अमेरिका की 25 साल की मेहनत बेकार, अब भारत-चीन साथ, ट्रंप टैरिफ से फंसा सुपरपावर

ट्रंप के इस कदम से अमेरिकी कंपनियों द्वारा चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए किए गए भारी निवेश पर असर पड़ा है. हालात कितने बदल गए हैं, यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा से साफ जाहिर हो गया है. पीएम मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की.

ट्रंप के टैरिफ से अमेरिकी प्लान को भी बड़ा झटका लगा है. Image Credit: PTI/AI/Canva

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का भारत पर 50 फीसदी का टैरिफ आर्थिक युद्ध की घोषणा की तरह लगा है. ट्रंप के इस कदम से अमेरिकी कंपनियों द्वारा चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए किए गए भारी निवेश पर असर पड़ा है. चीन की फैक्टरियों के विकल्प के रूप में दुनिया के सामने खुद को पेश करने की भारत की कड़ी मेहनत को झटका लगा है. व्यापारिक अधिकारियों और दिग्गज फाइनेंसर्स के चीन प्लस वन रणनीति के तहत अपनाया प्लान ट्रंप के टैरिफ से धराशायी हो गया है. अब, टैरिफ के पूरी तरह से लागू होने के एक सप्ताह से भी कम समय के बाद, नई दिल्ली के अधिकारी और बिजनेस लीडर्स और उनके अमेरिकी साझेदार अचानक बदले परिदृश्य को समझने की कोशिश कर रहे हैं.

सात साल बाद चीन पहुंचे पीएम मोदी

हालात कितने बदल गए हैं, यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा से साफ जाहिर हो गया है. पीएम मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की. भारत और चीन के बीच व्यापारिक और राजनीतिक संबंध तनावपूर्ण रहे हैं, कई बार तो बेहद तनावपूर्ण स्तर पर पहुंच गए हैं. पीएम मोदी सात साल बाद चीन के दौरे पर पहुंचे हैं.

मैन्युफैक्चरिंग महाशक्ति बनने के प्लान को झटका

न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में महाशक्ति बनने की उभरती महत्वाकांक्षाओं के लिए चीन प्लस वन एप्रोच महत्वपूर्ण रहा है. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में ग्रोथ को, खासतौर से टेक्नोलॉजी जैसे उच्च-स्तरीय क्षेत्रों में, भारत अपनी विशाल युवा श्रमिक आबादी के लिए रोजगार जैसी पुरानी समस्याओं के समाधान के रूप में देख रहा था. अब अमेरिका के समर्थन के बिना और चीन के साथ संभावित रूप से घनिष्ठ समन्वय के बिना, उस मार्ग पर चलना और भी कठिन होने वाला है.

इंपोर्टर्स दूसरे देशों का करेंगे रुख

ट्रंप के टैरिफ पहले से ही सप्लाई चेन में व्यवधान पैदा कर रहे हैं. अमेरिकी इंपोर्टर्स के लिए भारत अब उतना आकर्षक नहीं रहा. कंपनियां कम टैरिफ के लिए वियतनाम या मेक्सिको जैसे अन्य देशों का रुख कर सकती हैं. शुक्रवार को अमेरिकी अदालत के एक फैसले ने टैरिफ को अमान्य कर दिया, लेकिन ट्रंप की अपील तक उन्हें यथावत रखा है. फिलहाल दोनों देशों के बीच आई दरार को भरने के लिए कोई रास्ता खुलता हुआ नजर नहीं आ रहा.

तीसरी बड़ी इकोनॉमी बनने का लक्ष्य

भारत दुनिया की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने के लक्ष्य के विजन पर काम कर रहा है, फिलहाल पांचवें स्थान पर है और जल्द ही जापान से आगे निकलने की राह पर भी है. अगर अमेरिका मदद नहीं करता या इससे भी बदतर, उसके रास्ते में आता है, तो भारत के पास चीन के करीब जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, जबकि वह अपने विशाल पड़ोसी के लिए एक मजबूत मैन्युफैक्चरिंग हब बनने के अपने लक्ष्य पर अड़ा हुआ है.

भारत-चीन के संबंध जटिल

भारत-चीन संबंध जितने जटिल हैं, उतने ही नाजुक भी हैं. दोनों देशों की सेनाएं हिमालय में अपनी विवादित सीमाओं पर एक-दूसरे के खिलाफ खड़ी हैं. जून 2020 में दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़प हुई थी, जिससे रिश्तों में तनाव चरम पर पहुंच गया था. हालांकि, बीते दिन पीएम मोदी और शी जिनपिंग की हुई मुलाकात से यह बात सामने निकलकर आई कि दोनों देश सीमा विवाद को हल करने पर सहमत हो गए हैं.

