कौन हैं मोहिनी मोहन दत्ता, जिन्होंने रतन टाटा की वसीयत पर उठाये थे सवाल, अब मिलेंगे 588 करोड़, जानें कैसे
रतन टाटा की वसीयत में मोहिनी मोहन दत्ता का भी नाम शामिल है, लेकिन वो वसीयत में मिली वैल्यू से खुश नहीं थे. मगर अब वो इसकी शर्तों पर सहमत हो गए हैं, लिहाजा उन्हें करीब 588 करोड़ रुपये मिलेंगे. तो आखिर कौन है मोहिनी मोहन दत्ता और रतन टाटा से उनका क्या है कनेक्शन, आइए जानते हैं.

Who is Mohini Mohan Dutta: रतन टाटा के देहांत के बाद उनकी वसीयत काफी चर्चा में रही है. अब एक बार फिर इसमें नया अपडेट सामने आया है. दरअसल रतन टाटा की वसीयत में उनके खास दोस्त और ताज होटल्स के पूर्व डायरेक्टर मोहिनी मोहन दत्ता इकलौते ऐसे शख्स थे जिन्होंने रतन टाटा की कुल 3,900 करोड़ की संपत्ति में अपनी हिस्सेदारी की वैल्यू पर सवाल उठाया था. मगर अब उन्होंने वसीयत की शर्तों को मान लिया है, लिहाजा उन्हें संपत्ति का लगभग 588 करोड़ रुपये, मिलने वाले हैं. इसके लिए बॉम्बे हाई कोर्ट से प्रोबेट की प्रक्रिया तेज हो गई है (ये वो प्रक्रिया है जिसमें मृतक की वसीयत की प्रमाणिकता जांची जाती है और उत्तराधिकारियों को दी जाती है). तो आखिर कौन है मोहिनी मोहन दत्ता जिन्होंने वसीयत पर उठाए थे सवाल और रतन टाटा से क्या था उनका रिश्ता, आज हम आपको इसी के बारे में बताएंगे.
रतन टाटा से पुरानी है दोस्ती
77 साल के मोहिनी मोहन दत्ता एक उद्यमी हैं जो जमशेदपुर, झारखंड से हैं. उनके पास स्टैलियन नाम की एक ट्रैवल एजेंसी थी और 2024 में इसका ताज ग्रुप ऑफ़ होटल्स, ताज सर्विसेज के साथ मर्जर हो गया था. दत्ता की दो बेटियां हैं और उनमें से एक ने नौ साल तक टाटा ट्रस्ट्स के लिए काम किया था. उससे पहले वह ताज होटल्स में कर्मचारी थी. दत्ता और रतन टाटा का रिश्ता कोई मामूली नहीं था. ये दोस्ती छह दशक से भी ज्यादा पुरानी थी. एक इंटरव्यू में दत्ता ने बताया था कि उनकी रतन टाटा से पहली मुलाकात जमशेदपुर के डीलर्स हॉस्टल में हुई थी, तब वह सिर्फ 13 साल के थे और टाटा 25 साल के. बाद में दत्ता मुंबई आ गए और टाटा के कोलाबा वाले बख्तावर घर में रहे. दत्ता ने अपने करियर की शुरुआत ताज होटल्स के ट्रैवल डेस्क से की थी. फिर 1986 में उन्होंने टाटा इंडस्ट्रीज से पैसे लेकर स्टैलियन ट्रैवल सर्विसेज शुरू की. टाटा की कंपनियां ट्रैवल जरूरतों के लिए स्टैलियन सर्विस का इस्तेमाल करती थीं.
ताज से थॉमस कुक तक का सफर
2006 में स्टैलियन का ताज की एक कंपनी, इंडिट्रैवल, में मर्जर हो गया था. दत्ता इस नई कंपनी के डायरेक्टर बने. वो ताज के सबसे ज्यादा कमाने वाले अफसरों में से एक थे. 2015 में ये ट्रैवल बिजनेस टाटा कैपिटल को दे दिया गया. फिर 2017 में टाटा कैपिटल ने इसे थॉमस कुक इंडिया को बेच दिया. दत्ता 2019 तक थॉमस कुक के बोर्ड में रहे, जब तक कि ये बिजनेस पूरी तरह मर्ज नहीं हो गया.
वसीयत को लेकर थी शिकायत
ईटी की रिपोर्ट के मुताबिक मोहिनी मोहन दत्ता को रतन टाटा की वसीयत को लागू करने वालों से कुछ शिकायत थी, लेकिन वसीयत में “नो-कॉन्टेस्ट” क्लॉज की वजह से उन्होंने इसे चुनौती नहीं दी थी, क्योंकि इस शर्त के मुताबिक अगर कोई कोर्ट में वसीयत को चुनौती देता है, तो वो अपनी पूरी हिस्सेदारी गंवा देगा. ऐसे में उन्होंने इसे चुनौती नहीं दी. मगर वसीयत को लागू करने वालों की ओर से 27 मार्च को कोर्ट में प्रोबेट के लिए अर्जी डाली गई थी. हाल ही में कोर्ट ने कहा कि इस पर एक पब्लिक नोटिस निकालने और जो लोग सहमत नहीं हैं, उनकी आपत्तियां मांगने के आदेश दिए थे. इसी सिलसिले में 9 अप्रैल को ओरिजिनेटिंग समन भी दायर किया. इस दौरान दत्ता ने अपनी वसीयत की वैल्यू पर सवाल उठाया था, हालांकि अब उन्होंने शर्ते मान ली है.
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रतन टाटा की वसीयत में किसे कितना मिलेगा हिस्सा?
रतन टाटा की कुल 3,900 करोड़ की संपत्ति के करीब दो दर्जन लोग लाभार्थी हैं, दो तिहाई हिस्सा टाटा की सौतेली बहनों, 72 साल की शिरीन जेजेभॉय और 70 साल की डियाना जेजेभॉय को मिलेगा. जबकि दत्ता को संपत्ति का लगभग 588 करोड़ रुपये मिलेंगे. कोर्ट की ओर से वसीयत के प्रोबेट की मंजूरी के बाद ही हिस्सेदारी बांटी जाएगी, तभी दत्ता को भी अपनी हिस्सेदारी मिलेगी.
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