भारत बनेगा रेयर अर्थ मैग्नेट हब, 1500 टन कैपेसिटी की योजना तैयार, ये सरकारी कंपनी करेगी कमाल

भारत सरकार जल्द ही 1,000 करोड़ रुपये की लागत से रेयर अर्थ मैग्नेट के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने वाली योजना शुरू करने जा रही है. इसका उद्देश्य 1,500 टन उत्पादन क्षमता विकसित करना है. इसमें एक सरकारी कंपनी की अहम भूमिका होगी, जो हर साल 500 टन कच्चा माल सप्लाई करेगी.

रेयर अर्थ मैग्नेट्स Image Credit: @Tv9

Rare Earth Magnets Production India: भारत सरकार जल्द ही Rare Earth Magnets के घरेलू प्रोडक्शन को बढ़ावा देने के लिए एक नई योजना शुरू करने जा रही है. हेवी इंडस्ट्रीज मिनिस्ट्री (MHI) और डिपार्टमेंट ऑफ एटोमिक एनर्जी (DAE) अगले 10 से 15 दिनों में इस योजना को अंतिम रूप दे सकते हैं. इस योजना का कुल बजट करीब 1,000 करोड़ रुपये होगा, जिसका मकसद भारत में 1,500 टन की रेयर अर्थ मैग्नेट प्रोडक्शन कैपेसिटी को विकसित करना है. रेयर अर्थ मैग्नेट्स इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और रक्षा जैसे अहम क्षेत्रों में इस्तेमाल होते हैं, जिनकी मांग वैश्विक स्तर पर लगातार बढ़ रही है.

केंद्रीय मंत्री का बयान आया सामने

रेयर अर्थ मैग्नेट को लेकर सरकार की प्लानिंग पर केंद्रीय मंत्री एचडी कुमारस्वामी ने बयान जारी किया है. उन्होंने मंगलवार, 24 जून को कहा कि सरकार 15 से 20 दिनों के भीतर रेयर अर्थ मैग्नेट के घरेलू प्रोडक्शन का समर्थन करने के लिए सब्सिडी योजना पर विचार करेगी. उन्होंने कहा कि हैदराबाद स्थित एक कंपनी ने वादा किया है कि वह इस साल के अंत तक यानी दिसंबर तक वह 500 टन रेयर अर्थ कच्चा माल की आपूर्ति करेगी. वहीं हेवी इंडस्ट्रीज मंत्रालय के सचिव ने कहा कि इस प्लानिंग के तहत तय इंसेंटिव बजट, जो फिलहाल 1000 करोड़ रुपये है, अगर वह उससे ज्यादा होता है तब वह केंद्रीय मंत्रिमंडल के पास अप्रूवल के लिए भेजना होगा.

किस कंपनी को मिली जिम्मेदारी?

हालांकि, सीएनबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी कंपनी Indian Rare Earth Limited (IREL) का इस मिशन में अहम भूमिका होगा. IREL हर साल 500 टन तक की रेयर अर्थ कच्चा माल उन कंपनियों को उपलब्ध कराएगी जो मैग्नेट निर्माण में लगी होंगी. मालूम हो कि वर्तमान में 5 से 6 कंपनियों ने इस क्षेत्र में निवेश करने में रुचि दिखाई है. हालांकि सरकार को इस बात की चिंता है कि कुछ कंपनियां घरेलू निर्माण की बजाय पूरी तरह से असेंबल किए गए कंपोनेंट्स आयात करना पसंद कर सकती हैं. इसे रोकने के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना के तहत डोमेस्टिक वैल्यू एडिशन (DVA) मानकों में बदलाव की संभावना पर भी विचार किया जा रहा है.

रेयर अर्थ को लेकर गंभीर होने की जरूरत

भारत के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा रेयर अर्थ भंडार है, लेकिन अब तक केवल 20 फीसदी संभावित क्षेत्र की ही खोज हो पाई है. विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सही समय है जब भारत को अपने खनिज संसाधनों की खोज और प्रोसेसिंग में तेजी लानी चाहिए. उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत को रेयर अर्थ सप्लाई चेन में आत्मनिर्भर बनना है, तो मोनाजाइट जैसे खनिजों को निजी निवेश के लिए खोलना होगा. साथ ही, नीयोडिमियम जैसे एलिमेंट्स को निकालने की तकनीक में निवेश और रिसर्च की जरूरत है, जो अभी चीन और जापान के पास है.

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