India-Russia $100 Billion Trade: क्या निर्यात करेगा भारत, कैसे बनेगा ट्रेड बैलेंस; किन कंपनियों को फायदा?

भारत और रूस 2030 तक $100 बिलियन व्यापार लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं. लेकिन यह तभी संभव होगा जब भारत फार्मा, इंजीनियरिंग, कृषि और IT सेवाओं में निर्यात बढ़ाए. ट्रेड बैलेंस सुधारने के लिए लॉजिस्टिक्स, भुगतान और मार्केट-एंट्री में बड़े बदलाव जरूरी हैं. जानिए किन भारतीय कंपनियों को सबसे ज्यादा फायदा मिल सकता है.

भारत- रूस वार्षिक समिट में आर्थिक साझेदारी पर फोकस रहेगा. Image Credit: money9live

भारत–रूस व्यापार 2022 के बाद से रिकॉर्ड गति से बढ़ा है और अब लक्ष्य 2030 तक $100 बिलियन का है. यह लक्ष्य कच्चे तेल के सहारे तो बड़ा दिखता है, लेकिन निर्यात की संरचना अभी कमजोर है. असली सवाल यही है कि भारत कौन-से उत्पादों से निर्यात बढ़ाएगा, ट्रेड बैलेंस कैसे सुधरेगा और इस भू-रणनीतिक व्यापार से कौन-सी भारतीय कंपनियां सबसे बड़े लाभार्थी बनेंगी.

क्या निर्यात करेगा भारत?

भारत आने वाले वर्षों में रूस को जिन उत्पादों का सबसे अधिक निर्यात बढ़ा सकता है, उनमें फार्मास्यूटिकल्स, इंजीनियरिंग और मशीनरी उपकरण, कृषि व समुद्री उत्पाद, इलेक्ट्रिकल गुड्स, ऑटो-पार्ट्स और IT–डिजिटल सेवाएं शामिल हैं. फार्मा निर्यात रूस में बढ़ती मांग और पश्चिमी सप्लायरों के खाली हुए स्पेस की वजह से तेजी पकड़ सकता है, जबकि इंजीनियरिंग और मशीनरी सेगमेंट रूस की चीन-निर्भरता कम करने की रणनीति में भारत के लिए बड़ा अवसर बन रहा है. कृषि उत्पाद, जैसे चाय, मसाले, चावल, फल, सब्जियां और समुद्री भोजन INSTC के पूरी तरह सक्रिय होते ही बड़ी मात्रा में रूस के बाजार तक पहुंच सकते हैं. IT सेवाएं, साइबर सुरक्षा और फिनटेक सॉल्यूशंस भी रूस में तेजी से उभरते सेगमेंट हैं, जिनमें भारतीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धा सबसे आगे है.

ट्रेड बैलेंस कैसे सुधरेगा?

भारत–रूस व्यापार का सबसे बड़ा असंतुलन कच्चे तेल की वजह से है. क्योंकि, यह द्विपक्षीय व्यापार का 80% से ज्यादा है. ट्रेड बैलेंस को सुधारने के लिए निर्यात को व्यापक बनाना होगा. फार्मा, इंजीनियरिंग और एग्री-प्रोडक्ट्स इसमें मुख्य भूमिका निभा सकते हैं. इसके अलावा एक बड़ा सुधार भुगतान तंत्र में लाना होगा. रुपया–रूबल लेनदेन मॉडल अभी धुंधला और जोखिमपूर्ण है. कई भारतीय बैंक रूस के साथ हाई रिस्क के कारण सतर्क हैं. एक सुरक्षित, स्पष्ट और पारदर्शी पेमेंट गेटवे ट्रेड को स्थिर आधार दे सकता है. इसके अलावा तीसरा मोर्चा लॉजिस्टिक्स का है. INSTC और मुंबई–व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर को पूरी क्षमता पर लाना भारत के निर्यातकों को लागत और समय दोनों में बड़ी राहत देगा. इससे पेरिशेबल और फूड प्रोडक्ट्स का निर्यात कई गुना बढ़ सकता है.

किन कंपनियों को सबसे बड़ा फायदा

  • फार्मा सेक्टर में Sun Pharma, Dr Reddy’s और Aurobindo Russia में पहले से मजबूत उपस्थिति रखते हैं. GMP रजिस्ट्री की रफ्तार बढ़ते ही इनकी बिक्री में बड़ा उछाल आ सकता है.
  • इंजीनियरिंग और ऑटो सेक्टर में Bharat Forge, Motherson, Havells, Crompton और Larsen & Toubro रूस के औद्योगिक बदलाव का लाभ उठा सकते हैं. भारी मशीनरी और रेलवे उपकरणों में BEML और IRCON को भी अवसर बढ़ेंगे.
  • कृषि और समुद्री उत्पाद एक्सपोर्टर्स Allana Group, Avanti Feeds, West Coast Fisheries और Indian Tea Exporters असल में INSTC के सक्रिय होने पर नई ऊंचाइयां छू सकते हैं. पेट्रोकेमिकल और एनर्जी JV में Reliance Industries और ONGC Videsh की भूमिका पहले से अहम है, और आगे यह गहरी हो सकती है.
  • IT और डिजिटल सेवा प्रदाताओं में TCS, Infosys, Tech Mahindra और कई मध्यम आकार की साइबर-सेक्योरिटी कंपनियांं. रूस में बदले व्यावसायिक परिदृश्य का बड़ा लाभ उठाने की स्थिति में हैं. रूस में वेस्टर्न फर्मों के निकलने से इन कंपनियों के लिए एक स्थायी बाजार तैयार हो रहा है.

भारत को अपनाना होगा एक्सपोर्ट लीडरशिप मॉडल

भारत–रूस व्यापार का $100 बिलियन लक्ष्य सिर्फ आयात आधारित मॉडल से संभव नहीं है. इसे वास्तविक बनाने के लिए भारत को निर्यात-वृद्धि पर केंद्रित रणनीति अपनानी होगी. फार्मा, इंजीनियरिंग, कृषि, और डिजिटल सेवाएं इस नए युग के चार स्तंभ हैं. यदि लॉजिस्टिक्स सुधरा, भुगतान तंत्र स्थिर हुआ और रूस ने मार्केट-एंट्री प्रक्रियाओं को आसान बनाया, तो भारत न केवल ट्रेड बैलेंस सुधार सकता है बल्कि इस साझेदारी से दीर्घकालिक आर्थिक लाभ भी हासिल कर सकता है. यह दशक भारत–रूस आर्थिक संबंधों के लिए निर्णायक बनने जा रहा है और इसका लाभ उन कंपनियों को मिलेगा जो समय रहते इस अवसर को पहचान लेंगी.