Paras Defence और जर्मन कंपनी HPS GmbH ने की Space Tech डील, रॉकेट बन सकता है शेयर, रखें नजर
भारत की प्राइवेट डिफेंस और स्पेस टेक कंपनी Paras Defence ने जर्मनी की HPS GmbH के साथ एक करार किया है. इसके तहत भारत में Deployable Satellite Reflector Systems के लिए साझेदारी की गई है. इस समझौते को भारत के स्पेस टेक सेक्टर के लिहाज से मील का पत्थर माना जा रहा है.

Paras Defence-HPS GmbH Space Tech Partnership: अंतरिक्ष के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता एक राष्ट्रीय लक्ष्य है. देश को Space Tech के मामले में नई क्षमता और दिशा देने की कोशिश के तहत Paras Defence & Space Technologies Ltd. ने जर्मनी की High Performance Space Structure Systems GmbH (HPS GmbH) के साथ रणनीतिक साझेदारी की है. दोनों कंपनियों के बीच हुए Teaming Agreement के तहत वे भारत में Deployable Antenna Reflector Subsystems की साझा मैन्युफैक्चरिंग करेंगी.
साझेदारी से देश को क्या फायदा?
यह साझेदारी भारत को एडवांस्ड स्पेस टेक्नोलॉजिकल क्षमता हासिल करने में मदद करेगी. इसके तहत रिफ्लेक्टर सबसिस्टम्स का भारत में ही निर्माण होगा. अब तक भारत इनके लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहा है. असल में इनका इस्तेमाल हाई स्पीड सैटेलाइट इंटरनेट, रियल टाइम अर्थ ऑब्जर्वेशन एंड इमेजिंग, डिजास्टर रिस्पॉन्स, सिक्योर मिलिट्री कम्युनिकेशन में किया जाता है. इससे भारत में नए और एडवांस्ड मिलिट्री कम्युनिकेशन और कॉमर्शियल सैटेलाइट इंटरनेट को मिलेगा बढ़ावा मिलेगा.
क्या होगी पारस डिफेंस की भूमिका?
Paras Defence इस समझौते के तहत भारतीय ग्राहकों के लिए टच पॉइंट की भूमिका निभाएगी, जबकि HPS GmbH डिजाइन, निर्माण और परीक्षण में तकनीकी सहयोग देगी. इसके अलावा आने वाले दिनों में दोनों कंपनी मिलकर भारत में एक साझा मैन्युफैक्चरिंग यूनिट भी बनाएंगी. PTI की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस डील को लेकर Paras Defence के निदेशक अमित महाजन का कहना है, “यह रणनीतिक आत्मनिर्भरता की दिशा में निर्णायक कदम है.” इसके साथ ही उन्होंने कहा, “यह साझेदारी हमें भारत में एडवांस्ड स्पेस इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में सक्षम बनाएगी.”
क्या-क्या होगा समझौते के तहत?
इस समझौते के तहत Reflector और Arm Assemblies, Hold-Down Release Mechanisms (HDRMs), Deployment Electronics और Thermal Hardware जैसे अहम उपकरणों का भारत में निर्माण किया जाएगा. ये सभी उपकरण किसी भी सैटेलाइट मिशन की कामयाबी के लिए जरूरी होते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक यह करार भारत को वैश्विक अंतरिक्ष तकनीकी मानचित्र पर अधिक मजबूती से स्थापित करेगा. इसके साथ ही ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियानों को भी बल देगा.
शेयर पर रखें नजर?
पिछले एक महीने में डिफेंस शेयरों में हल्की गिरावट का दौर रहा है. पारस डिफेंस के शेयर प्राइस में पिछले एक महीने में करीब 25 फीसदी की गिरावट आई है. हालांकि, Tradingview के स्टॉक एनालिसिस और ब्रोकरेज रिपोर्ट्स के मुताबिक आने वाले 12 महीने में इस शेयर में 50 फीसदी तक का उछाल आ सकता है. इसके अलावा एनालिस्ट्स की तरफ से शेयर को स्ट्रॉन्ग बायिंग जोन में रखा गया है.

क्या करती है पारस डिफेंस?
पारस डिफेंस के कामकाज के दायरे में डिफेंस ऑटोमेशन, कंट्रोल सिस्टम, कमांड एंडकंट्रोल कंसोल, एवियोनिक्स शामिल हैं. इसके अलावा कंपनी फ्लो-फॉर्म्ड रॉकेट और मिसाइल मोटर ट्यूब, इलेक्ट्रोमैकेनिकल असेंबली और रिमोट-कंट्रोल्ड बॉर्डर डिफेंस सिस्टम भी बनाती है. जर्मन कंपनी से डील के अलावा ब्रह्मोस मिसाइलों के बढ़ते ऑर्डर का फायदा भी पारस डिफेंस को मिलने की उम्मीद है.
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