कौन है वो ईरानी शख्स, जो इजरायल के हमले से है खुश, चाहता है खामेनई का अंत, बोला- आ गया हमारा समय
Reza Shah Pahlavi-Iran: ईरान की मौजूदा हुकूमत के खिलाफ गूंजने वाली आवाज रेजा शाह पहलवी की है. ईरान में रेजा शाह पहलवी कोई आम नाम नहीं है, क्योंकि इसके पुरखों ने इस मुल्क पर लंबे समय तक राज किया है. इसके पीछे की कहानी को समझते हैं.
Reza Shah Pahlavi-Iran: अतीत का फारस और पर्शिया… आज का ईरान है. ईरान सुर्खियों में है, क्योंकि इजरायल से वो जंग लड़ रहा है. दोनों देश एक दूसरे पर ताबड़तोड़ हमले कर रहे हैं. लेकिन इस बीच ईरान के भीतर से अपनी सरकार के खिलाफ एक आवाज गूंजी है. ईरान की मौजूदा हुकूमत के खिलाफ गूंजने वाली आवाज रेजा शाह पहलवी की है. ईरान में रेजा शाह पहलवी कोई आम नाम नहीं है, क्योंकि इसके पुरखों ने इस मुल्क पर लंबे समय तक राज किया. ईरान की सत्ता पर जब खुमैनी के कब्जे से पहले, रेजा शाह पहलवी के पिता शाह मोहम्मद रेजा पहलवी ईरान के राजा हुआ करते थे. फिर कैसे उनके हाथों से ईरान छीन गया और उन्हें दर-बदर होना बड़ा, खुमैनी ने कैसे ईरान के लोगों को अपने पाले में किया और वहां के सर्वोच्च नेता बन गए. इसके पीछे की कहानी को समझते हैं.
कौन थे ईरान के रेजा शाह?
प्रथम विश्व युद्ध के बाद पर्शिया को ब्रिटेन अपना संरक्षित स्टेट बनाना चाहता था, लेकिन पर्शियन सेना के धुरंधर लड़कों को सामने उसकी मंशा कामयाब नहीं हो पाई. इन धुरंधर लड़ाकों में से एक था रेजा शाह. रेजा शाह ने धीरे-धीरे सेना के भीतर खुद को मजबूत किया अपना कद बढ़ाया. सबसे बड़ी बात की अपनी पहचान स्थापित की. कहा जाता है कि रेजा शाह पर अपनी ईरानी पहचान को मजबूत करने का जुनून सवार था और इसी फेहरिस्त में उसने अपने नाम में पुरानी भाषा पहलवी को जोड़ा. फिर साल 1925 में ‘शाह पहलवी’ की उपाघी ली और यहीं से पहलवी राजशाही की नींव पड़ गई.
पर्शिया कैसे बन गया ईरान?
रेजा शाह ने साल 1941 तक पर्शिया पर राजा किया है. इस साल की अवधि में पर्शिया, ईरान बन गया और यह बड़ा बदलाव साल 1935 में हुआ. इसके पीछे की कहानी ये है कि पर्शिया के लोग पहले इस इलाके को ईरान ही बुलाते थे. शाह ने इस नाम को मुल्क के नाम के साथ जिंदा कर दिया. फिर बुर्के और हिजाब पर पाबंदी लगाकर ईरान को वेस्टर्न और महिला समर्थक मुल्क के रूप में पेश करने की कोशिश की.]
मोहम्मद रेजा के हाथ में आई सत्ता
रेजा शाह के बाद उनके बेटे मोहम्मद रेजा पहलवी ईरान के राजा बने. करीब 53 साल तक बाप बेटे ने राज किया. 1925 से 1953 तक एक संवैधानिक राजतंत्र के रूप में. इसे ऐसे समझें, एक ईरान के प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री और एक सुप्रीम कमांड. रेजा शाह ने अपने पास हमेशा सुप्रीम कमांड का पद रखा.
आधुनिकरण का दौर पड़ा भारी
साल 1953 में एक बार फिर से ईरान में बड़े बदलाव का दौर शुरू हुआ. इस बार उसका नेतृत्व मोहम्मद रेजा पहलवी कर रहे थे. साल 1960 में ईरान में श्वेत क्रांति हुई. जमीन से जुड़े कानूनों में बदलाव किया गया. शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े सुधार लागू किए गए. महिलाओं का अधिकार बढ़ा. ईरान में औद्योगिकरण हुआ.
नायक की तरह सामने आए खुमैनी
देखने में ये सारी चीजें ईरान में बदलाव के लिए हुईं, लेकिन इसका एक नेगेटिव इंपैक्ट भी पड़ा. ईरान में आर्थिक असमानता बढ़ गई. अमीर और अमीर होने लगे. सत्ता के प्रति असंतोष भी लोगों के बीच पनपने लगा और इस बीच बेरोजगारी बढ़ी और रही सही कसर महंगाई ने आसमान छूकर पूरा कर दिया. ईरान के लोगों के बीच सत्ता के खिलाफ जब असंतोष पनपा, तो फिर भीड़ से एक नायक निकला. नाम अयातुल्लाह रूहुल्लाह खुमैनी.
