Focused Fund vs Flexi-Cap Fund: निवेशकों के लिए क्या बेहतर? जानें 10 साल के प्रदर्शन, रिस्क-रिटर्न की पूरी रिपोर्ट
निवेश की दुनिया में फोकस्ड फंड्स और फ्लेक्सी-कैप फंड्स दोनों ही निवेशकों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं. दोनों फंड्स बड़ी, मझोली और छोटी कंपनियों में निवेश करने की आजादी रखते हैं, लेकिन दोनों के बीच असली फर्क उनके पोर्टफोलियो की सीमा और जोखिम प्रबंधन में है. जानें विस्तार में दोनों फंड्स का प्रदर्शन और रिटर्न हिस्ट्री.
Focused Fund vs Flexi-Cap Fund: निवेश की दुनिया में आज कई तरह के म्यूचुअल फंड्स मौजूद हैं, लेकिन निवेशकों के बीच दो कैटेगरीज काफी लोकप्रिय हैं. पहला फोकस्ड फंड्स और दूसरा फ्लेक्सी-कैप फंड्स. पहली नजर में दोनों एक जैसे लग सकते हैं क्योंकि दोनों ही लार्ज-कैप, मिड-कैप और स्मॉल-कैप कंपनियों में निवेश करने की स्वतंत्रता रखते हैं. लेकिन जब थोड़ा ठहर कर गहराई से देखा जाए, तो इनके बीच एक बुनियादी अंतर सामने आता है और वह है डायवर्सिफिकेशन की सीमा का.
फ्लेक्सी-कैप फंड्स के पास निवेश के लिए किसी निश्चित सीमा की पाबंदी नहीं होती. वे जितनी कंपनियों में चाहें, निवेश कर सकते हैं. वहीं, फोकस्ड फंड्स को अधिकतम 30 शेयरों तक सीमित रहना पड़ता है. यानी, फोकस्ड फंड्स कुछ चुनिंदा शेयरों में केंद्रित निवेश करते हैं, जबकि फ्लेक्सी-कैप फंड्स अपने निवेश को व्यापक रूप से फैलाते हैं. यही कारण है कि फोकस्ड फंड्स अधिक ‘कंसन्ट्रेटेड’ रणनीति अपनाते हैं, जबकि फ्लेक्सी-कैप फंड्स ज्यादा विविधता और स्थिरता पर भरोसा करते हैं.
लोकप्रियता में कौन है आगे?
लोकप्रियता के मामले में फ्लेक्सी-कैप फंड्स का पलड़ा फिलहाल भारी है. AMFI (Association of Mutual Funds in India) के सितंबर 2025 तक के आंकड़ों के अनुसार, फ्लेक्सी-कैप फंड्स ने लगभग 5.12 लाख करोड़ रुपये की एसेट्स का मैनेजमेंट किया, जबकि फोकस्ड फंड्स के पास केवल 1.63 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति रही. इसका मतलब है कि फ्लेक्सी-कैप फंड्स का आकार फोकस्ड फंड्स की तुलना में लगभग तीन गुना बड़ा है. यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भारतीय निवेशक फिलहाल फ्लेक्सी-कैप फंड्स पर अधिक भरोसा कर रहे हैं.
इसका कारण हो सकता है कि इन फंड्स में विविधता ज्यादा है और कंपेरिटिवली रिस्क कम. लेकिन सवाल उठता है कि क्या निवेशक फोकस्ड फंड्स जैसे संभावित “हिडन जेम” को नजरअंदाज कर रहे हैं? चलिए, अब परफॉर्मेंस के नजरिए से इसे समझते हैं.
10 साल के आंकड़ों से क्या पता चलता है?
वैल्यूरिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक, फंड्स के प्रदर्शन का मूल्यांकन केवल किसी एक निश्चित तारीख या साल के रिटर्न देखकर नहीं किया जा सकता. लोग अक्सर रोलिंग रिटर्न का इस्तेमाल करते हैं, जो समय के साथ फंड की निरंतरता को मापने का अधिक सटीक तरीका है. मान लीजिए आप अपने परीक्षा परिणाम को केवल एक परीक्षा के अंकों से आंकें तो यह पूरी तस्वीर नहीं दिखाएगा. लेकिन अगर आप कई सालों के औसत अंकों को देखें, तो आपको अपनी स्थिरता का बेहतर अंदाजा मिलेगा. यही बात रोलिंग रिटर्न पर लागू होता है यह बताता है कि किसी फंड का प्रदर्शन समय के साथ कितना कंसिस्टेंट रहा है. 5-वर्षीय रोलिंग रिटर्न के आधार पर वैल्यूरिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि:
- 13 फोकस्ड फंड्स (जिनका 10 साल का इतिहास है) ने औसतन 16.4 फीसदी वार्षिक रिटर्न दिया.
