सेम की खेती से 80 दिन में 10 लाख की कमाई, बनारस का ये गांव बना मिसाल, किसान ने बताया पूरा तरीका
वाराणसी के रमना गांव के किसान सेम की खेती कर लाखों रुपये कमा रहे हैं. खुद से बीज तैयार कर और 40 से 50 हजार की लागत में ही मालामाल बन रहे हैं. इस खेती ने रमना गांव को भारत में एक नई पहचान दिला रही है.

वैसे तो खेती को आम तौर पर घाटे का सौदा माना जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के बनारस जिले के रमना गांव के किसान सेम की खेती से अपनी आमदनी में इजाफा कर रहे हैं. गंगा किनारे बसे इस गांव के किसान कम लागत में बेहतर मुनाफा कमा रहे हैं. यहां के किसान सेम की खेती करके 3-4 महीने में ही लाखों की कमाई करते हैं. खास बात ये भी है कि यहां के किसान इसकी खेती के लिए बीज खुद तैयार करते हैं. इस गांव के सेम की डिमांड इतनी ज्यादा है कि किसानों को बेचने के लिए मंडी भी नहीं जाना पड़ता. व्यापारी इनके खेत पर ही सेम को थोक के भाव खरीद लेते हैं. इस गांव का सेम बंगाल, बिहार, एमपी समेत देश के कई राज्यों में सप्लाई होता है. वाराणसी का यह रमना गांव वैसे तो अपनी कई तरह की खासियत लिए हुए है, लेकिन सेम की खेती ने इसे भारत में एक नई पहचान दिला रहा है.
लाखों की कमाई
रमना गांव के दिव्यनारायण सिंह, जो पेशे से किसान हैं, बताते हैं कि उनका पूरा परिवार सेम की खेती पर निर्भर है और यह उनकी इनकम का बड़ा सोर्स है. दिव्यनारायण ने money9live को बताया कि सेम की खेती के सीजन में उनका पूरा परिवार जुट जाता है और मात्र 3 से 4 महीनों में ही लाखों रुपये की कमाई करता है. वे कहते हैं कि वे हर साल करीब 1 एकड़ की खेती करते हैं. 1 एकड़ में उगाने में उन्हें करीब 40 से 50 हजार का निवेश करना होता है. वे कहते हैं कि अगर एक एकड़ में सेम की खेती करनी हो तो तकरीबन 4 से 5 किलो बीज की जरूरत होती है.

बीज तैयार करने की अनोखी तकनीक
रमना गांव के किसान खुद सेम का बीज खुद तैयार करते हैं. दिव्यनारायण बताते हैं कि फसल के दौरान कुछ सेम की फलियों को सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है. जब फलियां पूरी तरह सूख जाती हैं, तो उनसे बीज निकालकर अगले सीजन के लिए रख लिया जाता है. यह प्रक्रिया न केवल बीज की गुणवत्ता को बनाए रखती है, बल्कि किसानों को बाजार पर निर्भर होने से भी बचाती है. दिव्यनारायण का कहना है कि इस तकनीक से उनकी फसल की पैदावार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.
खेत की तैयारी और सिंचाई
दिव्यनारायण कहते हैं कि सेम की खेती के लिए किसी खास मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन दोमट और बलुई मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है. खेत की तैयारी के दौरान यह सुनिश्चित करना जरूरी होता है कि मिट्टी में नमी बनी रहे. अगर खेत में नमी की कमी हो, तो बुवाई से पहले पलेवा करना जरूरी है. इससे बीज के अंकुरण में मदद मिलती है. साथ ही, खेत में जल निकासी की सही व्यवस्था भी जरूरी है, क्योंकि सेम की फसल में जल का ठहराव उसे नुकसान पहुंचा सकता है. इसके अलावा, मिट्टी का पीएच मान 6 होना चाहिए और 18 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान इस फसल के लिए अनुकूल रहता है.

लताओं को सहारा देने की तकनीक
सेम एक लता वाली सब्जी है, जिसे बढ़ने के लिए सहारे की जरूरत होती है. रमना गांव के किसान इस काम के लिए बांस की मचान बनाते हैं. यह मचान खेत में 2-3 मीटर की दूरी पर बनाए जाते हैं. बांस के खंभों पर रस्सी या तार बांधकर लताओं को चढ़ाया जाता है. इस तकनीक के कई फायदे हैं. इससे फसल की देखभाल और तोड़ाई में आसानी होती है. पौधों को पर्याप्त हवा और धूप मिलती है, जिससे उनकी बढ़वार अच्छी होती है.

उर्वरक और कीटनाशक
इसकी खेती में जुलाई से अगस्त के महीने में जब बुवाई की जाती है, तो उस दौरान उर्वरक और खरपतवार नाशकों का अधिक उपयोग करना पड़ता है. लेकिन जैसे-जैसे ठंड का मौसम आता है, इनकी जरूरत कम हो जाती है. सेम की फसल को काला माहू जैसे कीटों से खतरा रहता है. ये छोटे काले रंग के कीट होते हैं जो नवजात पत्तियों, शाखाओं और फलियों से रस चूसकर पौधों के ग्रोथ को रोक देते हैं. ऐसे में इन्हें रोकने के लिए किसान प्रभावित हिस्से को तोड़कर निकाल देते है अगर इनका प्रभाव ज्यादा होता है तो इस पर एज़ाडिरेक्टिन 300 पीपीएम 5 से 10 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते हैं.

इनकम का गणित
दिव्यनारायण के अनुसार, 1 हेक्टेयर भूमि में लगभग 300 क्विंटल तक सेम का उत्पादन होता है. फसल 80 दिनों में तैयार हो जाती है. पहली तोड़ाई में सेम का भाव 3000 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल मिलता है. फसल के तैयार होने के बाद हर हफ्ते नई तोड़ाई की जाती है.
बाहरी बाजारों में मांग
यहां की सेम बंगाल, बिहार और देश के कई राज्यों में सप्लाई की जाती है. दिव्यनारायण का कहना है कि उनके गांव की सेम की गुणवत्ता इतनी अच्छी है कि इसकी मांग हर जगह बनी रहती है.
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