बैंकों को साइबर फ्रॉड रोकने के लिए मिला नया हथियार, हर फोन पर रहेगी नजर, अब क्या करेंगे अपराधी !
डिजिटल इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) ने फाइनेंशियल फ्रॉड रिस्क इंडिकेटर (FRI) नाम की एक नया सिस्टम लॉन्च किया है. यह सिस्टम मोबाइल नंबरों को रिस्क के आधार पर मीडियम, हाई, वेरी हाई में बांटता है. FRI, NCRP, चक्षु प्लेटफॉर्म और बैंकिंग डेटा का इस्तेमाल करता है. यह बैंकों और वित्तीय संस्थानों को धोखाधड़ी को रोकने में मदद करता है. RBI ने सभी बैंकों और एनबीएफसी को सलाह दी है कि इस टूल का इस्तेमाल करें जिससे साइबर ठगी को रोका जा सके.
Financial Fraud Risk Indicator: भारतीय रिजर्व बैंक ने देश के सभी बैंकों और वित्तीय संस्थानों को साइबर धोखाधड़ी से बचने के लिए दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा विकसित नए टूल को इस्तेमाल करने का निर्देश दिया है. इस टूल के माध्यम से ऑनलाइन धोखाधड़ी वाले ट्रांजैक्शन को रोका जा सकता है. बैंक और वित्तीय संस्थान रियल टाइम में वित्तीय धोखाधड़ी को मॉनिटर करके इससे बच सकते हैं. इसके लिए संस्थान को फाइनेंशियल फ्रॉड रिस्क इंडिकेटर टूल (Financial Fraud Risk Indicator) का इस्तेमाल करना होगा. आइए जानते हैं कि क्या है यह टूल और काम कैसे करता है.
काम कैसे करता है ये टूल?
ये टूल किसी मोबाइल नंबर को तीन कैटेगरी में बांटता है. जैसे मीडियम, हाई और वेरी हाई रिस्क. इससे ये पता चलता है कि किस नंबर पर धोखाधड़ी होने का कितना खतरा है. इस क्लासिफिकेशन में सरकार की कई एजेंसियां काम करती है. इसमें नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल (NCRP), इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C’s), दूरसंचार विभाग का चक्षु पोर्टल और बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा दी गई खुफिया रिपोर्ट शामिल हैं.
क्या होंगे फायदे?
इसका फायदा ये है कि बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान (NBFC) और यूपीआई (UPI) सेवा देने वाले ये तय कर सकते हैं कि किस मोबाइल नंबर पर ज्यादा सतर्कता बरतनी है. अगर किसी नंबर पर हाई रिस्क है तो वे यूजर की सुरक्षा के लिहाज से अतिरिक्त कदम उठा सकते हैं. इसके अलावा डिजिटल इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) मोबाइल नंबर को निरस्त कर सकती है. और निरस्त किए गए मोबाइल नंबर की एक सूची तैयार होती है.
डिजिटल इंटेलिजेंस यूनिट ये लिस्ट सभी संबंधित संस्थानों के साथ शेयर करती है. इस लिस्ट में उन मोबाइल नंबरों की डिटेल्स होती है जिन्हें साइबर क्राइम, फर्जीवाड़ा, गलत इस्तेमाल या आधार वेरिफिकेशन में विफल रहने की वजह से बंद कर दिया गया है. इनमें से कई नंबर धोखाधड़ी में इस्तेमाल किए गए होते हैं. देश में साइबर अपराध की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है.
10 साल में 733.26 करोड़ रुपये का साइबर ठगी
स्कैमर्स तरह-तरह के हथकंडे अपनाकर लोगों की जेब खाली कर रहे हैं. इसी साल वित्त मंत्रालय की ओर से बताया गया कि पिछले 10 सालों में जैसे-जैसे ऑनलाइन पेमेंट बढ़ा है, डिजिटली क्राइम करने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है. साल 2014-15 से दिसंबर 2024 तक देश में 63,315 डिजिटल पेमेंट फ्रॉड रिपोर्ट किया गया है. इसमें कुल 733.26 करोड़ रुपये का वित्तीय नुकसान हुआ. इस अवधि में कुल साइबर धोखाधड़ी के नुकसान में लगभग 10 गुना वृद्धि हुई है, जो 2014-15 में 18.46 करोड़ रुपये से बढ़कर 2023-24 में 177.05 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है.