US War Economy: दुनिया की बर्बादी से आबाद ‘अंकल सैम’, जानें युद्ध के भरोसे कैसे टिकी है अमेरिकी इकोनॉमी

US President Donald Trump के ट्रेड सलाहकार पीटर नवारो ने यूक्रेन जंग को ‘मोदी वॉर’ बताया है. हालांकि, हकीकत यह है कि मौजूदा अमेरिकी इकोनॉमी का अस्तित्व ही युद्ध पर टिका है. अमेरिका में युद्ध सिर्फ विदेश नीति का औजार नहीं है. यह एक बिजनेस सिस्टम है, जिसे दशकों से Military Industrial Complex कहा जाता है. यह सिस्टम सैन्य बजट, Defense Contractors, लॉबिंग नेटवर्क और सप्लाई चेन को इस तरह जोड़ता है कि युद्ध और युद्ध की तैयारी खुद में आर्थिक गतिविधि बन जाती है. जानिए कैसे पूरी यूएस इकोनॉमी दूसरे देशों की तबाही पर पलती है.

दुनिया में जितना ज्यादा युद्ध होता है, अमेरिकी इकोनॉमी उतनी मजबूत होती है Image Credit: Money9live

Brown University के थॉमस वाटसन स्कूल ऑफ इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स के मुताबिक अमेरिका की इकोनॉमी की सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि उसका असली इंजन Military Spending है. अमेरिका में राजनीतिक शक्ति का संतुलन Military Spending से तय होता है.

अमेरिका का आधे से ज्यादा Military Budget सीधे हथियार बनाने वाली Contractor Companies को जाता है. जब किसी कॉन्ट्रैक्टर को कोई बड़ा ऑर्डर मिलता है, तो इससे उसे सिर्फ मोटी रकम ही नहीं मिलती है, बल्कि इससे उसका सियासी रसूख भी बढ़ता है. वह अपनी दौलत का इस्तेमाल लॉबिंग और कैंपेनिंग के लिए करता है, ताकि अमेरिकी सरकार ज्यादा से ज्यादा सैन्य खर्च जारी रखे.

इस तरह हर नया युद्ध, हर नया Global conflict, अमेरिकी Military Industrial Complex को और मजबूत बनाता है. यह सिर्फ हथियार बनाने का बिजनेस नहीं है, बल्कि एक ऐसा तंत्र है जो राजनीति, लॉबिंग और इकोनॉमी तीनों को अपने साथ जोड़ लेता है.

डिफेंस कॉन्ट्रैक्टर की पॉलिटिकल इकोनॉमी

अमेरिका में पिछले कुछ सालों से Pentagon की Discretionary Spending का बड़ा हिस्सा सीधे प्राइवेट फर्मों तक जा रहा है. वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020 से 2024 के बीच लगभग 4.4 लाख करोड़ डॉलर के डिस्क्रेशनरी बजट में से 2.4 लाख करोड़ डॉलर यानी करीब 54%, कॉन्ट्रैक्ट्स सीधे प्राइवेट कंपनियों को दिए गए. इस रकम का भी बड़ा हिस्सा कुछ चुनिंदा कंपनियों तक पहुंचा. Lockheed Martin, RTX, Boeing, General Dynamics और Northrop Grumman ने 2020-24 के दौरान मिलकर करीब 771 अरब डॉलर के कॉन्ट्रैक्ट्स हासिल किए. तुलना के लिए, इसी अवधि में अमेरिका का कुल Diplomacy Development Humanitarian बजट, मिलिट्री एड छोड़कर, करीब 356 अरब डॉलर रहा. यह असंतुलन दिखाता है कि अमेरिकी नीति-निर्माण में डिफेंस सेक्टर किस तरह हावी है.

हथियार लॉबी का दबदबा

वहीं, Watson Institute के मुताबिक इन कॉन्ट्रैक्ट्स के साथ चलती है एक Influence Machine चलती है, जो Lobbying और Campaign Finance के जरिये Defense Contractors के पक्ष में बजट बहस को आकार देते हैं. इसी तरह Open Secrets की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2024 में डिफेंस सेक्टर से जुड़े सैकड़ों लॉबिस्ट सक्रिय थे, जिनकी संख्या पिछले वर्षों से बढ़ी है. यही नहीं, रिसर्च-एनालिसिस संस्थान भी ट्रैक करते हैं कि व्यापक आर्म्स इंडस्ट्री इकोसिस्टम में लॉबिस्ट्स की संख्या लगभग 1000 के आसपास बताई जाती है, जो कांग्रेस के हर सदस्य पर औसतन एक से ज्यादा लॉबिस्ट बैठने जैसी स्थिति को दिखाता है.

