NRI के लिए ऑप्शन ट्रेडिंग होगी आसान, SEBI ने किया बड़ा बदलाव, जानें क्या होगा बाजार पर असर?

SEBI ने NRI निवेशकों के लिए डेरिवेटिव ट्रेडिंग के नियम आसान कर दिए हैं. अब NRI को Clearing Member और CP Code की जरूरत नहीं पड़ेगी. माना जा रहा है कि इससे बाजार में विदेशी निवेशकों की भागीदारी बढ़ेगी. इससे भारतीय डेरिवेटिव मार्केट मजबूत होने की उम्मीद है.

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भारतीय शेयर बाजार के नियामक SEBI ने एक्सचेंज ट्रेडेड डेरिवेटिव्स में NRI निवेशकों के लिए निवेश नियमों में बड़ी ढील का ऐलान किया है. अब NRIs को Clearing Member के नाम की जानकारी देने और Custodial Participant (CP) Code असाइन कराने की जरूरत नहीं होगी.

क्या कहा SEBI ने?

SEBI ने अपने सर्कुलर में कहा कि Ease of Doing Investment के तहत यह बदलाव किया गया है. इससे NRIs के लिए डेरिवेटिव ट्रेडिंग सरल और सुविधाजनक बनेगी. सेबी का कहना है कि यह कदम ऑपरेशनल एफिशिएंसी लाने और Brokers’ Industry Standards Forum की सिफारिशों के मुताबिक है.

क्या होगा बदलाव का असर?

इस फैसले के बाद अब NRI पोजिशन लिमिट्स की निगरानी एक्सचेंज और क्लियरिंग कॉरपोरेशन की तरफ से उसी तरह की जाएगी, जैसे कि बाकी क्लाइंट्स के लिए की जाती है. हालांकि, सेबी ने साफ किया है कि NRI ट्रेडर्स के लिए पोजिशन लिमिट्स में कोई बदलाव नहीं किया गया है. पोजिशन लिमिट वही रहेगी, जो पहले से तय है. इस बदलाव से NRI निवेशकों को अतिरिक्त दस्तावेजों की जरूरत नहीं पड़ेगी और भारत बाजार में ट्रेडिंग करना आसान हो जाएगा.

निवेशकों के लिए क्या फायदे?

NRI निवेशकों को अब अलग से Clearing Member के नाम और CP Code देने की जरूरत नहीं पड़ेगी. Clearing Member उन सेबी रजिस्टर्ड संस्थान या ब्रोकरेज हाउस को कहा जाता है, जिन्हें ट्रेड्स सेटलमेंट और क्लियरिंग के लिए स्टॉक एक्सचेंज या क्लियरिंग कॉरपोरेशन की तरफ से मंजूरी दी जाती है ताकि वे क्लाइंट्स के ट्रेड क्लियर और सेटल कर सकें. वहीं, Custodial Participant Code एक यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर होता है, जिसे एक्सचेंज या क्लियरिंग कॉरपोरेशन की तरफ से NRI व विदेशी निवेशकों को असाइन किया जाता है. इस कोड का इस्तेमाल एक्सचेंज में ट्रेड होने वाले डेरिवेटिव्स यानी फ्यूचर एंड ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट्स में NRI या विदेशी निवेशकों की पोजिशन को ट्रैक करने के लिए किया जाता है.

क्या होगा बाजार पर असर?

तमाम ब्रोकरेज हाउस और बाजार के जानकारों का मानना है कि इससे F&O में वॉल्यूम बढ़ेगा, जिसकी वजह से बाजार का आकार भी बढ़ेगा. इसके अलावा फ्यूचर एंड ऑप्शन में लिक्विडिटी बढ़ेगी, जिसका फायदा रिटेल ट्रेडर्स को भी मिलेगा.