अगर बंद हो जाता भारत-रूस ट्रेड, 137 डॉलर पहुंच जाता कच्चा तेल; इन वजहों से काम नहीं आया अमेरिका का ‘प्रेशर गेम’
भारत और रूस के तेल व्यापार पर एक बार फिर चर्चा तेज हो गई है. डोनाल्ड ट्रंप के ताजा बयान और अमेरिकी दबाव के बीच सवाल उठ रहे हैं, क्या भारत रूस से तेल खरीद बंद करेगा? इस मसले पर भारत सरकार के करीबी सूत्रों ने जो कहा, वो आपको जानना चाहिए.
India Russia Oil Import: अमेरिकी दबाव और तमाम मीडिया रिपोर्ट्स के बीच भारत ने साफ कर दिया है कि वह अपनी ऊर्जा नीति अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर तेल आयात के मुद्दे पर फैसले लेगा. रूस से तेल खरीद पर रोक की अटकलों के बीच ANI ने अपने सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट किया है कि भारतीय रिफाइनर अब भी रूसी आपूर्तिकर्ताओं से तेल ले रहे हैं और यह पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत है.
तेल खरीद का आधार: दाम, क्वालिटी और लॉजिस्टिक्स
रिपोर्ट के मुताबिक भारत की तेल आपूर्ति से जुड़ा निर्णय कई आर्थिक और व्यावसायिक मानकों पर आधारित है – जैसे कि क्रूड का दाम, उसकी क्वालिटी, लॉजिस्टिक सुविधा, इन्वेंट्री लेवल और लंबी अवधि की रणनीति. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है और देश की 85 फीसदी जरूरतें आयातित कच्चे तेल से पूरी होती हैं. ऐसे में स्थिर और किफायती ऊर्जा सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिकता है.
रूस, जो प्रतिदिन करीब 9.5 मिलियन बैरल कच्चा तेल पैदा करता है, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक और निर्यातक है. रूस से लगभग 4.5 mb/d कच्चा तेल और 2.3 mb/d रिफाइंड प्रोडक्ट्स का निर्यात होता है. 2022 में जब पश्चिमी प्रतिबंधों की आशंका बनी, तो ब्रेंट क्रूड की कीमत 137 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी.
भारत ने निभाई जिम्मेदार वैश्विक भूमिका
ANI सूत्रों का कहना है कि भारत ने वैश्विक ऊर्जा बाजार को स्थिर बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई. रूस से मिलने वाला रियायती तेल भारत की जरूरतों के साथ-साथ वैश्विक तेल बाजार की स्थिरता के लिए भी जरूरी रहा है. अगर भारत ने यह तेल नहीं खरीदा होता, तो OPEC+ द्वारा किए गए 5.86 mb/d उत्पादन कटौती के चलते कीमतें 137 डॉलर के पार चली जातीं और वैश्विक महंगाई और भी ज्यादा बढ़ जाती.
यह भी स्पष्ट किया गया कि रूसी तेल पर अमेरिका या यूरोपीय यूनियन द्वारा कोई प्रत्यक्ष प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. इसकी बजाय G7 और EU ने रूसी कच्चे तेल पर प्राइस कैप मैकेनिज्म लागू किया है ताकि रूस की आमदनी सीमित रहे लेकिन वैश्विक आपूर्ति बनी रहे. भारत ने हमेशा इस कैप का पालन किया है. हाल ही में EU ने यह कैप घटाकर 47.6 डॉलर प्रति बैरल कर दिया है, जो सितंबर से लागू होगा.
भारत की सरकारी तेल कंपनियां ईरान या वेनेजुएला से तेल नहीं खरीदतीं क्योंकि उन देशों पर अमेरिकी प्रतिबंध हैं. लेकिन रूस से तेल खरीद पूरी तरह कानूनी और अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत है.
ट्रंप के बयान और भारत की प्रतिक्रिया
शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि उन्हें जानकारी मिली है कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा. उन्होंने इसे “अच्छा कदम” बताया, लेकिन साथ ही यह भी जोड़ा कि यह अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है.
भारत सरकार के करीबी सूत्रों ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि यह रिपोर्ट्स भ्रामक हैं और भारत अपनी रणनीति में कोई बदलाव नहीं कर रहा. भारत ऊर्जा नीति में राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देता है और उसने हमेशा अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी के साथ व्यवहार किया है.
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EU भी बना रहा है रूसी ऊर्जा पर निर्भरता
जानकारी के मुताबिक, यूरोपीय संघ अब भी रूसी LNG का सबसे बड़ा खरीदार है. उसने रूस से निर्यात होने वाली कुल LNG का 51% खरीदा, जबकि चीन और जापान ने क्रमश: 21% और 18% खरीदा. पाइपलाइन गैस के मामले में भी EU 37% हिस्सेदारी के साथ शीर्ष खरीदार बना रहा.
भारत ने साफ कर दिया है कि वह अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करते हुए अपने “नेशनल इंटरेस्ट फर्स्ट” सिद्धांत से पीछे नहीं हटेगा.