इन भूतहा कंपनियों से रहें सावधान! कागजों पर अमीर, हकीकत में फकीर; कैश वैल्यू से नीचे ट्रेड कर रहे स्टॉक
कुछ कंपनियां कागजों पर कैश-रिच दिखती हैं, लेकिन असलियत में इनका ऑपरेटिंग बिजनेस बेहद कमजोर है. यहां ऐसी तीनों कंपनियों के बारे में बता रहे हैं, जो अपने स्टॉक की कैश वैल्यू से नीचे ट्रेड कर रहे हैं, जिससे ये वैल्यू ट्रैप बन चुके हैं. फ्लैट ग्रोथ, गिरती कैटेगरी और जीरो कैपिटल-रिटर्न पॉलिसी निवेशकों के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकती है.
कैश से भरी बैलेंस शीट, बड़े प्रमोटर का नाम और कागजों पर दमदार नेट-वर्थ पहली नजर में ये कंपनियां किसी भी वैल्यू इन्वेस्टर को लुभा सकती हैं. लेकिन, वैल्यू रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक रिलायंस इंडस्ट्रीज समर्थित तीन कंपनियां जस्ट डायल, डेन नेटवर्क और हैथवे की असल ग्रोथ और और धंधा वर्षों से ठहरा पड़ा है.
कैश वैल्यू से नीचे स्टॉक के ट्रेड करने के बावजूद मार्केट इन्हें भाव नहीं दे रहा. एक तरह से ये कंपनियां भूतहा हो चुकी हैं. क्योंकि, ऑपरेटिंग लेवल पर ये कंपनियां फकीर साबित हो रही हैं. रेवेन्यू धीमा, ट्रैफिक फ्लैट और कैटेगरी खुद सिकुड़ रही है. ऐसे में इन स्टॉक्स में सस्ते होने का लालच कई निवेशकों को भारी पड़ सकता है.
जस्ट डायल कैश में भारी, ग्रोथ में हल्की
Just Dial का मार्केट कैप करीब 6,517 करोड़ रुपये है, जिसमें से 5,570 करोड़ रुपये सिर्फ कैश और इन्वेस्टमेंट हैं. यानी ऑपरेटिंग बिजनेस की वैल्यू मुश्किल से 947 करोड़ रुपये बैठती है. पिछले चार क्वार्टर्स में लगभग 568 करोड़ रुपये का प्रॉफिट कंपनी ने कमाया है, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा ट्रेजरी इनकम से आता है, मुख्य बिजनेस से नहीं. पिछले पांच साल में सेल्स ग्रोथ सिर्फ 4% CAGR रही है. ट्रैफिक और पेड कैंपेन की रफ्तार भी फ्लैट है. इंटरनेट डिस्कवरी का पूरा खेल Google, Maps और सोशल प्लेटफॉर्म्स की तरफ शिफ्ट हो गया है, जिससे पेड-लिस्टिंग मॉडल कमजोर पड़ा है. प्रबंधन ने FY26 तक डिविडेंड पॉलिसी लाने का संकेत जरूर दिया था, लेकिन अभी तक कोई स्पष्ट घोषणा नहीं हुई. यह अनिश्चितता भी रेटिंग को दबाए रखती है.
डेन नेटवर्क का सिकुड़ता बिजनेस
DEN Networks के पास सितंबर 2025 तक 3,254 करोड़ रुपये कैश और इन्वेस्टमेंट है, लेकिन ज्यादातर पैसा म्यूचुअल फंड और फिक्स्ड डिपॉजिट में पड़ा है, क्योंकि कंपनी इसे इस्तेमाल ही नहीं कर पाई. पांच साल में रेवेन्यू हर साल लगभग 5% घटा है, जबकि प्रॉफिट्स ज्यादातर नॉन-ऑपरेटिंग इनकम पर निर्भर रहे हैं. भारतीय केबल और पेड-TV मार्केट खुद ही सिकुड़ रहा है. DTH का सब्सक्राइबर बेस सितंबर 2024 के 5.99 करोड़ से गिरकर जून 2025 में 5.60 करोड़ पर आ गया. ऊपर से कंटेंट कॉस्ट बढ़ने, रेगुलेटेड प्राइसिंग और लास्ट-माइल रेवेन्यू स्प्लिट ने मार्जिन को कम कर दिया है. ऐसे में DEN के लिए किसी भी तरह की री-रेटिंग फिलहाल बेहद मुश्किल नजर आती है.
Hathway रंगीन उम्मीदें, पर नतीजे फीके
Hathway Reliance की इकोसिस्टम स्ट्रेटजी का अहम हिस्सा है. लास्ट-माइल केबल और ब्रॉडबैंड डिस्ट्रीब्यूशन. लेकिन कंपनी की अपनी ग्रोथ लगातार सुस्त बनी हुई है. पांच साल में सेल्स लो-सिंगल डिजिट की दर से ही बढ़ी है और प्रॉफिट भी कई बार नॉन-ऑपरेटिंग इनकम से फ्लैटर दिखते हैं. कॉर्ड-कटिंग ने केबल बिजनेस को कमजोर किया है, जबकि FTTH कॉम्पिटीशन ने ARPU बढ़ाने की गुंजाइश घटा दी है. कंपनी बैलेंस शीट पर मजबूत जरूर है, लेकिन बिजनेस की दिशा तभी बदल सकती है जब ARPU में स्थायी बढ़ोतरी दिखे या ब्रॉडबैंड सेगमेंट बड़े पैमाने पर बाजार हिस्सेदारी हासिल करे.
रिलायंस की मौजूदगी से भी नहीं मिली ग्रोथ
यह सवाल सहज ही दिमाग में आता है कि रिलायंस जैसी दिग्गज कंपनी प्रमोटर सीट पर है फिर भी इन कंपनियों में ग्रोथ क्यों नहीं आई. असल में इसका जवाब रिलायंस की रणनीति में है. RIL ने इन कंपनियों को स्वतंत्र रुप से ग्रो करने के लिए नहीं खरीदा है. बल्कि, JioFiber, कंटेंट बंडल्स और होम-ब्रॉडबैंड को मजबूत करने के लिए इनकी डिस्ट्रीब्यूशन क्षमता का इस्तेमाल किया. नतीजा यह हुआ कि लिस्टेड एंटिटीज की अपनी ग्रोथ कहानी रुक गई और वे धीरे-धीरे कैश-रिच, लेकिन स्लो बिजनेस वाली कंपनियां बन गईं.
डिस्क्लेमर: Money9live किसी स्टॉक, म्यूचुअल फंड, आईपीओ में निवेश की सलाह नहीं देता है. यहां पर केवल स्टॉक्स की जानकारी दी गई है. निवेश से पहले अपने वित्तीय सलाहकार की राय जरूर लें.
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