकिन ये कैसे संभव हुआ?

ईरान-इजरायल ही नहीं ईरान-अमेरिका भी थे दोस्त

ईरान ने अचानक से इजरायल को इसलिए मान्यता दे दी क्योंकि इसके पीछे अमेरिका था. ईरान अमेरिका का भी दोस्त था.

तब ईरान में शाह मोहम्मद रजा पहलवी का शासन था. शाह के दौर में ईरान अमेरिका का क्षेत्रीय साझेदार बन गया था.

इसके बाद आने वाले कुछ दशकों में इजरायल के प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियन ने गैर-अरब देशों से दोस्ती की कोशिश की. इसके तहत उन्होंने ईरान, तुर्की और इथियोपिया को अहम भागीदार बनाया.

ईरान इजरायल सहयोगी

जब इजरायल अरब देशों के साथ युद्ध में उलझ गया था तब अरब देशों ने इजरायल का बहिष्कार कर दिया था. तब इजरायल को कच्चा तेल देने वाला ईरान था. ईरान में व्यापार और बुनियादी ढांचे के विकास में इजरायल का योगदान भी रहा.

कभी मिलकर लड़ी लड़ाई

1960 के दशक में इजरायल और ईरान दोनों के लिए इराक सिरदर्द बन गया था. ईरान के लिए तो इराक की सरकार उसकी सुरक्षा के लिए खतरा तक बन गई थी. तब ईरान और इजरायल के बीच सीक्रेट पार्टनरशिप हुई. इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद और ईरान की सीक्रेट पुलिस SAVAK, दोनों ने इराक की सरकार को कमजोर करने की योजना बनाई. इसके लिए दोनों ने इराकी सरकार के विद्रोही कुर्द को मजबूत किया. कुर्द समूह ने इराकी सरकार को कमजोर किया. इस मिशन के दौरान इजरायल और ईरान और करीब आए गए थे. बता दें तब इराक को अमेरिका का सपोर्ट था.

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फिर ईरान की सत्ता ने सब बदल दिया

जब दोनों इतने गहरे दोस्त थे तो आज इतनी दुश्मनी कैसे बढ़ गई. दरअसल सत्ता परिवर्तन ने सब बदल दिया. जब तक शाह थे तब तक सब कुछ सही चल रहा था. फिर 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति आई. शाह को सत्ता से हटाया गया और अयातुल्ला खुमैनी के नेतृत्व में इस्लामी गणराज्य की स्थापना हुई और यहीं से ईरान और इजरायल के रिश्तों में बुनियादी बदलाव आ गया.

हालांकि इस संबंध में दरार पहले से दिख रही थी. उस समय भी ईरान में कुछ इस्लामी तत्व थे जो फिलिस्तीनियों के समर्थन में थे, उनके लिए फंड इकट्ठा कर रहे थे. 1979 के बाद तो रिश्ते पूरी तरह टूट गए. ईरान ने इजरायली पासपोर्ट मानने से इनकार कर दिया और अपने नागरिकों को अधिकृत फिलिस्तीन यानी इजरायल जाने से मना कर दिया.

इजरायल को इस्लाम का दुश्मन और छोटा शैतान कहा गया.

फिर ईरान ने पहले लेबनान के हिजबुल्लाह को समर्थन दिया. बाद में यमन में हूती विद्रोहियों और गाजा में हमास को भी समर्थन दिया. ईरान ने केवल फंडिंग ही नहीं, बल्कि ट्रेनिंग और हथियार भी देने शुरू किए ताकि ये इजरायल पर हमला कर सकें. ये दुश्मनी बढ़ती चली गई जिसका नतीजा आज युद्ध के रूप में दिख रहा है.