इजरायल और ईरान को जंग से क्या हुआ हासिल, ट्रंप को फायदा या नुकसान… किसकी हुई जीत?

Israel-Iran War Result: हमले की शुरुआत 13 जून से हुई, जब इजरायल ने ईरान के बढ़ते परमाणु कार्यक्रम से उत्पन्न अस्तित्व के लिए खतरे को बेअसर करने के लिए ऑपरेशन राइजिंग लॉयन शुरू किया. इजरायल और ईरान ने युद्धविराम पर सहमति जताई है, लेकिन शांति स्थापित नहीं की है.

इजरायल-ईरान के बीच में किसे मिली बड़ी सफलता. Image Credit: AI

Israel-Iran War Result: इजरायल और ईरान के बीच फिलहाल युद्धविराम की स्थिति बहाल होती हुई नजर आ रही है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इजरायल और ईरान के बीच जिसे ’12 दिवसीय युद्ध’ कहा था, वह फिलहाल खत्म होता दिख रहा है. इस बीच ट्रंप, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और ईरान के नेताओं ने दावा किया है कि संघर्ष विराम उनकी शर्तों पर हुआ है. लेकिन इन दावों का सच क्या है. इस जंग से इजरायल को क्या हासिल हुआ, क्या ईरान अपनी सामरिक संपत्तियों की रक्षा करने में कामयाब रहा और क्या यह युद्धविराम भविष्य में शांति के रास्ते तैयार करेगा?

युद्ध की शुरुआत

हमले की शुरुआत 13 जून से हुई, जब इजरायल ने ईरान के बढ़ते परमाणु कार्यक्रम से उत्पन्न अस्तित्व के लिए खतरे को बेअसर करने के लिए ऑपरेशन राइजिंग लॉयन शुरू किया. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, यहूदी राष्ट्र ने तेहरान पर कई रॉकेट और मिसाइलें दागीं, जिनका लक्ष्य सैन्य और सिविल इंफ्रास्ट्रक्चर था. ईरान ने जवाबी कार्रवाई करते हुए अपनी मिसाइलों से हमला किया, जिससे इजरायल की रिहायशी इमारतें नष्ट हो गईं.

अमेरिका की एंट्री से बढ़ा तनाव

शनिवार की देर रात इजरायल के इशारे पर अमेरिका ने इजरायल-ईरान युद्ध में प्रवेश किया और ईरान के फोर्डो, नतांज और इस्फहान स्थित परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमला किया. ट्रंप के शब्दों में उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया. सोमवार को ईरान ने जवाबी हमला किया और कतर में मिडिल ईस्ट में सबसे बड़े अमेरिकी एयरबेस, अल उदीद पर मिसाइलें दाग दीं. इसके बाद कुछ देर के लिए स्थिति ऐसी बनी जैसे कि मिडिस ईस्ट में एक बड़े युद्ध की चिंगारी फूट गई है.

युद्धविराम और ट्रंप

लेकिन कुछ ही घंटों के भीतर ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर ऐलान किया- ‘इजराइल और ईरान के बीच इस बात पर पूरी तरह से सहमति बन गई है कि पूर्ण और समग्र युद्धविराम होगा. ट्रंप ने इसे 12 दिवसीय युद्ध कहा. उनका कहना था कि यह युद्ध वर्षों तक चल सकता था और मिडिल ईस्ट को तबाह कर सकता था.

युद्धविराम लागू होने के चार घंटे बाद ही इजरायल ने ईरान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की. उसके अनुसार ईरान से दो बैलिस्टिक मिसाइलें उसके एयर स्पेस में प्रवेश कर गई थीं. हालांकि, दोनों को रोक दिया गया था. इजरायल की जवाबी कार्रवाई ने तेहरान के पास एक रडार स्टेशन को नष्ट कर दिया. इसके बाद ट्रंप गुस्से में दिखे और संवाददाताओं से कहा कि मैं वास्तव में दुखी हूं कि इजरायल दायरे से बाहर चला गया.