- जबकि 18 फ्लेक्सी-कैप फंड्स का औसत रिटर्न 17.1 फीसदी रहा.
इन आंकड़ों से यह साफ है कि फ्लेक्सी-कैप फंड्स ने फोकस्ड फंड्स की तुलना में थोड़ी बढ़त बनाई है. हालांकि फर्क बहुत बड़ा नहीं है, पर लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट के लिहाज से यह मायने रखता है.
एक ही AMC के भीतर तुलना
चीजों को और स्पष्ट करने के लिए, विश्लेषकों ने एक ही फंड हाउस (AMC) के फोकस्ड और फ्लेक्सी-कैप फंड्स के बीच प्रदर्शन की तुलना की. ऐसे 8 जोड़े चुने गए जिनका कम से कम 10 साल का रिकॉर्ड मौजूद था. नतीजे चौंकाने वाले थे. 4 मामलों में फोकस्ड फंड्स ने बेहतर प्रदर्शन किया, जबकि 4 मामलों में फ्लेक्सी-कैप फंड्स ने बाजी मारी. यानि कुल मिलाकर, मुकाबला लगभग बराबरी का रहा.
हालांकि, जब इसमें वोलैटिलिटी यानी रिटर्न में उतार-चढ़ाव की स्थिरता का विश्लेषण जोड़ा गया, तो तस्वीर थोड़ी अलग दिखी. वोलैटिलिटी को मापने के लिए स्टैंडर्ड डेविएशन का इस्तेमाल किया गया. जहां ज्यादा स्टैंडर्ड डेविएशन का मतलब है कि फंड के रिटर्न में ज्यादा उतार-चढ़ाव है, वहीं कम स्टैंडर्ड डेविएशन यह दर्शाता है कि प्रदर्शन अपेक्षाकृत स्थिर रहा है. परिणाम बताते हैं कि केवल दो फोकस्ड फंड्स ही ऐसे थे जिन्होंने अपने फ्लेक्सी-कैप समकक्षों को रिटर्न और स्थिरता दोनों में मात दी.
रिस्क और स्टेबिलिटी की तुलना
जब 10 साल के समग्र आंकड़ों को देखा गया, तो पाया गया कि फोकस्ड फंड्स थोड़े ज्यादा वोलेटाइल हैं. फोकस्ड फंड्स का औसत स्टैंडर्ड डेविएशन 17.3 फीसदी रहा. जबकि फ्लेक्सी-कैप फंड्स के लिए यह 16.6 फीसदी था. इसका कारण समझना मुश्किल नहीं है. फोकस्ड फंड्स में केवल 30 स्टॉक्स तक की सीमा होती है, इसलिए अगर किसी एक कंपनी का प्रदर्शन कमजोर रहा, तो उसका असर पूरे पोर्टफोलियो पर पड़ सकता है. इसके विपरीत, फ्लेक्सी-कैप फंड्स में आमतौर पर 60 या उससे अधिक स्टॉक्स शामिल होते हैं, जिससे रिस्क अलग-अलग कंपनियों में बंट जाता है और समग्र उतार-चढ़ाव कम होता है.
निवेशकों के लिए नतीजे क्या?
अगर औसत प्रदर्शन की बात करें तो फ्लेक्सी-कैप फंड्स ने अब तक थोड़े बेहतर रिटर्न और कम जोखिम का संतुलन बनाए रखा है. फोकस्ड फंड्स का प्रदर्शन थोड़ा अस्थिर जरूर रहा है, लेकिन इन फंड्स की खासियत यह है कि ये केंद्रित पोर्टफोलियो में निवेश करते हैं यानी, अगर उनकी चुनी हुई कंपनियां अच्छा प्रदर्शन करती हैं, तो ये फंड्स औसत से कहीं बेहतर रिटर्न भी दे सकते हैं. इसलिए, फोकस्ड फंड्स को नजरअंदाज करना सही नहीं होगा. ऐसे कई फंड्स हैं जो हाई रिटर्न और कम वोलेटिलिटी दोनों का आदर्श संयोजन पेश करते हैं.
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डिस्क्लेमर: Money9live किसी स्टॉक, म्यूचुअल फंड, आईपीओ में निवेश की सलाह नहीं देता है. यहां पर केवल स्टॉक्स की जानकारी दी गई है. निवेश से पहले अपने वित्तीय सलाहकार की राय जरूर लें.