मद्रास हाईकोर्ट का लैंडमार्क फैसला, क्रिप्टोकरेंसी को माना जाएगा ‘प्रॉपर्टी’, जानें क्या होगा निवेशकों पर असर?

मद्रास हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में क्रिप्टोकरेंसी को “प्रॉपर्टी” यानी संपत्ति का दर्जा दिया है. कोर्ट ने कहा कि डिजिटल एसेट्स को “स्वामित्व और ट्रस्ट में रखा जा सकता है.” यह फैसला भारतीय निवेशकों के लिए बड़ा बदलाव साबित हो सकता है, जानते हैं इसका निवेशकों पर क्या असर हो सकता है?

क्रिप्टोकरेंसी Image Credit: money9live

भारत में डिजिटल एसेट निवेशकों के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने क्रिप्टोकरेंसी को “प्रॉपर्टी” यानी संपत्ति के रूप में मान्यता दी है. यह फैसला उस मामले से जुड़ा है, जिसमें एक निवेशक के XRP टोकन को WazirX एक्सचेंज पर 2024 के साइबर हमले के बाद फ्रीज कर दिया गया था. कोर्ट ने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी “ऐसी संपत्ति है जिसे स्वामित्व में लिया जा सकता है, जिसका आनंद लिया जा सकता है और जिसे ट्रस्ट में रखा जा सकता है.”

क्या होगा निवेशकों पर असर?

अदालत के इस फैसले से डिजिटल एसेट्स को वही सिविल प्रोटेक्शन मिलेगा, जो किसी अन्य मूवेबल प्रॉपर्टी को मिलता है. यानी अब निवेशक हैकिंग, फ्रॉड या एक्सचेंज के खत्म होने की परिस्थितियों में अदालत से राहत पा सकेंगे.

बड़ा लीगल टर्निंग पॉइंट

इस फैसले को क्रिप्टो इकोसिस्टम के लिए ऐतिहासिक माना जा रहा है. क्योंंकि हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि क्रिप्टो एक अमूर्त संपत्ति (Intangible Property) है, जिसे कानूनी तौर पर रखा और ट्रस्ट में रखा जा सकता है. यह निवेशकों को ट्रस्ट क्लेम्स, इंजंक्शन और मिसएप्रोप्रिएशन के मामलों में कानूनी सुरक्षा देता है.

पूरे देश पर होगा असर

यह फैसला न सिर्फ तमिलनाडु की अदालतों पर बाध्यकारी होगा, बल्कि यह अन्य हाईकोर्ट्स को भी प्रभावित कर सकता है.
यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के 2020 के उस ऐतिहासिक निर्णय के अनुरूप है, जिसमें RBI का बैंकिंग बैन हटाया गया था. इसके साथ ही यह इनकम टैक्स एक्ट की धाराओं 115BBH और 194S के तहत वर्चुअल डिजिटल एसेट्स (VDAs) की परिभाषा को भी और स्पष्ट बनाता है.

निवेशकों के अधिकार होंगे मजबूत

यह फैसला निवेशकों की कानूनी स्थिति पूरी तरह बदल देता है. अब वे प्लेटफॉर्म यूजर नहीं, बल्कि अपने टोकन के वास्तविक मालिक माने जाएंगे. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निवेशक एक्सचेंज के केवल यूजर नहीं हैं, बल्कि ट्रस्ट के बेनिफिशियरी हैं. एक्सचेंज सिर्फ कस्टोडियन की भूमिका में रहेंगे. इसका मतलब यह हुआ कि एक्सचेंज निवेशकों की अनुमति के बिना उनके टोकन को री-डिस्ट्रीब्यूट, फ्रीज या मिक्स नहीं कर सकते. WazirX केस में कोर्ट ने प्लेटफॉर्म को यह कदम उठाने से रोका कि वह XRP टोकन का उपयोग किसी अन्य एसेट के नुकसान की भरपाई के लिए करे.

दिवालियापन के मामलों में अहम

अब अगर किसी एक्सचेंज के खिलाफ दिवालियापन की कार्यवाही होती है, तो निवेशक यह दलील दे सकते हैं कि उनके डिजिटल एसेट्स कंपनी की लिक्विडेशन संपत्ति का हिस्सा नहीं हैं. यह बात FTX या Zettai (WazirX की पैरेंट कंपनी) जैसे मामलों में बेहद मायने रखेगी, जहां ग्राहकों के फंड्स को कंपनी की संपत्ति में मिला दिया गया था.

निवेशकों को मिलेगी कानूनी सुरक्षा

निवेशकों को अब कई नई कानूनी राहतें मिलेंगी . मसलन, वे वे कोर्ट से एक्सचेंज को टोकन बेचने या ट्रांसफर करने से रोकने का आदेश ले सकते हैं. इसके अलावा हैक या फ्रॉड के मामलों में अपने टोकन या उनकी वैल्यू की वापसी मांग सकते हैं. NCLT में यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनके टोकन एक्सचेंज की संपत्ति न माने जाएं. धोखाधड़ी के मामलों में IT Act की धारा 66 और भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत FIR दर्ज की जा सकेगी. हालांकि, एक्सचेंज के विदेशी सर्वर और क्रॉस-बॉर्डर मामलों में एसेट रिकवरी अब भी चुनौतीपूर्ण रहेगी.

टैक्स और कंप्लायंस पर असर

यह फैसला टैक्सेशन को प्रभावित नहीं करता. क्रिप्टो से होने वाली आय पर अब भी 30% टैक्स (सेक्शन 115BBH) और 1% TDS (सेक्शन 194S) लागू रहेगा. जब क्रिप्टो को संपत्ति माना गया है, तो सरकार की टैक्स वैधता और मजबूत हो गई है. यह दिखाता है कि वर्चुअल डिजिटल एसेट्स को घोषित करना और टैक्स देना जरूरी है. इसके साथ ही, PMLA (Prevention of Money Laundering Act) के तहत एक्सचेंजों को रिपोर्टिंग एंटिटी के तौर पर अधिक पारदर्शी ऑडिट और सख्त KYC पालन करना होगा.