प्राइवेट हाथों में कैमो इकोनॉमी

अमेरिकी इकोनॉमी की ड्राइविंग फोर्स मिलिट्री स्पेंडिंग है. इस Camo Economy को चलाने वाले कॉन्ट्रैक्टर इतने हावी हैं कि इराक-अफगान युद्धों में Private Contractors’ की संख्या वर्दीधारी सैनिकों से ज्यादा थी. वहीं, 2019 में US Central Command एरिया में कॉन्ट्रैक्टर्स बनाम ट्रूप्स का अनुपात लगभग 1.5:1 तक पहुंच गया. यानी हर एक सैनिक पर डेढ़ कॉन्ट्रैक्टर.

F-35 का केस स्टडी

अमेरिका की मिलिट्री स्पेंडिंग और पॉलिटिकल इकोसिस्टम एक-दूसरे के लिए इस तरह काम करते हैं कि मोटे तौर पर पूरी अमेरिकी इकोनॉमी Defense Supply Chains के इर्दगिर्द चलती है. राजनीतिक फायदे के लिए सप्लाई चेन को जानबूझकर ज्यादा से ज्यादा राज्यों में फैलाया जाता है. Lockheed Martin का F-35 प्रोग्राम इसका क्लासिक उदाहरण है. कंपनी के पब्लिक डाटा के मुताबिक इस प्रोग्राम की सप्लाई चेन 45 राज्यों में फैली है. वहीं, इसके इकोनॉमिक फुटप्रिंट सभी 50 राज्यों तक हैं. इस तरह जब भी इस फाइटर जेट के ऑर्डर बढ़ते हैं, तो पूरे देश में इसका असर देखने को मिलता है. Lockheed की खुद की Revenue Anatomy भी इस निर्भरता को दिखाती है. 2023 में कंपनी की कुल नेट सेल्स का करीब 73% अमेरिकी सरकार से आया. अकेले F-35 से 26% नेट सेल्स का हिस्सा आया था. यही वजह है कि कोई भी अमेरिकी सरकार डिफेंस बजट से छेड़छाड़ नहीं करती है.

कैमो इकोनॉमी में सिलिकॉन वैली

पिछले एक दशक में Military Industrial Complex में Silicon Valley की भागीदारी तेजी से बढ़ी है. 2022 के अंत में Department of Defense ने Joint Warfighting Cloud Capability यानी JWCC के तहत AWS, Microsoft, Google और Oracle को करीब 9 अरब डॉलर तक के Multi Cloud कॉन्ट्रैक्ट फ्रेमवर्क दिए. यह केवल Cloud Computer नहीं, बल्कि AI Enabled Battle Management System हैं, जो Data Fusion जैसी क्षमताओं के दरवाजे भी खोलते हैं. Palantir जैसे Software First कॉन्ट्रैक्टर और Anduril जैसे Autonomy Driven खिलाड़ियों को भी लगातार बड़े कॉन्ट्रैक्ट मिल रहे हैं. यह संकेत है कि Defense Tech अब सिर्फ Hardware Primes की दुनिया नहीं रही.

यूक्रेन युद्ध और यूएस इकोनॉमी

फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद अमेरिका की Defense and Space इंडस्ट्री का Iindustrial Production Index फरवरी 2022 से शुरुआती 2024 तक लगभग 17.5% ऊपर गया. यह बढ़त US स्टॉकपाइल रीप्लेनिशमेंट और यूरोप की नई डिमांड दोनों से जुड़ी है. WSJ ने इसे ‘How War in Europe Boosts the U.S. Economy’ शीर्षक से समझाया है.

युद्ध से अमेरिकी एनर्जी मार्केट में बूम

इसी तरह बड़ा बदलाव LNG में दिखा. यूरोप ने रूसी गैस पर निर्भरता घटाई तो US LNG Destination Mix बदल गया. 2021 में US LNG निर्यात का औसतन 2.4 Bcf/d यूरोप जाता था, जो 2023 में बढ़कर लगभग 7.1 Bcf/d हो गया, यानी यूरोप-बाउंड वॉल्यूम लगभग तीन गुना बढ़ गया. 2023 में US दुनिया का सबसे बड़ा LNG एक्सपोर्टर भी बना. यह शिफ्ट केवल अल्पकालिक नहीं, क्योंकि यूरोप ने LNG टर्मिनल क्षमता पर भारी निवेश किया है.

