इथेनॉल पर एक्स्ट्रा चार्ज को लेकर केंद्र सरकार ने जताई चिंता, हरियाणा-पंजाब-हिमाचल से कहा-फिर से करें विचार
केंद्र सरकार ने पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश द्वारा इथेनॉल पर अतिरिक्त शुल्क लगाने पर चिंता जताई है. पेट्रोलियम मंत्रालय ने इन राज्यों को पत्र भेजकर फैसले पर पुनर्विचार की अपील की है. मंत्रालय का कहना है कि इससे इथेनॉल मिश्रण की लागत बढ़ेगी, जिससे 2025 तक 20 फीसदी और 2030 तक 30 फीसदी मिश्रण लक्ष्य को नुकसान हो सकता है.
Ethanol Policy: भारत सरकार ने पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की राज्य सरकारों द्वारा इथेनॉल पर अतिरिक्त शुल्क लगाए जाने पर चिंता जताई है. केंद्र का कहना है कि इससे इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम को नुकसान हो सकता है और ईंधन की कीमतें बढ़ सकती हैं. यह कदम एनवायरमेंट गोल के भी खिलाफ माना जा रहा है. पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने इन राज्यों को पत्र भेजकर फैसले पर पुनर्विचार की अपील की है. सरकार 2025 तक 20 फीसदी और 2030 तक 30 फीसदी इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य तय कर चुकी है.
तीन राज्यों को भेजा पत्र
हिमाचल, पंजाब और हरियाणा तीनों राज्यों ने इथेनॉल पर अलग-अलग प्रकार के शुल्क लगाए हैं. हिमाचल में कांग्रेस, पंजाब में आम आदमी पार्टी और हरियाणा में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारें हैं. खास बात यह है कि हरियाणा से केंद्र की नीति के समर्थन की उम्मीद थी, फिर भी वहां इसके विपरीत फैसला लिया गया. मंत्रालय ने सभी राज्यों को औपचारिक पत्र भेजकर चेताया है कि यह नीति सरकार के लक्ष्यों में बाधा बन सकती है.
शुल्क से बढ़ेगी लागत
मंत्रालय ने कहा कि राज्यों द्वारा इथेनॉल पर परमिट, लाइसेंस, नवीनीकरण और आयात शुल्क बढ़ाने से इसकी सप्लाई और आवाजाही प्रभावित होगी. इससे इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल की लागत बढ़ेगी और देश के मिश्रण स्तर को नुकसान हो सकता है. यह फैसला ऐसे समय में आया है जब देश इथेनॉल कार्यक्रम को तेजी से आगे बढ़ा रहा है.
केंद्र सरकार ने जताई चिंता
केंद्र का तर्क है कि इथेनॉल पहले से ही जीएसटी के दायरे में आता है, ऐसे में राज्यस्तरीय शुल्क कानूनी और नीति दोनों स्तरों पर समस्या पैदा कर सकते हैं. केंद्र ने यह भी दोहराया कि यह कार्यक्रम न केवल ईंधन आयात को घटाने का जरिया है, बल्कि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती देता है. केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह राज्यों के साथ मिलकर स्वच्छ ऊर्जा और राष्ट्रीय लक्ष्यों की दिशा में काम करना चाहती है. इसीलिए राज्यों से आग्रह किया गया है कि वे शुल्क को या तो वापस लें या उसमें संशोधन करें, ताकि इथेनॉल लक्ष्य बाधित न हो.
उद्योग भी हो रहे प्रभावित
इथेनॉल निर्माण से जुड़े संगठनों ने भी राज्य सरकारों के फैसले का विरोध किया है. उनका कहना है कि कच्चे माल की बढ़ती लागत और तेल कंपनियों द्वारा स्थिर कीमत के चलते पहले ही मुनाफा कम है. ऊपर से राज्य स्तर के शुल्क से प्रोडक्शन कास्ट और रोजगार पर असर पड़ सकता है.