मैन्युफैक्चरिंग में रफ्तार बरकरार, सर्विस सेक्टर में दिखी नरमी, फ्लैश PMI सितंबर में घटकर 61.9 पर पहुंचा
सितंबर के लिए जारी पीएमआई आंकड़ों के मुताबिक भारत में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में अच्छी ग्रोथ दर्ज की गई है, लेकिन सर्विस सेक्टर में कमी आई है. जिसके चलते इसमें गिरावट दर्ज की गई. तो किन फैक्टर्स का इन पर पड़ा असर जानिए डिटेल.

HSBC Flash India PMI: सितंबर 2025 में भारत की आर्थिक रफ्तार थोड़ी धीमी पड़ती नजर आई, लेकिन अब भी ग्रोथ जबरदस्त बनी हुई है. HSBC फ्लैश इंडिया कंपोजिट आउटपुट इंडेक्स के मुताबिक भारत के मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर के संयुक्त प्रदर्शन में गिरावट दर्ज की गई है. ये अगस्त के 63.2 से गिरकर सितंबर में 61.9 पर आ गया है. हालांकि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ने बेहतर प्रदर्शन किया है, जबकि सर्विस सेक्टर में सुस्ती देखी गई है.
मैन्युफैक्चरिंग तेज, सर्विस सेक्टर हुआ सुस्त
सितंबर में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ने सर्विस सेक्टर से बेहतर परफॉर्म किया. HSBC Flash India Manufacturing PMI 59.3 से गिरकर 58.5 पर आ गया, जबकि सर्विस PMI 62.9 से घटकर 61.6 पर पहुंचा. वहीं, मैन्युफैक्चरिंग आउटपुट इंडेक्स 63.7 से गिरकर 62.7 रहा. फिर भी ये सभी आंकड़े 50.0 के न्यूट्रल लेवल से काफी ऊपर हैं.
US टैरिफ का असर
HSBC की चीफ इंडिया इकोनॉमिस्ट प्रांजल भंडारी के मुताबिक, अमेरिका के लगाए गए 50% टैरिफ की वजह से अगस्त-सितंबर के बीच एक्सपोर्ट ऑर्डर्स की ग्रोथ में सुस्ती देखी गई. लेकिन अच्छी बात ये है कि घरेलू मांग में मजबूती बनी रही. इसके पीछे एक बड़ा कारण हाल ही में किए गए GST रेट कट माने जा रहे हैं. उनके अनुसार नए घरेलू ऑर्डर्स में पिछले दो महीनों से बढ़ोतरी देखी जा रही है, ये कम जीएसटी दरों की घोषणा का असर हो सकता है.
रोजगार में भी हल्की गिरावट
सितंबर में प्राइवेट सेक्टर में रोजगार के मोर्चे पर भी हल्की गिरावट देखने को मिली. मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस, दोनों सेक्टरों में रोजगार की रफ्तार धीमी रही. करीब 3% मैन्युफैक्चरर्स और 5% सर्विस प्रोवाइडर्स ने नई हायरिंग की बात कही है. हालांकि अधिकांश कंपनियों का कहना है कि मौजूदा जरूरतों के लिए उनके पास पर्याप्त स्टाफ है.
महंगाई पर मिला-जुला असर
रिपोर्ट के मुताबिक सर्विस सेक्टर में प्राइसिंग प्रेशर थोड़ा कम हुआ है, जबकि मैन्युफैक्चरिंग में लागत बढ़ी है. कॉटन, इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स, स्टील, तेल और सब्जियों जैसी चीज़ों की कीमतें बढ़ीं, जिससे लागत में इजाफा हुआ. इसके बावजूद कुल मिलाकर प्राइवेट सेक्टर में खर्चों की रफ्तार थोड़ी नरम पड़ी है.
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