वित्तीय सेहत की सालाना जांच क्यों है जरूरी, एक्सपर्ट से जानिए सही समय पर रिव्यू का महत्व
वित्तीय योजना बनाना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है समय-समय पर उसकी समीक्षा करना. बदलती जरूरतें, आय और बाजार की स्थिति कई संकेत देती हैं, जिन पर ध्यान देना भविष्य की आर्थिक स्थिरता के लिए अहम हो सकता है.
जैसे-जैसे कैलेंडर वर्ष का अंत नजदीक आता है, अपने वित्तीय लक्ष्यों की समीक्षा करना जरूरी हो जाता है. यह समीक्षा इसलिए अहम है ताकि यह समझा जा सके कि हम अपने लक्ष्यों को हासिल करने में कितनी दूर तक पहुंचे हैं और साथ ही बदलती परिस्थितियों के अनुसार जरूरी बदलाव किए जा सकें.
अपनी वित्तीय यात्रा की योजना बनाना क्यों जरूरी है
जब आप किसी यात्रा की शुरुआत करते हैं, तो आपके मन में एक मंजिल तय होती है. समय और संसाधनों की उपलब्धता को देखते हुए आप उस मंजिल तक पहुंचने के लिए साधन चुनते हैं. अगर आप सड़क मार्ग से यात्रा कर रहे हैं, तो रास्ते में आने वाले मील के पत्थरों को देखते रहते हैं ताकि यह समझ सकें कि कितनी दूरी तय हो चुकी है और मंजिल अभी कितनी दूर है. अगर जरूरत पड़े, तो आप अपनी रफ्तार बढ़ाते हैं या कुछ ठहराव छोड़ देते हैं. यही समीक्षा आपकी वित्तीय यात्रा में भी उतनी ही, बल्कि उससे भी ज्यादा जरूरी होती है.
हम सभी के लिए कमाई की अवधि आमतौर पर सीमित होती है, क्योंकि एक तय उम्र के बाद रिटायरमेंट आ जाता है और शारीरिक क्षमता भी एक सीमा तक ही साथ देती है. हम अपने निवेश अलग-अलग लक्ष्यों को ध्यान में रखकर करते हैं. ये लक्ष्य बच्चों की शिक्षा और शादी से लेकर घर खरीदने और सबसे अहम, अपनी रिटायरमेंट प्लानिंग तक हो सकते हैं.
वित्तीय लक्ष्यों और निवेश की सालाना समीक्षा क्यों और कैसे करें
सभी वित्तीय सलाहकार हर साल अपने वित्तीय प्लान की समीक्षा करने पर जोर देते हैं. इस समीक्षा में लक्ष्यों की जांच के साथ-साथ उन निवेशों के प्रदर्शन को भी देखा जाता है, जो इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए किए गए हैं. शादी या बच्चे के जन्म जैसे बड़े जीवन परिवर्तन आपकी प्राथमिकताओं को बदल देते हैं, ऐसे में लक्ष्यों की दोबारा समीक्षा जरूरी हो जाती है. इसी तरह नौकरी बदलने या आय में बदलाव से आपकी खर्च करने योग्य आय प्रभावित होती है, जिसका असर निवेश पर भी पड़ता है. आय बढ़ने पर लक्ष्यों के लिए ज्यादा फंड आवंटित करने की जरूरत होती है.
निवेश की योजना बनाते समय हम यह मानकर चलते हैं कि हमारे निवेश बाजार की स्थिति और उस एसेट क्लास के पुराने रिटर्न के आधार पर कुछ निश्चित रिटर्न देंगे. निवेश का चुनाव हमारी जोखिम उठाने की क्षमता पर भी निर्भर करता है. मौजूदा लक्ष्यों के मामले में कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां आ सकती हैं, जिनसे कोई लक्ष्य बढ़ जाए या पूरी तरह खत्म ही हो जाए. ऐसे में म्यूचुअल फंड में चल रही SIP की राशि बदलनी पड़ सकती है या निवेश को किसी दूसरे लक्ष्य के लिए इस्तेमाल करना पड़ सकता है.
निवेश की समीक्षा से यह भी पता चलता है कि कुछ म्यूचुअल फंड स्कीमें अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहीं. ऐसी स्थिति में कमजोर प्रदर्शन वाली स्कीम में SIP बंद कर बेहतर प्रदर्शन करने वाली स्कीम में निवेश करना जरूरी हो जाता है.
इसके अलावा, कुल एसेट एलोकेशन की समीक्षा भी उतनी ही जरूरी है. अगर किसी साल किसी एसेट क्लास का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा है, तो पोर्टफोलियो का संतुलन बिगड़ सकता है. ऐसे में री-बैलेंसिंग जरूरी होती है ताकि जोखिम कम हो और रिटर्न बेहतर हो. उदाहरण के लिए, अगर तेजी के बाजार में इक्विटी का हिस्सा बहुत बढ़ गया है, तो कुछ पैसा डेट इंस्ट्रूमेंट्स में शिफ्ट करना चाहिए. वहीं, मंदी के समय डेट से इक्विटी की ओर निवेश बढ़ाया जा सकता है.
व्यक्तिगत निवेश और कुल एसेट क्लास की यह समीक्षा तय समय में जरूरी फंड जुटाने और अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बेहद जरूरी है.
बीमा जरूरतों की समीक्षा भी उतनी ही जरूरी
जैसे वित्तीय लक्ष्यों और निवेश की समीक्षा जरूरी है, वैसे ही अपने बीमा पोर्टफोलियो की समीक्षा भी जरूरी है. जीवन में आने वाले बदलाव आपकी बीमा जरूरतों को प्रभावित करते हैं. शादी या बच्चे के जन्म से बीमा कवर बढ़ाने की जरूरत होती है. आय बढ़ने से जीवनशैली बदलती है, जिससे जीवन बीमा की जरूरत भी बढ़ जाती है.
सामान्य नियम के तौर पर, किसी व्यक्ति का जीवन बीमा उसकी सालाना आय का कम से कम 12 गुना होना चाहिए. चूंकि आय आमतौर पर महंगाई के साथ बढ़ती है, इसलिए बदली परिस्थितियों और बढ़ी आय के अनुसार बीमा कवर की समीक्षा और बढ़ोतरी जरूरी है.
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भारत में शिक्षा और चिकित्सा खर्च की महंगाई सबसे ज्यादा है. अगर आपने पहले से हेल्थ इंश्योरेंस ले रखा है, तो मौजूदा इलाज के खर्च को देखते हुए उसकी समीक्षा जरूरी है. अगर आपको हाई ब्लड प्रेशर या डायबिटीज जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारी है, तो भविष्य में होने वाले इलाज को ध्यान में रखते हुए हेल्थ कवर बढ़ाना जरूरी है. ऐसी बीमारियों से जुड़ा इलाज तुरंत न भी लगे, लेकिन आगे चलकर इसकी जरूरत पड़ सकती है. चूंकि पहले से मौजूद बीमारियों पर अक्सर वेटिंग पीरियड होता है, इसलिए समय रहते कवर बढ़ाना फायदेमंद रहता है.
अगर आप अपने एमंप्लॉयर द्वारा दिए गए ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस के तहत कवर हैं, तो भी अपना अलग निजी हेल्थ इंश्योरेंस होना जरूरी है, और इसके लिए आज से बेहतर समय शायद कोई दूसरा नहीं हो सकता.
लेखक एक टैक्स और इंवेस्टमेंट एक्सपर्ट हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं. आप उन्हें jainbalwant@gmail.com पर या ट्विटर हैंडल @jainbalwant पर संपर्क कर सकते हैं.