कभी डॉलर के बराबर था रुपया, जानें कैसे बिगड़ी सेहत, कब-कब भरभरा कर गिरा, आज है 90 के पार

गुरुवार को रुपया लुढ़ककर 90.43 के नए ऑल-टाइम लो पर गया. बड़े स्तर पर विदेशी निवेशकों की बिकवाली ने रुपये पर सीधा दबाव डाला. इसके अलावा, आयात करने वाले की ओर से लगातार डॉलर खरीद ने भी मांग बढ़ा दी, जिससे रुपये में कमजोरी गहराती चली गई.

रुपये में कमजोरी Image Credit: freepik

गुरुवार की शुरुआती ट्रेडिंग में रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर 90.43 पर पहुंच गया. बाजार में यह साफ दिख रहा है कि रुपया इस समय बाहरी और घरेलू दोनों मोर्चों पर चुनौती का सामना कर रहा है. 88 का लेवल टूटने के बाद से ही दबाव साफ-साफ देखने को मिल रहा है. अब सवाल ये है कि क्या डॉलर के मुकाबले कभी रुपया बराबर हुआ करता था, जो अभी 90 के पार निकल चुका है. आखिर ऐसी क्या परिस्थिति बनी कि रुपया इतना लाचार हो गया?

FII की भारी बिकवाली और डॉलर की मजबूत मांग

गुरुवार को रुपया लुढ़ककर 90.43 के नए ऑल-टाइम लो पर गया. बड़े स्तर पर विदेशी निवेशकों की बिकवाली ने रुपये पर सीधा दबाव डाला. इसके अलावा, आयात करने वाले की ओर से लगातार डॉलर खरीद ने भी मांग बढ़ा दी, जिससे रुपये में कमजोरी गहराती चली गई.

RBI का सीमित हस्तक्षेप

इंटरनेशनल मॉनेट्री फंड (IMF) ने हाल ही में भारत के एक्सचेंज रेट मैनेजमेंट को “स्टेबलाइज्ड” से बदलकर “क्रॉल-लाइक” कैटेगरी में डाला है. इसका मतलब यह है कि अब RBI रुपये को कड़े तरीके से बचाने के बजाय सिर्फ उसकी चाल को गाइड कर रहा है. यानी सख्त दखल कम और Currency Market को अपनी दिशा खुद तय करने की छूट ज्यादा.

MPC मीटिंग से पहले सतर्कता

RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक से पहले सेंट्रल बैंक का रुख सतर्क रहा. बड़े फैसलों से पहले आमतौर पर RBI भारी डॉलर बेचकर बाजार में हस्तक्षेप नहीं करता. इसी वजह से रुपये को गिरावट रोकने के लिए अपेक्षित सपोर्ट नहीं मिला.

रुपया बनाम डॉलर, कैसे बदलती गई तस्वीर

आज भले ही डॉलर के मुकाबले 1 रुपया सिर्फ 0.013 USD के आसपास हो, लेकिन 1947 में भारत की स्थिति बिल्कुल अलग थी. उस समय 1 रुपया = 1 डॉलर था, यानी भारत दुनिया की अपेक्षाकृत मजबूत अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता था. लेकिन धीरे-धीरे आर्थिक दबाव, युद्ध, विकास खर्च और अंतरराष्ट्रीय मैक्रो स्थितियों ने रुपये को कमजोर कर दिया.

क्यों किया जाता है करेंसी का डीवैल्यूएशन?

भारत समेत कई देश अपनी करेंसी का Devaluation इसलिए करते हैं ताकि खराब हो रहे Balance of Payment में सुधार हो, आयात महंगे हों और निर्यात सस्ते, निर्यात करने वाले ज्यादा कमाई कर सकें, सरकारी खजाने में विदेशी मुद्रा की आमद बढ़े इससे देश के व्यापार संतुलन में सुधार आता है और अर्थव्यवस्था को राहत मिलती है.

भारत में रुपये के तीन बड़े डीवैल्यूएशन

पहला डीवैल्यूएशन (1950–1960)

आजादी के बाद विकास खर्च बढ़ा और सरकारी खजाना कमजोर होने लगा. देश को बुनियादी ढांचा खड़ा करने के लिए भारी पूंजी की जरूरत थी. इसी दौरान रुपये का डीवैल्यूएशन हुआ और दर पहुंची 1 डॉलर = 4.75 रुपये.

दूसरा डीवैल्यूएशन (1962–1966)

चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध, साथ ही लगातार सूखे ने आर्थिक स्थिति को खराब कर दिया. खेती और उद्योग दोनों प्रभावित हुए. सरकार को खर्च चलाने के लिए फिर रुपये का डीवैल्यूएशन करना पड़ा.

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तीसरा डीवैल्यूएशन1991

तीसरा डीवैल्यूएशन दो चरणों में हुआ. 1 जुलाई को लगभग 9 फीसदी और 3 जुलाई को 11 फीसदी की कमी के साथ, कुल 18-20 फीसदी डीवैल्यूएशन. यह भुगतान संतुलन संकट, खाड़ी युद्ध और विदेशी मुद्रा भंडार की कमी के कारण था. इसके बाद रुपये को बाजार-निर्धारित दर पर छोड़ दिया गया.