Starlink, OneWeb और Jio-SES को तकनीकी मंजूरी मिली, स्पेक्ट्रम मिलते ही शुरू होंगी सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सर्विस
भारत में अब सैटेलाइट इंटरनेट की शुरुआत लगभग तय मानी जा रही है. महीनों से जिस बड़े बदलाव का इंतजार हो रहा था, वह अब बस एक कदम दूर है. जैसे ही स्पेक्ट्रम अलॉटमेंट की प्रक्रिया पूरी होगी. सैटेलाइट इंटरनेट का उद्देश्य मोबाइल टावरों या फाइबर नेटवर्क से मुकाबला करना नहीं है. गोयंका के मुताबिक, “टेरिस्ट्रियल कनेक्टिविटी आने वाले समय में भी सबसे ज्यादा उपयोग में रहेगी.
Satellite Broadband Service: भारत में अब सैटेलाइट इंटरनेट की शुरुआत लगभग तय मानी जा रही है. महीनों से जिस बड़े बदलाव का इंतजार हो रहा था, वह अब बस एक कदम दूर है. जैसे ही स्पेक्ट्रम अलॉटमेंट की प्रक्रिया पूरी होगी. वैसे ही, Starlink, OneWeb और Jio-SES जैसी ग्लोबल कंपनियां भारत में अपनी पहली कमर्शियल सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाएं शुरू कर सकेंगी. यह कदम ऐसे समय में आ रहा है जब देश के दूरदराज इलाकों में इंटरनेट कनेक्टिविटी बढ़ाने की मांग लगातार बढ़ रही है और सैटेलाइट टेक्नोलॉजी को गेम-चेंजर माना जा रहा है.
अंतिम स्टेप में स्पेक्ट्रम अलॉटमेंट की प्रक्रिया
मनी कंट्रोल को दिए एक इंटरव्यू में IN-SPACe के प्रमुख पवन गोयंका ने कहा कि Starlink, Eutelsat OneWeb और Jio-SES तकनीकी रूप से भारत में कमर्शियल लॉन्च के लिए तैयार हैं. उन्होंने बताया कि इन तीनों कंपनियों को IN-SPACe की तरफ से मंजूरी मिल चुकी है और सुरक्षा संबंधी जांच चल रही है. गोयंका के अनुसार, IN-SPACe की ओर से अब कोई सुरक्षा से जुड़ी मंजूरी बाकी नहीं है. अब सारी प्रक्रिया दूरसंचार विभाग (DoT) और TRAI की ओर है, जहां स्पेक्ट्रम अलॉटमेंट की इंटरनल प्रक्रिया अंतिम चरण में है.
सैटेलाइट इंटरनेट का उद्देश्य मोबाइल टावरों या फाइबर नेटवर्क से मुकाबला करना नहीं है. गोयंका के मुताबिक, “टेरिस्ट्रियल कनेक्टिविटी आने वाले समय में भी सबसे ज्यादा उपयोग में रहेगी. सैटेलाइट इंटरनेट केवल उन जगहों पर काम आएगा जहां पहुंचना मुश्किल है. मतलब साफ है कि सैटेलाइट तकनीक एक सहायक भूमिका निभाएगी, न कि बड़े पैमाने पर लोगों के लिए मुख्य सेवा बनेगी.
दुनिया में चर्चा बटोर रही D2M जैसी सेवाओं
डायरेक्ट-टू-मोबाइल (D2M) जैसी सेवाओं पर दुनिया में चर्चा बढ़ रही है, यह अभी निकट भविष्य में भी सीमित उपयोग वाली सर्विस ही रहेगी. नई कंपनियों की एंट्री पर उन्होंने कहा कि Amazon का Kuiper प्रोजेक्ट अभी IN-SPACe में समीक्षा के चरण में है. इसके अलावा Globalstar जैसे खिलाड़ी ने सिंगल सैटेलाइट के लिए आवेदन दिया है, लेकिन पूरी कॉन्स्टेलेशन के लिए नहीं. उन्होंने स्पष्ट किया कि अब तक किसी कंपनी ने पूरी सैटेलाइट कॉन्स्टेलेशन लगाने के लिए आवेदन नहीं किया है.
गोयंका ने यह भी दोहराया कि IN-SPACe की जिम्मेदारी सिर्फ मंजूरी देने की नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, कानूनी अनुपालन और अंतरराष्ट्रीय संधियों के पालन का मूल्यांकन करना भी है. यह जिम्मेदारी और भी महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि ChinaSat, APT Satellite और AsiaSat जैसे विदेशी खिलाड़ी भी भारत में रुचि दिखा रहे हैं. सरकार द्वारा 100 फीसदी FDI की मंजूरी और जल्द आने वाले स्पेक्ट्रम गाइडलाइन्स के बाद सैटेलाइट सेक्टर के तेजी से बढ़ने की उम्मीद है.
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