रबी फसल का रकबा मामूली बढ़ा, गेहूं की बुवाई स्थिर; 8.78 मिलियन हेक्टेयर में हुई रेपसीड-सरसों की खेती
डेटा के अनुसार, 2025-26 रबी सीजन में 26 दिसंबर तक धान की बुवाई पिछले साल की इसी अवधि के 1.30 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 1.49 मिलियन हेक्टेयर हो गई है. पिछले रबी सीजन में चावल 4.47 मिलियन हेक्टेयर में बोया गया था. तिलहन का रकबा पिछले साल से ज्यादा रहा.
चल रहे 2024-25 रबी सीजन में गेहूं की बुवाई 32.26 मिलियन हेक्टेयर पर स्थिर रही, जबकि दालों और तिलहन के तहत रकबा पिछले साल की तुलना में थोड़ा बढ़ा है. गेहूं, जो मुख्य रबी या सर्दियों की फसल है, पिछले साल 32.24 मिलियन हेक्टेयर में बोया गया था. 2023-24 रबी सीजन में गेहूं का कुल रकबा 32.8 मिलियन हेक्टेयर था. गेहूं और अन्य रबी फसलों की बुवाई अक्टूबर में शुरू होती है और कटाई मार्च में शुरू होती है. गेहूं और अन्य प्रमुख रबी फसलों की बुवाई लगभग पूरी हो चुकी है.
धान की बुवाई में इजाफा
डेटा के अनुसार, 2025-26 रबी सीजन में 26 दिसंबर तक धान की बुवाई पिछले साल की इसी अवधि के 1.30 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 1.49 मिलियन हेक्टेयर हो गई है. पिछले रबी सीजन में चावल 4.47 मिलियन हेक्टेयर में बोया गया था.
दालों का रकबा
इस रबी सीजन में अब तक दालों का रकबा 13.34 मिलियन हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जो पिछले साल पूरे रबी सीजन में हासिल किए गए कुल 13.40 मिलियन हेक्टेयर के करीब है. जबकि चना, मसूर और मूंग की बुवाई का रकबा पिछले साल के कुल रकबे से ज्यादा रहा, उड़द की बुवाई पीछे रही. इस सीजन में अब तक मोटे अनाज का रकबा 4.90 मिलियन हेक्टेयर रहा, जिसमें मक्का और ज्वार क्रमशः 2.09 मिलियन हेक्टेयर और 2.03 मिलियन हेक्टेयर में बोए गए.
तिलहन का रकबा
तिलहन का रकबा पिछले साल से ज्यादा रहा, जो अब तक 9.42 मिलियन हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जिसमें रेपसीड-सरसों 8.78 मिलियन हेक्टेयर में बोया गया है. 2024-25 रबी सीज़न में 26 दिसंबर तक सभी रबी फसलों का कुल बुवाई क्षेत्र 61.4 मिलियन हेक्टेयर तक पहुंच गया, जो एक साल पहले 60.74 मिलियन हेक्टेयर था.
रबी फसल का मौसम
भारत में रबी फसल का मौसम अक्टूबर/नवंबर (मानसून के बाद बुवाई) से मार्च/अप्रैल (वसंत में कटाई) तक चलता है, जिसमें ऐसी फसलों पर ध्यान दिया जाता है जो ठंडी, सूखी सर्दियों की स्थिति में अच्छी तरह उगती हैं, जैसे गेहूं, जौ, सरसों, मटर और चना, और ये फसलें भारी मानसूनी बारिश के बजाय सर्दियों की बारिश या सिंचाई पर निर्भर करती हैं.
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