फिर ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर लिखा- ‘हमारे पास दो देश हैं, जो इतने लंबे समय से इतनी कड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं कि उन्हें नहीं पता कि वे क्या कर रहे हैं. ईरान ने कहा कि उसने मिसाइलें नहीं दागी हैं. 11:30 GMT तक युद्ध विराम फिर से लागू हो गया. इस बीच ट्रंप ने नेतन्याहू से बात की और कहा कि इजराइल ईरान पर हमला नहीं करने जा रहा है. सभी प्लेन ईरान की तरफ दोस्ताना ‘प्लेन वेव’ करते हुए वापस लौट जाएंगे. किसी को चोट नहीं लगेगी, युद्ध विराम लागू है.

इजरायल को क्या हासिल हुआ?

इजरायल ने लंबे समय से कहता रहा है कि ईरान उसके अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है, लेकिन उसने पहले कभी तेहरान की परमाणु फैसिलिटी पर हमला नहीं किया था. 13 जून को उसने नतांज फ्यूल इनरिचमेंट प्लांट और इस्फहान परमाणु टेक्नोलॉजिकल कॉम्पलेक्स की सतह पर बमबारी करके उसने रेड लाइन के दायरे को लांघ लिया.

ईरान ने इजरायल पर ड्रोन और मिसाइलों को लॉन्च करके जवाबी कार्रवाई की. इजरायल ने पहले भी सीरिया और इराक में परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमला किया था, लेकिन अब उसने साबित कर दिया है कि वह बहुत दूर एक जटिल मिशन को अंजाम दे सकता है.

इजरायल अंतरराष्ट्रीय आरोपों का भी सामना किया कि उसका मिशन कानूनी नहीं था. इजराइल का दावा है कि यह पूर्वानुमानित आत्मरक्षा थी, लेकिन हर कोई इस बात से सहमत नहीं है कि ईरान परमाणु बम विकसित कर रहा है, या कि वह इजरायल के खिलाफ इसका इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है.

नेतन्याहू ने 18 जून को कहा, ‘मैं विश्व के नेताओं से बात करता हूं और वे हमारे दृढ़ संकल्प और हमारी सेना की उपलब्धियों से बहुत प्रभावित हैं. आखिरकार, इजरायल ने साबित कर दिया कि वह अमेरिका को सीमित मिडिल ईस्ट में आक्रमण में शामिल होने के लिए मना सकता है, जिसे उसने शुरू किया है. साल 1967 और 1973 में हुए पिछले युद्धों में, जब इजरायल पर हमला हुआ था, तो अमेरिका ने उसे सहायता प्रदान की थी, लेकिन प्रत्यक्ष रूप से युद्ध में भागीदारी के साथ कभी नहीं उतरा.

ईरान के खिलाफ युद्ध का हासिल बताते हुए प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने मंगलवार को कहा कि इजरायल ने दो अस्तित्व के खतरों को दूर कर दिया है. पहला परमाणु हथियारों के जरिए विनाश का खतरा और दूसरा 20,000 बैलिस्टिक मिसाइलों के माध्यम से विनाश का खतरा. ईरान इसे बनाने की ओर अग्रसर था. इजरायल को निकट भविष्य में विनाश का सामना करना पड़ता अगर हमने अभी कार्रवाई नहीं की होती. नेतन्याहू ने कहा कि इज़रायल ने ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल प्रोडक्शन कार्यक्रम को नष्ट कर उसे इतिहास का सबसे गंभीर झटका दिया है.

क्या ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम की रक्षा करने में कामयाब रहा?

