कितने बजे होगा ब्लैकआउट, रोड पर गाड़ी चला पाएंगे आप या नहीं ? जानें उस वक्त क्या-क्या होगा
7 मई को देशभर में मॉक ड्रिल करने का निर्देश दिया है. इस मॉक ड्रिल का मकसद हाल के आतंकी हमलों के बाद सिविल डिफेंस की तैयारियों को जांचना है. इस दिन कई गतिविधियां होंगी. इनमें ब्लैकआउट भी शामिल है. ब्लैकआउट में बिजली और लाइट बंद की जाएगी. आइए समझते हैं कि ब्लैकआउट क्या होता है.

Mock Drill and Blackout: भारत सरकार और सेना आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठा रही है. इसी के तहत गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को 7 मई को देशभर में मॉक ड्रिल करने का निर्देश दिया है. इस मॉक ड्रिल का मकसद हाल के आतंकी हमलों के बाद सिविल डिफेंस की तैयारियों को जांचना है. इस दिन कई गतिविधियां होंगी. इनमें ब्लैकआउट भी शामिल है. ब्लैकआउट में बिजली सप्लाई बंद कर दी जाएगी. इसका असर रिहायशी और कमर्शियल दोनों इलाकों पर पड़ेगा. आइए समझते हैं कि ब्लैकआउट क्या होता है, यह कब होगा, कितने प्रकार का होता है, और इस दौरान गाड़ियों, स्ट्रीट लाइट्स, और रेलवे का क्या होगा.
ब्लैकआउट क्या है?
ब्लैकआउट की प्रक्रिया युद्ध या युद्ध जैसी स्थिति में अपनाई जाती है. इसमें रात के समय बड़े शहरों, खासकर सीमा के पास वाले इलाकों और महत्वपूर्ण जगहों जैसे सरकारी इमारतों और सेना के ठिकानों में पूरी तरह बिजली बंद कर दी जाती है. इसका मकसद दुश्मन के हमलों से बचाव करना है. ब्लैकआउट के दौरान शहरों में घंटों तक बिजली नहीं होती. लोगों को निर्देश दिया जाता है कि वे लाइटें बंद रखें. जेनरेटर या इनवर्टर को भी ऑफ करना होता है. इससे दुश्मन के विमानों को इमारतें या लोग दिखाई नहीं देते. इससे हमला मुश्किल हो जाता है. इस तरह ब्लैकआउट नागरिकों को दुश्मन से बचाने में मदद करता है.
ब्लैकआउट कब होगा?
7 मई को होने वाले ब्लैकआउट का सटीक समय अभी सामने नहीं आया है. लेकिन हाल ही में फिरोजपुर कैंटोनमेंट इलाके में हुई ब्लैकआउट रिहर्सल से कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है. रविवार को फिरोजपुर में 30 मिनट का ब्लैकआउट अभ्यास किया गया. यह रात 9 बजे से 9:30 बजे तक चला. इस दौरान सभी लाइटें बंद कर दी गई. टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, उस दौरान जिन गाड़ियों की लाइट जल रही थीं, उन्हें बंद करने को कहा गया. पुलिस ने सभी प्रमुख चौराहों पर तैनाती की और हाई अलर्ट पर रही. इस आधार पर अनुमान है कि 7 मई को भी ब्लैकआउट रात में ऐसा हो सकता है. हालांकि इसके पहले स्थानीय प्रशासन लोगों को ब्लैक आउट ड्रिल की सूचना भी देगा.
कितने प्रकार के होते हैं ब्लैकआउट?
ब्लैकआउट मुख्य रूप से दो तरह के होते हैं. पहला क्रैश ब्लैकआउट. क्रैश ब्लैकआउट: इस तरह के ब्लैकआउट में पूरे इलाके की लाइट बंद कर दी जाती हैं. इसका मकसद है कि दुश्मन को कुछ भी दिखाई न दे. शहरों में सभी लाइटें बंद कर दी जाती हैं. ताकि युद्ध जैसी स्थिति में रात के समय हवाई हमलों से बचा जा सके. इससे दुश्मन के लिए निशाना लगाना मुश्किल हो जाता है.
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कैमोफ्लाज ब्लैकआउट: यह ब्लैकआउट सेन के कैंपों, पॉवर प्लांट, बांध आदि संवेदनशील इमारतों पर किया जाता है. इसमें इमारत के आसपास और अंदर सभी लाइटें बंद या बहुत कम कर दी जाती हैं. यह खासकर तब होता है, जब सुरक्षा का खतरा बढ़ जाता है या हमले की आशंका होती है. इसका मकसद कैंप को दुश्मन की नजरों से छिपाना है.
ब्लैकआउट के दौरान क्या-क्या होगा?
ब्लैकआउट अभ्यास के दौरान कई सख्त नियम लागू किए जाते हैं, ताकि कोई लाइट दिखाई न दे और दुश्मन का ध्यान न जाए. आइए जानते हैं कि गाड़ियों, रेलवे, और स्ट्रीट लाइट्स का क्या होगा. ब्लैकआउट के समय गाड़ियों की हेडलाइट्स बंद कर दी जाती हैं या उन्हें बहुत धीमा कर दिया जाता है. कुछ मामलों में हेडलाइट्स पर खास कवर लगाए जाते हैं. यह लाइट को नीचे की ओर रखते हैं. इससे ऊपर से दिखाई न दे. केवल एक हेडलाइट जलाने की इजाजत हो सकती है. वो भी कम रोशनी वाली. गाड़ियों की पीछे और साइड की लाइट्स भी बंद रहती हैं. गाड़ियों को धीमी रफ्तार से चलाने का नियम होता है. ब्लैकआउट में स्ट्रीट लाइट्स को भी पूरी तरह बंद कर दी जाती हैं या बहुत कम रोशनी वाली बनाई जाती हैं. हालांकि यह स्थिति युद्ध के समय आती है. आम तौर पर मॉक ड्रिल में इतनी सख्ती नहीं होती है.
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पहले भी हो चुका है ब्लैकआउट
भारत में पहले भी ब्लैकआउट हुए हैं. साल 1965 में जम्मू-कश्मीर, पंजाब, और राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों में कई रातों तक ब्लैकआउट रहा. दिल्ली में भी रात में बिजली बंद रहती थी. उस समय हवाई हमले हो रहे थे. इसलिए ब्लैकआउट जरूरी था. साल 1971 में असम और पश्चिम बंगाल के शहरों में भी ब्लैकआउट लागू किया गया. ऐसा इसलिए क्योंकि युद्ध पूर्वी मोर्चे पर लड़ा जा रहा था.
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