H-1B पर US की नई गाइडलाइन: 1 लाख डॉलर की फीस से कौन बचेगा, Indian IT कंपनियों क्या होगा असर?
अमेरिका ने अपनी H-1B वीजा पॉलिसी और 1 लाख डॉलर करीब 88 लाख रुपये की भारी फीस को लेकर नई गाइडलाइन जारी की है. नई पॉलिसी में कई H-1B वर्कर्स को राहत दी गई है, जबकि कुछ कैटेगरी के लिए ये बोझ बरकरार रहेगा. जानिए किसे देनी होगी यह फीस, किसे मिली छूट और इसका इंडियन IT सेक्टर पर क्या बड़ा असर पड़ेगा.
अमेरिकी सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विस (USCIS) ने 20 अक्टूबर को जारी नई गाइडलाइन में यह साफ किया है कि सभी H-1B आवेदकों पर 1 लाख डॉलर की फीस लागू नहीं होगी. इस स्पष्टीकरण से हजारों भारतीय IT प्रोफेशनल्स को राहत मिली है. US में भारतीय पेशेवर H-1B वीजा का सबसे बड़ा हिस्सा रखते है. करीब 71% सभी अप्रूव्ड H-1B एप्लिकेशन भारतीयों के होते हैं.
किसे देनी होगी 1 लाख डॉलर की फीस
USCIS के मुताबिक यह फीस उन आवेदकों पर लागू होगी, जो पहली बार H-1B वीजा के लिए आवेदन कर रहे हैं या जिनके पास वैध वीजा नहीं है. इसके अलावा, जिनकी चेंज ऑफ स्टेटस या एक्सटेंशन की याचिका कैंसिल हो चुकी है, या जो कांसुलर नोटिफिकेशन, पोर्ट ऑफ एंट्री या प्री-फ्लाइट इंस्पेक्शन जैसी प्रक्रियाओं के तहत आवेदन करेंगे, उन्हें भी यह भारी फीस चुकानी होगी.
कौन हैं छूट के दायरे में?
तीन कैटेगरी को इस नई फीस से पूरी छूट दी गई है. इनमें वे वर्कर्स शामिल हैं, जिनके पास पहले से वैध H-1B वीजा है. इसके अलावा वे आवेदक जिन्होंने 21 सितंबर, 2025 से पहले अपनी पिटीशन दाखिल की है, साथ ही जो चेंज ऑफ स्टेटस, अमेंडमेंट या एक्सटेंशन के लिए आवेदन कर रहे हैं और जिनकी अर्जी मंजूर हो चुकी है. USCIS ने यह भी साफ कर दिया है कि कि मौजूदा H-1B वीजा होल्डर अब भी अमेरिका में आ-जा सकते हैं. उनके ट्रैवल या री-एंट्री पर कोई नई बाधा नहीं होगी.
कब लागू हुआ यह आदेश
यह बदलाव राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस सितंबर के प्रोक्लेमेशन से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने H-1B वीजा फीस को 1 लाख डॉलर सालाना किए जाने का ऐलान कर दिया था. यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स ने इस फैसले को “अवैध और इनोवेशन को नुकसान पहुंचाने वाला कदम बताते हुए कोर्ट में चुनौती दी थी. इसके बाद 20 अक्टूबर को USCIS ने यह गाइडलाइन जारी कर राहत दी है.
Indian IT सेक्टर पर क्या असर पड़ेगा
भारत के लिए यह राहत बड़ी है, क्योंकि TCS, Infosys, Wipro और HCL जैसी कंपनियां हर साल हजारों H-1B वर्कर्स को अमेरिका भेजती हैं. अगर यह फीस हर केस में लागू होती, तो कंपनियों की कॉस्ट स्ट्रक्चर पर बड़ा दबाव पड़ता. क्लैरिफिकेशन से अब टेक सेक्टर का रिस्क घटेगा और टैलेंट मूवमेंट फिर से स्थिर होने की उम्मीद है. हालांकि, शुरुआती एप्लिकेंट्स और नए वर्कर्स के लिए यह फीस अब भी एक एंट्री बैरियर बनी रहेगी.
अमेरिकी राजनीति में बड़ा मुद्दा
अमेरिकी राजनीति के जानकारों का मानना है कि यह कदम चुनावी साल की राजनीति से भी जुड़ा है. ट्रंप प्रशासन की पॉलिसी पर पहले भी सवाल उठे हैं कि वह विदेशी टेक टैलेंट को रोककर अमेरिकी रोजगार को प्राथमिकता देना चाहती है. पर USCIS के स्पष्टीकरण से यह साफ हो गया है कि अमेरिका को ग्लोबल टैलेंट की जरूरत अब भी है और भारतीय टेकीज इसके सबसे बड़े लाभार्थी बने रहेंगे.