Prada विवाद के बाद कोल्हापुरी चप्पल को लेकर बड़ी पहल, असली है या नकली अब QR कोड खोलेगा राज; ऐसे कर सकते हैं पहचान
कोल्हापुरी चप्पल को अब QR कोड के जरिए डिजिटल पहचान मिलेगी. GI टैग मिलने के बाद अब सरकार ने असली और नकली की पहचान आसान करने के लिए QR सिस्टम लागू किया है. इससे ग्राहक यह जान सकेंगे कि चप्पल किस कारीगर ने बनाई, किस जिले की है और उसमें कौन-सी सामग्री इस्तेमाल हुई है. Prada पर डिजाइन नकल के आरोप के बाद यह कदम और अहम बन गया है.
Kolhapuri Chappal: कोल्हापुरी चप्पल की एक अलग ही पहचान है. भारत की पारंपरिक शिल्पकला का प्रतिनिधित्व करने वाली कोल्हापुरी चप्पल आज न सिर्फ देश के फैशन जगत में छा रही है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी अपनी पहचान बना रही है. हाल ही में इटैलियन ब्रांड Prada पर इसके डिजाइन की नकल करने का आरोप लगा, जिसके बाद इस हस्तशिल्प को लेकर चर्चा और बढ़ गई. अब सरकार ने इन चप्पलों की गुणवत्ता और प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिए एक नया कदम उठाया है. PTI की रिपोर्ट के मुताबिक, GI-टैग्ड कोल्हापुरी चप्पलों पर अब QR Code लगाए जाएंगे, जिससे ग्राहकों को यह पता चल सकेगा कि उन्होंने जो चप्पल खरीदी है, उसे किस कारीगर ने बनाया है और वह असली है या नहीं.
क्या है Prada विवाद
हाल ही में Prada के मेन्स 2026 कलेक्शन में कोल्हापुरी चप्पल जैसे डिजाइन दिखाए गए, जिस पर महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स ने आपत्ति जताई. Prada ने माना कि उनके डिजाइन भारतीय हस्तशिल्प से प्रेरित हैं, लेकिन अभी वे केवल प्रोटोटाइप स्टेज पर हैं. इसके बाद Prada की एक टीम ने कोल्हापुर का दौरा किया और स्थानीय कारीगरों से मुलाकात की.
12वीं सदी से चली आ रही है यह कला
कोल्हापुरी चप्पल का इतिहास 12वीं सदी से जुड़ा है. महाराष्ट्र के कोल्हापुर, सांगली और सोलापुर जिलों में बनने वाली यह चप्पल प्राकृतिक चमड़े और हाथ से बुने स्ट्रैप्स के लिए जानी जाती है. 20वीं सदी में छत्रपति शाहू महाराज ने इसे स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक बनाया और कारीगरों को प्रोत्साहित किया.
GI टैग और अब QR कोड से सुरक्षा
2019 में महाराष्ट्र और कर्नाटक सरकार ने मिलकर कोल्हापुरी चप्पल को GI Tag दिलवाया, जिससे केवल इन राज्यों के मान्यता प्राप्त कारीगर ही इसे बना और बेच सकते हैं. अब Leather Industries Development Corporation of Maharashtra (LIDCOM) ने इसमें QR Code सिस्टम जोड़ा है. इस कोड को स्कैन करके ग्राहक यह जान सकेंगे कि:
- चप्पल किस कारीगर या स्वयं सहायता समूह ने बनाई है
- यह महाराष्ट्र के किस जिले में बनी है
- इसमें कौन-सी कच्ची सामग्री और तकनीक इस्तेमाल हुई है
- GI सर्टिफिकेशन की वैधता
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LIDCOM का मिशन: कारीगरों को मजबूती देना
1974 में स्थापित LIDCOM (संत रोहिदास चर्मोद्योग एवं चर्मकार विकास महामंडल) ने हजारों ग्रामीण कारीगरों को प्रशिक्षण, बाजार उपलब्ध कराने और आर्थिक सहायता देकर सशक्त बनाया है. LIDCOM की प्रबंध निदेशक प्रेरणा देशभ्राता ने कहा कि कोल्हापुरी चप्पल सिर्फ जूते नहीं, बल्कि स्वाभिमान, स्वदेशी भावना और सांस्कृतिक विरासत की कहानी कहती हैं.