इजरायल, ईरान में जमीनी लक्ष्यों को काफी नुकसान पहुंचाने में कामयाब रहा और अमेरिका का दावा है कि उसने भूमिगत परमाणु फैसिलिटी को नष्ट कर दिया है. सेटेलाइट फोटो से पता चलता है कि उनकी मिसाइलें अपने लक्ष्य पर लगीं, लेकिन इसकी पुष्टि के लिए कोई सबूत उपलब्ध नहीं है कि क्या नष्ट हुआ. इसके लिए मौके पर निरीक्षण की आवश्यकता होगी.

संयुक्त राष्ट्र परमाणु निगरानी संस्था, इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी के निदेशक राफेल ग्रॉसी ने सोमवार को अमेरिकी हमलों के बाद कहा कि इस समय कोई भी – जिसमें IAEA भी शामिल है – फोर्डो में भूमिगत क्षति का पूरी तरह से आकलन करने की स्थिति में नहीं है. उन्होंने कहा कि उपयोग किए गए विस्फोटक पेलोड और सेंट्रीफ्यूज की ताकत को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि बहुत बड़ी क्षति हुई होगी.

इसके अलावा, 400 किलोग्राम (880 पाउंड) हाइली एनरिच्ड यूरेनियम के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. इसके बारे में IAEA ने कहना है कि ये ईरान के पास अभी मौजूद है.

ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन के प्रमुख मोहम्मद इस्लाम ने कहा कि परमाणु कार्यक्रम बिना किसी नुकसान के उभरेगा. उन्होंने मंगलवार को सेमी-ऑफिशियल मेहर न्यूज एजेंसी को दिए गए एक बयान में कहा कि रिकवरी की तैयारियां पहले से ही अनुमानित थीं और हमारी योजना प्रोडक्शन या सर्विसेज में किसी भी रुकावट को रोकने की है.

किस मामले में सफल रहा ईरान?

युद्ध ने ईरान को किसी की भी बात नहीं मानने या दबाव की कहानी को बनाए रखने में भी मदद की है. इजरायल द्वारा लगातार बमबारी किए जाने के बावजूद, इस्लामिक रिपब्लिक ने जवाबी हमले जारी रखे, जिससे इजरायल को भी उतना ही नुकसान हुआ. इसके अलावा अमेरिका के अल उदीद एयर बेस पर अपने नापे-तुले हमले के जरिए ईरान ने दिखाया कि वह संयम बरतने में सक्षम है. इसने अपने नागरिकों के सामने अपने सैन्य प्रभुत्व को फिर से स्थापित करने में भी मदद की.

’12 दिवसीय युद्ध’ से ट्रंप को क्या मिला?

अमेरिका ने शनिवार देर रात ईरान-इजराइल संघर्ष में प्रवेश किया, जब उसके बी-2 बॉम्बर विमानों ने ईरान में तीन हमले किए. डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि यह हमला बहुत सफल रहा और इसने तेहरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह से नष्ट कर दिया. पेंटागन के शुरुआती आकलन और अन्य विशेषज्ञों का मानना ​​है कि तीनों परमाणु स्थलों को हुआ नुकसान उतना बड़ा नहीं है, जितना ट्रंप दावा कर रहे हैं. हालांकि, शुरुआती आकलन के अनुसार, हमलों ने परमाणु कार्यक्रम को केवल कुछ महीनों के लिए पीछे धकेला है.

हालांकि, ट्रंप भले ही ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को खत्म करने में सफल नहीं हुए हों, लेकिन वे कम से कम कुछ हद तक शांतिदूत की भूमिका निभाने में सक्षम थे. वे दो युद्धरत देशों के बीच शांति स्थापित करने में सक्षम थे और साथ ही एक लंबे युद्ध से भी बच गए. अमेरिकी हाउस के प्रतिनिधि बडी कार्टर ने ट्रंप को इजरायल और ईरान के बीच युद्ध विराम कराने में उनकी असाधारण और ऐतिहासिक भूमिका के लिए 2025 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया.

