NCLAT ने ऐनीज अपैरल से जुर्माना वसूलने संबंधी सेबी की अपील खारिज की, जानें क्या है पूरा मामला और क्या रहीं दलीलें
एक अहम ट्रिब्यूनल फैसले ने इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया से जुड़े दावों की समयसीमा पर फिर से ध्यान खींचा है. नियामक अधिकार, लिक्विडेशन की तारीख और कानूनी सीमाओं को लेकर आए इस आदेश के दूरगामी असर हो सकते हैं.
शेयर बाजार नियामक सेबी (SEBI) को एनसीएलएटी से बड़ा झटका लगा है. नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) ने उस अपील को खारिज कर दिया है, जिसमें सेबी ने लिक्विडेशन की प्रक्रिया में गई एक कंपनी से जुर्माने की वसूली की मांग की थी. ट्रिब्यूनल ने साफ कहा कि एक बार इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के तहत लिक्विडेशन शुरू हो जाने के बाद नए या देर से किए गए दावे स्वीकार नहीं किए जा सकते.
NCLAT का साफ फैसला
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, NCLAT ने कहा कि लिक्विडेशन शुरू होने की तारीख के बाद सभी दावे “फ्रीज” हो जाते हैं. ऐसे में सेबी की ओर से 797 दिनों की देरी से दाखिल किया गया दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता. ट्रिब्यूनल ने माना कि लिक्विडेटर ने सेबी के दावे को खारिज करते समय IBC और लिक्विडेशन प्रोसेस रेगुलेशंस (LPR) के दायरे में ही काम किया है.
NCLAT ने अपने आदेश में कहा कि IBC की मंशा बिल्कुल साफ है. लिक्विडेशन की शुरुआत की तारीख को “अटूट पवित्रता” दी गई है. इसका मतलब यह है कि इस तारीख के बाद किसी भी दावे को स्वीकार करने की कोई गुंजाइश नहीं है. ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा कि लिक्विडेटर के पास ऐसी कोई छूट या लचीलापन नहीं है कि वह तय तारीख के बाद आए दावों को मंजूरी दे सके.
मामला क्या है?
यह पूरा मामला रिलिगेयर फिनवेस्ट लिमिटेड (RFL) से जुड़ा है, जो रिलिगेयर एंटरप्राइजेज लिमिटेड (REL) की सब्सिडियरी रही है. सेबी को RFL में फंड डायवर्जन और वित्तीय गड़बड़ी से जुड़ी शिकायतें मिली थीं. जांच के बाद सेबी ने ऐनीज अपैरल को 15 फरवरी 2021 को शो कॉज नोटिस भेजा था. आरोप था कि REL के फंड्स का गलत इस्तेमाल RFL के जरिए किया गया.
सेबी की मांग और अपील
सेबी ने ऐनीज अपैरल से 21.80 लाख रुपये का जुर्माना वसूलने की मांग की थी. यह कंपनी इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया के दौरान कोई खरीदार नहीं मिलने के बाद लिक्विडेशन में चली गई थी. सेबी ने NCLAT में दलील दी कि लिक्विडेटर को सेबी की कार्यवाही की जानकारी थी और उसे सेबी एक्ट के तहत जुर्माने की राशि चुकानी चाहिए थी.
सेबी ने यह भी कहा कि दावा दाखिल करने में हुई देरी जानबूझकर नहीं थी और न ही इसका मकसद लिक्विडेशन प्रक्रिया में बाधा डालना था. लेकिन NCLAT ने इस दलील को स्वीकार नहीं किया. ट्रिब्यूनल ने दो टूक कहा कि IBC के तहत लिक्विडेशन शुरू होने के बाद सभी दावे तय हो जाते हैं और देर से आए दावों के लिए कोई जगह नहीं है.
यह भी पढ़ें: सेंसेक्स-निफ्टी की धीमी रफ्तार में भी चमका रेखा झुनझुनवाला का पोर्टफोलियो! एक साल में नेटवर्थ में 5.11% उछाल
अपील खारिज, कोई लागत नहीं
जस्टिस अशोक भूषण और तकनीकी सदस्य बरुण मित्रा की बेंच ने कहा कि सेबी की अपील में कोई दम नहीं है और इसे खारिज किया जाता है. साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि इस मामले में कोई लागत नहीं लगाई जाएगी.
कुल मिलाकर, इस फैसले से यह साफ हो गया है कि IBC के तहत लिक्विडेशन प्रक्रिया में तय समयसीमा का पालन सबसे अहम है, चाहे दावा किसी भी नियामक संस्था का क्यों न हो.