सीमा संघर्ष के अलावा आर्थिक संघर्ष पहले से ही लगातार उबल रहा है. कोविड-19 महामारी की शुरुआत में जब शेयर बाजार में भारी गिरावट आई, तब भारत यह जानकर चिंतित हो गया कि चीन के केंद्रीय बैंक ने चुपचाप भारत के सबसे बड़े निजी बैंकों में से एक का 1 फीसदी हिस्सा हासिल कर लिया है. भारत ने चीन से आने वाले कई तरह के निवेश पर रोक लगाकर जवाब दिया. आखिरकार भारत ने अपने टेक स्टार्टअप हब से अधिकांश चीनी वेंचर कैपिटल को बाहर कर दिया और टिकटॉक सहित 200 से ज्यादा चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया.

चीन के पास आर्थिक हथियार

चीन के पास आर्थिक हथियारों का और भी बड़ा भंडार है. उसने भारत की रेयर अर्थ और दर्जनों अन्य तकनीकों तक पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया है, जिनकी भारत को अपने कारखानों को चालू रखने के लिए जरूरत है. न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में गतिरोध के साथ चीन ने धीरे-धीरे हर चीज को हथियार बना लिया है.

ट्रंप के टैरिफ का असर

लेकिन ट्रंप की आर्थिक नीति के हथियारीकरण ने भारतीय कंपनियों को कहीं अधिक जोर का झटका दिया है.

उत्तर प्रदेश का रामपुर, जो मेंथा ऑयल के प्रोडक्शन के लिए विख्यात है, फिलहाल ट्रंप के टैरिफ की मार झेल रहा है. पीटीआई के अनुसार, निर्यातकों को टैरिफ से करोड़ों का नुकसान होने का खतरा है, जिससे हजारों किसान और मजदूर प्रभावित होंगे.

मुरादाबाद भी ट्रंप के टैरिफ से परेशान है. यहां से सालाना 8,500-9,000 करोड़ रुपये के हैंडीक्राफ्ट का एक्सपोर्ट होता है, जिसका 75 फीसदी हिस्सा अमेरिका को निर्यात होता है. ट्रंप के टैरिफ से एक्सपोर्ट रुक गया है. पीटीआई के अनुसार, एक एक्सपोर्ट फर्म के मालिक ने बताया कि 300 करोड़ रुपये के ऑर्डर रुक गए और 150 करोड़ रुपये का कारोबार अन्य देशों की ओर शिफ्ट हो रहा है. अमेरिका को होने वाले निर्यात में 50 फीसदी गिरावट आ सकती है, जिससे दो लाख लोग बेरोजगार हो सकते हैं.

एक साथ भारत-चीन

भारत और चीन दोनों देशों के बीच एक फिर से सीधी उड़ानें शुरू हो रही हैं. रविवार को चीन के तियानजिन में हुई बैठक में कोई संयुक्त समझौता नहीं हुआ, लेकिन भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी ने द्विपक्षीय व्यापार और निवेश संबंधों को बढ़ाने की योजना बनाई है.

चीन ने कई बार ताइवान की दिग्गज कंपनी फॉक्सकॉन के लिए चीनी इंजीनियरों को भारत भेजना मुश्किल बनाया है. फॉक्सकॉन का एप्पल के साथ अहम साझेदारी है. एप्पल अभी भी अपने अधिकांश आईफोन चीन में बनाता है, लेकिन हाल के वर्षों में उसने ज्यादातर काम भारत को सौंप दिया है. चीन भारत में निवेश करने के लिए उत्सुक है. अब राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताओं के बावजूद, भारत विदेशी मुद्रा के नए प्रवाह के लिए और भी उत्सुक होगा, क्योंकि अमेरिका के साथ उसका 129 अरब डॉलर का गुड्स ट्रेड बिखर रहा है.

25 साल के बाद संबंधों में कड़वाहट

साल 1998 में भारत के परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत पर सख्त प्रतिबंध लगाए थे और रिश्तों में तनाव आ गया था. साल 2000 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के भारत दौरे के बाद दोनों देशों के संबंध पटरी पर लौटने पर शुरू हुए. जॉर्ज डब्ल्यू बुश के दौर में दोनों देशों के रिश्ते रणनीतिक साझेदारी में तब्दील हुए. इस तरह से टैरिफ से पहले तक दोनों देशों के रिश्ते लगातार मजबूत हुए. पीएम मोदी और ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान रिश्ते अपनी पीक पर थे, लेकिन दूसरे कार्यकाल में टैरिफ के चलते संबंध अपने न्यूनतम स्तर पर आ गए हैं.

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