बिहार चुनाव के बीच गूंज रही हंसी की आवाज, श्रेया, प्रियेश जैसे युवा कॉमेडियन अपने जोक्स में ऐसे दिखा रहे हैं असली बिहार

जिस तरह नेता मंच से जनता को संबोधित करते हैं, उसी तरह अब कुछ युवा कॉमेडियन माइक थामकर बिहार की कहानी बयान कर रहे हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि ये रैलियों में नहीं, बल्कि कॉमेडी क्लबों और सोशल मीडिया मंचों पर आवाज उठा रहे हैं. खास बात ये है कि ये युवा कॉमेडियन साबित कर रहे हैं कि बिहार की पहचान सिर्फ राजनीति और पलायन तक सीमित नहीं है. अब वही बिहार है जो मंच पर खड़ा होकर खुद पर हंस भी सकता है और उसी हंसी में बदलाव की बात भी कर सकता है.

स्टैंडअप कॉमेडियन

बिहार में जब भी चुनाव का मौसम आता है, तो बात सिर्फ राजनीति की नहीं होती. बात होती है पहचान की, इमेज की और उस सोच की जो कभी मजाक थी, लेकिन अब आत्म-सम्मान बन रही है. जिस तरह नेता मंच से जनता को संबोधित करते हैं, उसी तरह अब कुछ युवा कॉमेडियन माइक थामकर बिहार की कहानी बयान कर रहे हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि ये रैलियों में नहीं, बल्कि कॉमेडी क्लबों और सोशल मीडिया मंचों पर आवाज उठा रहे हैं. ये कॉमेडियंस अपने हल्के-फुल्के अंदाज में बिहार की सामाजिक मनोदशा को तंज के जरिए करोड़ों भारतीयों को बिहार और उसकी छवि के बारे में एक नई समझ दे रहे हैं.

श्रेया प्रियम रॉय की यूपीएससी वाला जोक

कॉमेडियन श्रेय प्रियम रॉय का यूपीएससी वाला जोक सोशल मीडिया पर खूब वायरल है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, वह कहती हैं, मेरे पापा ने यूपीएससी की छह कोशिशें कीं, फिर तीन बच्चे पैदा किए. अब हर बच्चे के लिए छह-छह मौके हैं यानी कुल 18 मौके. रॉय बताती हैं कि यह जोक सिर्फ हंसी के लिए नहीं, बल्कि यह दिखाने के लिए है कि बिहारियों के संघर्ष को कैसे हल्के-फुल्के तरीके से पेश किया जा सकता है. रॉय कहती हैं, बिहार के बाहर के लोग हमारे राज्य को एक अलग नजरिए से देखते हैं. इसलिए मैं अपनी हर परफॉर्मेंस में बिहार की सच्चाई दिखाने की कोशिश करती हूं. यह दिखाने के लिए कि बिहार में क्या सही है और क्या गलत.

प्रियेश सिन्हा का तुनक-तुनक

दिल्ली से एक्टिव कॉमेडियन प्रियेश सिन्हा के एक्ट्स में बिहार की मिट्टी की खुशबू है, लेकिन उनके पंचलाइन्स उस मिट्टी से जुड़े पूर्वाग्रहों को तोड़ते हैं. वह कहते हैं, देश में कई दिक्कतें हैं, लेकिन उनमें से एक दिक्कत बिहारी होना भी है. लोगों को लगता है कि मैं जब भी बोलूंगा, लिट्टी-चोखा ही लेकर आऊंगा. प्रियेश की कॉमेडी में यह सेल्फ सटायर बिहार की संघर्षशीलता का पहचान है, जो खुद पर हंसकर भी अपनी बात गंभीरता से कहता है.

मंच पर हाजिरजवाब बिहारी महिला की पहचान

बिहार से जुड़ी एक और स्टीरियोटाइप यह है कि कॉमेडी या मनोरंजन के मंचों पर महिला आवाजें कम सुनाई देती हैं. शेरोन वर्मा इस धारणा को तोड़ रही हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ी शेरोन अपने अनुभवों को मंच पर बड़े आत्मविश्वास से रखती हैं. वह कहती हैं, जब आप एक बिहारी औरत के रूप में मंच पर आती हैं, तो लोग पहले से तय सोच लेकर बैठते हैं. पर जैसे ही आप माइक्रोफोन थामती हैं, वो सोच बदलने लगती है. शेरोन का मानना है कि बिहारी महिलाएं सिर्फ मेहनती नहीं, बल्कि हाजिरजवाब भी हैं और यही अब उनकी नई पहचान बन रही है.

लोक-संस्कृति और गर्व से कहा बिहारी

कॉमेडियन प्रवाल राज अपने सेट्स में बिहारी बोली और लोक-संस्कृति का खूब इस्तेमाल करते हैं. उनका मानना है कि हास्य के जरिए सामाजिक असमानताओं को समझना और बताना अधिक असरदार होता है.
प्रवाल कहते हैं, जब कोई मुझसे कहता है कि बिहारी शब्द को जोक में इस्तेमाल मत करो, तो मैं कहता हूं हम उसी शब्द को गर्व से बोलेंगे, क्योंकि अब वो अपमान नहीं, पहचान है. उनकी कॉमेडी में मिथिला की भाषा, भोजपुरी गीत और सामाजिक यथार्थ सब एक साथ आते हैं. राज कहते हैं, दिल्ली और महाराष्ट्र के लोगों को भी अब समझ आने लगा है कि बिहारी का मतलब सिर्फ स्टीरियोटाइप नहीं, एक सांस्कृतिक ताकत है.

खास बात ये है कि ये युवा कॉमेडियन साबित कर रहे हैं कि बिहार की पहचान सिर्फ राजनीति और पलायन तक सीमित नहीं है. अब वही बिहार है जो मंच पर खड़ा होकर खुद पर हंस भी सकता है और उसी हंसी में बदलाव की बात भी कर सकता है.

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