युद्धविराम या फिर स्थापित होगी शांति

इजरायल और ईरान ने युद्धविराम पर सहमति जताई है, लेकिन शांति स्थापित नहीं की है. ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर विशेषज्ञों का कहना है कि मोटे तौर पर भविष्य के लिए दो संभावित रास्ते हैं.

ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों का संयुक्त राष्ट्र द्वारा फिर से निरीक्षण और ईरान के साथ एक नई संधि, जो शायद पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की 2015 की जॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन ( JCPOA) से मिलती-जुलती हो, तेहरान को अपने कार्यक्रम पर वैश्विक दबाव कम करने में मदद कर सकती है. हालांकि, यह ट्रंप ही थे जिन्होंने JCPOA से हाथ खींच लिया था.

यूरोपीय शक्तियों की भूमिका

यही वह जगह है जहां यूरोपीय शक्तियां भूमिका निभा सकती हैं. उनमें से तीन, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और जर्मनी ने 20 जून को ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची से मुलाकात की, साथ ही यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख काजा कालास ने अमेरिकी हमलों को रोकने के प्रयास में मुलाकात की. वह प्रयास असफल रहा. हालांकि, यूरोपीय संघ अकेले ईरान को समझौते के लिए प्रेरित नहीं कर सकता, लेकिन अमेरिका-इजरायल की कठोर शक्ति के काउंटर के रूप में काम कर सकता है.

इजरायल ने पहले भी वेस्ट और ईरान के बीच किसी भी परमाणु समझौते को असफल करने की कोशिश की है. इललिए किसी नए समझौते को स्वीकार करने की संभावना फिलहाल बनती नजर नहीं आ रही है.

ईरान भी किसी समझौते के लिए तैयार होगा, ये भी कहना मुश्किल है. क्योंकि अमेरिका ने तेहरान के साथ अपने पिछले परमाणु समझौते से हाथ खींच लिया था. फिर हाल ही में वार्ता के दौरान अपने लक्ष्य बदल दिए और आखिरकार इजरायल के साथ मिलकर ईरानी परमाणु फैसिलिटी पर बमबारी की, जबकि उन्हें एक समझौते पर बातचीत करनी थी.

स्टील्थ बॉम्बर विमान का खर्च

ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ के चेयरमैन, अमेरिकी जनरल डैन केन की एक ब्रीफिंग के अनुसार, 7 बी-2 स्टील्थ बॉम्बर विमानों, जिनमें से प्रत्येक की कीमत लगभग 2.1 बिलियन डॉलर थी, ने फोर्डो और नतांज पर लाखों डॉलर के कम से कम 14 बंकर-बस्टर बम गिराए.

इजरायल ने युद्ध में कितनी रकम झोंकी

मीडिया रिपोर्ट्स और विशेषज्ञों के अनुसार, इजरायल की अर्थव्यवस्था ईरान के साथ 12 दिनों के संघर्ष की कीमत चुका रही है, क्योंकि युद्ध की लागत सैकड़ों मिलियन डॉलर तक पहुँच गई. फाइनेंशियल एक्सप्रेस वेबसाइट के अनुसार, ईरान पर हमलों के पहले सप्ताह में इजरायल ने लगभग 5 अरब डॉलर खर्च किए, जबकि युद्ध का रोजाना खर्च 725 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जिसमें से 593 मिलियन डॉलर हमलों के लिए इस्तेमाल किए गए और 132 मिलियन डॉलर डिफेंस सिस्टम और सैन्य लामबंदी के लिए आवंटित किए गए.

वॉल स्ट्रीट जर्नल ने बताया कि इजरायल के लिए एंटी-मिसाइल एयर सिस्टम की रोजाना लागत 10 मिलियन डॉलर से 200 मिलियन डॉलर के बीच थी. इजरायल स्थित आरोन इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक पॉलिसी के अनुसार, अगर हमले एक महीने तक चलते तो कुल लागत 12 अरब डॉलर से अधिक हो सकती थी.

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