एग्री सप्लाई चेन शिफ्ट

एग्री-मार्केट्स में भी सप्लाई चेन शिफ्ट देखने को मिला है. यूक्रेन की सप्लाई बाधित हुई, तो ग्लोबल मार्केट में US के किसानों को अवसर मिला. USDA लिंक्ड डाटा बताता है कि 2022 में US एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट्स का कुल मूल्य रिकॉर्ड स्तर पर गया. विश्लेषकों ने दिखाया कि ब्लैक सी की बाधाओं ने ट्रेड रूट्स रीडायरेक्ट किए और कुछ मार्केट्स ने US से सोर्सिंग बढ़ाई.

मिलिट्री स्पेंडिंग पर आम सहमति

दिलचस्प रूप से अमेरिका में मिलिट्री स्पेंडिंग को लेकर दोनों दलों में आम सहमति रहती है. 2024 में Commission on the National Defense Strategy ने कहा कि माहौल World War II के बाद सबसे खतरनाक है और एक Bipartisan Call To Arms की जरूरत है. रिपोर्ट और उससे जुड़े बयानों में Cold War स्टाइल में GDP शेयर तक Pentagon बजट के लिए तय किए जाने के संकेत मिलते हैं. सीनेट में प्रमुख Defense Hawks 5%-of-GDP टार्गेट की बात कर चुके हैं. इस कमीशन को लेकर दोनों ही दलों में खामोश सहमति देखने को मिलती है.

रोजगार कम खर्च ज्यादा

लंबे समय से अमेरिकी लोगों को Defense Spending को Jobs से जोड़कर देखा जाता रहा है. लेकिन, Jobs Multiplier रिसर्च बताती है कि प्रति 1 बिलियन डॉलर खर्च पर शिक्षा, स्वास्थ्य, क्लीन एनर्जी और इन्फ्रास्ट्रक्चर में मिलिट्री स्पेंडिंग से ज्यादा नौकरियां मिलती हैं. लेकिन, यहां सवाल केवल रोजगार का नहीं, बल्कि डिफेंस के नाम पर होने वाले खर्च के इकोसिस्टम का है, जिसमें राजनीतिक दल इस तरह से गुंथे हैं कि सब जानने के बाद भी इसे घटा नहीं सकते हैं. यही, वजह है कि अमेरिकी पॉलिसी फ्रेमवर्क में ज्यादा रोजगार देने वाले सेक्टर की जगह मिलिट्री स्पेंडिंग बढ़ाने पर जो रहता है.

Security के नाम पर Overreach

NDS Commission और Defense Hawks का तर्क है कि बिना बड़े डिफेंस बजट के अमेरिका Deterrence नहीं बनाए रख सकता. अमेरिकी सियासी दलों के बीच बहस का सवाल यह नहीं कि रक्षा पर खर्च होना चाहिए या नहीं. सवाल यह है कि कितना, किस पर और किस Strategy के तहत होना चाहिए. क्योंकि, मोटे तौर पर दोनों दल इस बात से सहमत हैं कि अमेरिका की सैन्य ताकत ही उसे Global Overreach देती है.

वार डिविडेंड पर जोर

अमेरिकी इकोनॉमकी के कोर में वार डिविडेंड है. यूक्रेन युद्ध से इसे आसान तरीके से समझा जा सकता है. यूक्रेन-रूस में युद्ध हुआ. सबसे ज्यादा हथियार अमेरिका ने बेचे. यूक्रेन की तरफ से बड़ा खर्च यूरोप उठा रहा है. इसके अलावा बदले में अमेरिका को मिनरल डील के तौर पर यूक्रेन के तमाम संसाधनों के दोहन का हक मिल गया है. इस तरह अमेरिका ने मिलिट्री स्पेंडिंग के जरिये मिनरल्स डील का रास्ता खोला. इसके अलावा जो यूरोप पहले रूस से सस्ती गैस ले रहा था, उसे अब अमेरिका से महंगी गैस खरीदनी पड़ रही है. इसके बाद पोस्ट वार स्थिति में भी यूक्रेन के रिकंस्ट्रक्शन में अमेरिकी कंपनियां सबसे ज्यादा फायदा उठाने वाली हैं.