‘सिल्क इंजेक्शन’ से फल-सब्जियों को मिलेगी विटामिन की सीधी डोज, MIT के वैज्ञानिकों ने विकसित की ये नई तकनीक

अमेरिका के वैज्ञानिकों ने खेती के लिए एक नई तकनीक विकसित की है. इसकी मदद से फल और सब्जियों को सीधे जरूरी पोषक तत्व दिए जा सकते हैं, वह भी बिना जमीन या हवा को नुकसान पहुंचाए. यह तकनीक न केवल पैदावार बढ़ा सकती है.

रेशम सुई तकनीक Image Credit: FREEPIK

Vitamins from Silk Injection: अमेरिका के MIT (Massachusetts Institute of Technology) के वैज्ञानिकों ने खेती के लिए एक नई तकनीक विकसित की है. इसकी मदद से फल और सब्जियों को सीधे जरूरी पोषक तत्व दिए जा सकते हैं, वह भी बिना जमीन या हवा को नुकसान पहुंचाए. यह तकनीक न केवल पैदावार बढ़ा सकती है, बल्कि फसलों को अधिक पौष्टिक भी बना सकती है.

कैसे काम करता है यह तकनीक?

अर्थ डॉट काम की रिपोर्ट के मुताबिक, MIT के एसोसिएट प्रोफेसर बेनेडेट्टो मारेली और उनकी टीम ने सिल्क से बनी माइक्रोनीडल्स यानी बेहद बारीक खोखली सुइयों की एक प्रणाली विकसित की है. इन्हें पौधों के डंठल में लगाया जाता है ताकि आयरन, विटामिन B12 और जिंक जैसे जरूरी तत्व सीधे पौधे को दिए जा सकें. ये सुइयां रेशम फाइब्रॉइन से बनी होती हैं, जो मजबूत होने के साथ ही पूरी तरह बायोडिग्रेडेबल है. इसका मतलब है कि यह मिट्टी या पौधे को कोई स्थायी नुकसान नहीं पहुंचाती.

सामान्य छिड़काव से बेहतर है यह तरीका

खेती में अब तक उपयोग होने वाले कीटनाशक या खाद अक्सर हवा में उड़ जाते हैं या जमीन में रिस जाते हैं. इस वजह से केवल थोड़ा सा हिस्सा ही पौधों को मिल पाता है. इसके उलट, सिल्क माइक्रोनीडल्स पौधे की नसों के भीतर जाकर पोषक तत्व पहुंचाती हैं. MIT टीम ने क्लोरोसिस (आयरन की कमी से पत्तियों के पीले पड़ने की बीमारी) से पीड़ित टमाटरों में आयरन इंजेक्ट किया. कुछ ही दिनों में पत्तियां फिर से हरी हो गईं और पौधे को कोई नुकसान नहीं हुआ.

पौधों के अंदर किया जाएगा बायोफॉर्टिफाई

इस टेक्नोलॉजी की मदद से ग्रीनहाउस में टमाटरों के डंठल में सिल्क माइक्रोनीडल्स के जरिए विटामिन B12 इंजेक्ट किया. यह विटामिन सामान्यतः पौधों में नहीं पाया जाता और मुख्यतः मांसाहारी स्रोतों से ही मिलता है. जिसके बाद विटामिन डंठल से होते हुए फल यानी टमाटर तक पहुंच चुका था. इसका मतलब यह है कि पौधों को अंदर से ही बायोफॉर्टिफाई किया जा सकता है, जिससे फल और सब्जियां पहले से ज्यादा पौष्टिक हो जाएंगी.

पौधों का हेल्थ चेकअप भी संभव

यह तकनीक सिर्फ पोषण देने तक सीमित नहीं है. सिल्क माइक्रोनीडल्स पौधे के अंदर से सैप खींचकर विश्लेषण भी कर सकती हैं. MIT की रिसर्च में देखा गया कि टमाटर के पौधे को भारी धातु कैडमियम के संपर्क में लाने के केवल 15 मिनट बाद ही ये सुई यह पहचान गई. इसका मतलब है कि यह तकनीक बीमारी आने से पहले ही चेतावनी दे सकती है.

पैदावार बढ़ाने में सहायक

अगर किसी ग्रीनहाउस में इस तकनीक का इस्तेमाल होता है और इससे सिर्फ 5 फीसदी पैदावार भी बढ़ती है, तो इसकी लागत पहले ही सीज़न में वसूल हो सकती है. रेशम पहले से ही सर्जिकल सुई और दूसरे मेडिकल उपकरणों के लिए बड़े पैमाने पर तैयार किया जाता है. सूई बनाने वाले सांचे कई बार इस्तेमाल किए जा सकते हैं और प्रक्रिया में उपयोग हुआ नमक भी दोबारा प्रयोग में आता है. इस वजह से इसकी निर्माण लागत भी कम है.

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