क्या होता है अंडर वाटर ड्रोन, जिसका महाकुंभ की सुरक्षा में हो रहा इस्तेमाल
महाकुंभ को सुरक्षित बनाने के लिए चप्पे-चप्पे पर नजर रखी जा रही है. जमीन पर CCTV और सुरक्षाकर्मियों की नजरें गढ़ीं हैं, तो आसमान में ड्रोन हर उड़ते परिंदे के भी पर गिन ले रहे हैं. वहीं, पानी के भीतर 100 मीटर की गहराई तक अंडर वाटर ड्रोन निगहबान बने हैं. आइए जानते हैं क्या होते हैं अंडर वाटर ड्रोन?

अंडर वाटर व्हीकल (UWV) के तौर पर अंडर वाटर ड्रोन्स का लंबा अतीत है. ऑक्सफोर्ड लर्नर डिक्शनरी के मुताबिक मौजूदा संदर्भ में ड्रोन शब्द का अर्थ पायलट रहित विमान, या एक छोटा उड़ने वाला उपकरण है, जिसे जमीन से नियंत्रित किया जाता है. कंटेंपरेरी टेक्नोनोलॉजी के लिहाज से देखें, तो UWV दो तरह के होते हैं. अनमैन्ड अंडर वाटर व्हीकल (UUV) और ऑटोनोमस अंडर वाटर व्हीकल (AUV).
UUV की बात करें तो, दुनिया का अंडर वाटर ड्रोन 1957 में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी की अप्लाइड फिजिक्स लैबोरेटरी में स्टेन मर्फी, बॉब फ्रेंकोइस और टेरी इवार्ट ने तैयार किया. इसे इसे सेल्फ-प्रोपेल्ड अंडरवाटर रिसर्च व्हीकल (SPURV) नाम दिया गया था. किसी भी ड्रोन का सीधा मतलब होता है कि उस व्हीकल को अंदर बैठकर किसी इंसान द्वारा नहीं चलाया जाता है.
अनमैन्ड अंडरवाटर व्हीकल एक तरह से ऐसी पनडुब्बियां (सबमरीन) हैं, जिनमें अंदर कोई इंसान नहीं बैठता, जिन्हें रिमोट से संचालित किया जाता है. वहीं, ऑटोनोमस अंडरवाटर व्हीकल बिना रिमोट के पहले से स्थापित कंट्रोल सॉफ्टवेयर, सेंसस और कमांड की मदद से चल सकते हैं.
क्यों बनाए गए अंडर वाटर ड्रोन
पृथ्वी का 70 फीसदी हिस्सा पानी में डूबा है. हम चांद-सितारों की जितनी जानकारी रखते हैं, उसकी तुलना में अपने ग्रह के बारे में कम ही जानते हैं. समुद्रों और तमाम वाटर बॉडीज को अंदर गहराई तक एक्सप्लोर करना आसान नहीं. खासतौर पर पानी के अंदर इंंसान लंबे समय तक नहीं बने रह सकते हैं. इसी वजह से अंडर वाटर ड्रोन बनाए गए.
कहां हो रहा AUV का इस्तेमाल
पानी के अंदर लंबे समय तक टिके रहने और सोनार व दूसरे सेंसर्स की मदद से पानी के भीतर होने वाली हरकतों के बारे में सटीक जानकारी देने की क्षमता के चलते ऑटोनोमस अंडर वाटर ड्रोन्स का कमर्शियल, मिलिट्री, इंडस्ट्रियल और सेफ्टी के लिए इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है.
दुनिया का पहला AI-AUV
दुनिया का पहला AI-AUV पिछले वर्ष सितंबर ब्रिटिश कंपनी बीम ने दुनिया का पहले आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ड्रिवन ऑटोनोमस अंडर वाटर व्हीकल तैयार किया. ब्रिटिश पोर्टल टूमॉरोज वर्ल्ड के मुताबिक कंपनी के सीईओ ब्रायन एलन का कहना है कि अंडर वाटर ड्रोन का AI लेवल पर ऑटोमेशन हमारी दुनिया को बदल सकता है. इनकी मदद से अंडर वाटर इन्फ्रास्ट्रक्चर को मेंटेन करना, निगरानी करना, समुद्रों की सेहत पर ध्यान देन और इंसान की पहुंच दूर जगहों पर शोध करना आसान हो जाएगा.
कैसे काम करता है प्रोपल्शन
तमाम AUV पानी के नीचे बायो-मिमेटिक टेक्नोलॉजी पर काम करते हैं. इसका मतलब है कि वे जलीय जीवों के पानी में तैरने की नकल करते हैं. आमतौर पर इनका बाहरी ढांचा भी इन जीवों के आकार में बनाया जाता है, ताकि इनके काइनेटिक डायनेमिक्स पानी में उन जीवों जैसे रहें.
पानी में कैसे काम करता है नैविगेशन
AUVs पहले से तय प्रोग्राम के आधार पर पानी के नीचे नेविगेट करते हैं. नेविगेशन में लोकलाइजेशन अहम फैक्टर होता है. इससे AUV को पहले से तय रास्ते पर चलने में मदद मिलती है. इसके अलावा पानी के नीचे के AUV ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) और हाई-फ्रिक्वेंसी रेडियो सिग्नल नहीं मिलने पर लोकल सेंसर और सपोर्ट की मदद से नेविगेशन में मदद ली जाती है.
कुंभ में ड्रोन का इस्तेमाल
केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय के मुताबिक प्रयागराज में आयोजित किए जा रहे महाकुंभ में पहली बार अंडरवाटर ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है. ये ड्रोन कई तरह की एडवांस टेक्नोलॉजी से लैस हैं. खासतौर पर ये ड्रोन कम रोशनी की स्थिति में भी पानी के अंदर 100 मीटर की गहराई तक काम करते हैं. इन ड्रोन्स का डाटा इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर को रियल टाइम मिलता रहता है.
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