पाकिस्तान के बाद पानी पर बांग्लादेश को सबक सिखाएगा भारत! गंगा जल समझौते में हो सकता है बदलाव
पाकिस्तान के बाद अब भारत पानी पर बांग्लादेश को भी सबक सिखाने की तैयारी में है. पाकिस्तान की तरह अब तक भारत बांग्लादेश के साथ भी पूरी उदारता के साथ गंगा का पानी साझा करता हुआ आया है. लेकिन, अब इस समझौते में जल्द बदलाव हो सकता है.
भारत-बांग्लादेश के बीच गंगा के पानी का बंटवारा करने के लिए 1996 एक एक समझौता किया गया. अगले साल यह समझौता खत्म हो रहा है. ऐसे में भारत अब पाकिस्तान के बाद पानी को लेकर बांग्लादेश को भी सबक सिखा सकता है. पाकिस्तान की तरह ही बांग्लादेश की तरफ से भी कई बार ऐसी हरकतें देखने को मिली हैं, जो भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के लिए जोखिम बढ़ाने वाली रहीं. इन बातों के साथ ही भारत अपने विकास से जुड़ी जरूरतों को ध्यान में रखकर अब इस समझौते की शर्तों में बदलाव चाहता है. ET की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने फरक्का बैराज से गंगा जल के बंटवारे के मौजूदा प्रावधानों में बदलाव की बात कही है. भारत का कहना हैपश्चिम बंगाल की जरूरतों को पूरा करने के लिए पानी का उचित बंटवारा जरूरी है.
क्या है मौजूदा समझौता?
भारत-बांग्लादेश गंगा जल समझौते पर 1996 में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के पहले कार्यकाल के दौरान हस्ताक्षर किए गए थे. इस समझौते के तहत प्रत्येक वर्ष 1 जनवरी से 31 मई तक शुष्क मौसम के दौरान पश्चिम बंगाल में फरक्का बैराज पर गंगा के प्रवाह को विभाजित करने का फार्मूला तय किया गया था.
पश्चिम बंगाल में उठी मांग
पश्चिम बंगाल के लोगों की लंबे समय से यह मांग रही है कि बांग्लादेश के साथ गंगा जल के बंटवारे को लेकर किए गए समझौते में बदलाव किया जाए. लोगों का कहना है कि भारत को बंगाल में सिंचाई, बंदरगाह रखरखाव और बिजली उत्पादन की अपनी जरूरतों के हिसाब से इस समझौते में बदलाव की मांग रखनी चाहिए.
क्यों बनाया गया फरक्का बैराज?
फरक्का में पानी के बंटवारे पर 1996 के समझौते से पहले भारत और बांग्लादेश के बीच नदी के जल प्रवाह के अधिकार पर मतभेद थे. ये मतभेद 1975 में फरक्का बैराज के चालू होने के बाद उभरे थे. इस बैराज का निर्माण कोलकाता बंदरगाह को बेहतर बनाने के लिए गंगा का पानी हुगली में ले जाने के लिए किया गया.
फरक्का बैराज से कितना पानी हुआ डायवर्ट?
फरक्का बैराज का निर्माण कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट के लिए 40,000 क्यूसेक पानी को फीडर नहर में मोड़ने के लिए किया गया था. मौजूदा व्यवस्था के तहत लीन सीजन यानी 11 मार्च से 11 मई के दौरान दोनों देशों को बारी-बारी से 10 दिनों के लिए 35,000 क्यूसेक पानी दिया जाता है. भारत अपनी उभरती जरूरतों को पूरा करने के लिए इसी अवधि के दौरान 30,000 से 35,000 क्यूसेक अतिरिक्त पानी चाहता है.