सरकार के खिलाफ विरोध
साल 1964 में ईरान की सरकार के विरोध में आवाज बुलंद हुई, जिसका नेतृत्व खुमैनी कर रहे थे. सरकार के खिलाफ उतरी जनता के बीच खुमैनी ने शिया इस्लाम का हवाला दिया. फिर धर्मगुरुओं का साथ मिला. विरोध का आंदोलन और ताकत मिली.
उधर, रेजा शाह पहलवी के संबंध अमेरिका और इजरायल से प्रगाढ़ हो रहे थे. इस बीच 26 अक्तूबर 1964 को खुमैनी ने बड़ा कदम उठा दिया. ईरान में तैनात अमेरिकी सैनिकों मिली कुछ राजनयिक छूट का विरोध किया. ईरान में तैनात ऐसे अमेरिकी सैनिक, जिनके खिलाफ आपराधिक आरोप थे. उनका मुकदमा ईरान की अदालत में नहीं, बल्कि अमेरिकी कोर्ट में चलाया जाना था. खुमैनी इसके विरोध में उतर गए. नवंबर में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 6 महीने तक जेल में रखा गया.
मंसूर ने खुमैनी को जड़ा तमाचा
रिहाई के बाद खुमैनी को तत्कालीन प्रधानमंत्री हसन अली मंसूर के सामने माफी मांगने के लिए खड़ा किया गया. खुमैनी ने माफी नहीं मांगी. मंसूर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और उन्होंने खुमैनी को तमाचा जड़ दिया. 2 महीने बाद मंसूर की हत्या हो गई. आरोप खुमैनी के समर्थक गुट पर लगा. इस मामले में 4 लोगों को मौत की सजा दी गई. इस बीच खुमैनी किसी अज्ञात स्थान पर चले गए और 14 साल गायब रहे.
खुफिया टीम से भड़क उठी जनता
इधर मोहम्मद रेजा शाह ने एक खुफिया टीम तैयार की. नाम रखा ‘सवाक’. इस टीम पर अमेरिका के सपोर्ट के आरोप लगे. खुमैनी के गुट ने ईरान के बीच इस बात को पहुंचा दिया और इस तरह से स्थापित की, जैसे ईरान के हालात को बिगाड़ने में सवाक का ही हाथ है. इसके बाद रेजा शाह के खिलाफ गुस्सा भड़क उठा. सड़कों पर प्रदर्शन होने लगे. साल 1978 के अगस्त में आबादान में आगजनी की एक भीषण घटना हुई, जिसमें 450 लोगों की मौत हो गई. अगले महीने सरकार ने मार्शल कानून लगा दिया.
‘ब्लैक फ्राइडे’
8 सितंबर 1978 को तेहरान के ‘जालेह स्क्वायर’ में धार्मिक प्रदर्शन चल रहा था. चूंकि देश में मार्शल कानून लागू था. सवाक जालेह स्क्वायर पर पहुंची और फायर ओपन कर दिया. 100 से अधिक लोग मारे गए. इस तारीख को इतिहास के पन्ने में ‘ब्लैक फ्राइडे’ के नाम से दर्ज किया गया. लोगों में शाह के खिलाफ आग भड़क उठी और रही सही कसर एक अखबार में छपे लेख ने पूरी कर दी.
अखबार के लेख ने दी हवा
‘एत्तेलाआत’ नाम के अखबार ने लिखा- ‘अयातुल्लाह रूहुल्लाह खुमैनी ब्रिटिश एजेंट हैं. वो उपनिवेशवाद की सेवा कर रहे हैं और उनकी ईरानी पहचान पर भी सवाल है’.
इसके बाद ईरान में बवाल में मच गया. पुलिस ने गोलियां चलानी शुरू कर दीं, लाशें गिरने लगीं और ईरान में सबकुछ बदल गया.
रेजा शाह ने छोड़ा ईरान और खुमैनी
1978 के आखिर में सरकार विरोध पर काबू पाने में असफल होने लगी और इस बीच मोहम्मद रेजा शाह पहलवी ने 16 जनवरी 1979 को ईरान छोड़ दिया. फिर 14 साल बाद खुमैनी वापस ईरान लौटे. तेहरान में लाखों लोगों ने उनका जोरदार स्वागत किया. आज के समय में भी हवाई जहाज से उतरते उनकी वो तस्वीर को ऐतिहासिक बताया जाता है.
इस्लामी गणराज्य की स्थापना
खुमैनी के नेतृत्व में ईरान में एक इस्लामी गणराज्य की स्थापना की गई. इसे ही ‘ईरान की इस्लामी क्रांति’ का नाम दिया गया. मार्च 1979 में जनमत संग्रह हुआ और 98 फीसदी मतदाताओं ने इस्लामी गणराज्य में बदलाव के पक्ष में मत दिया. और फिर बना इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान, जिसके खुमैनी सर्वोच्च नेता के रूप में उभरे.
मोहम्मद रेजा शाह के बेटे ने उठाई है आवाज
मोहम्मद रेजा शाह रेजा शाह पहलवी, मोहम्मद रेजा शाह पहलवी के बेटे हैं. वही, मोहम्मद रेजा शाह पहलवी, जो ईरान छोड़कर भाग गए थे. ईरान-इजरायल जंग के बीच रेजा शाह पहलवी ने कहा है कि हमारा समय आ गया है.