स्कॉडा-फॉक्सवैगन की कमाई से ज्यादा स्पेयर पार्ट्स बेच रही है मारुति सुजुकी, गेमचेंजर बना 96% लोकलाइजेशन
भारत में पैसेंजर कार मार्केट में आज टाटा और महिंद्रा जैसी भारतीय कंपनियों से लेकर, स्कॉडा, फॉक्सवैगन, होंडा, हुंडई, निशान, रेनॉल्ट, MG और किया जैसी विदेशी कंपनियों के बीच टफ कंपटीशन चल रहा है. लेकिन, इन सभी के बीच मारुति सुजुकी की बादशाहत कायम है.
FY25 में मारुति सुजुकी ने सिर्फ स्पेयर पार्ट्स और कंपोनेंट्स से इतना करोबार किया है, जितना स्कॉडा और फॉक्सवैगन भारत में मिलकर कुल कारोबार नहीं कर पाई हैं. FY25 में मारुति सुजुकी ने करीब 19,500 करोड़ रुपये के स्पेयर पार्ट्स बेचे हैं. जबकि, इस दौरान स्कॉडा-फॉक्सवैगन का कुल ऑपरेटिंग रेवेन्यू 19,053 करोड़ रुपये रहा. मारुति सुजुकी का दावा है कि कंपनी ने 96% लोकलाइजेशन हासिल किया है. यही असल में कंपनी के लिए सबसे बड़ा गेमचेंजर है. इस वजह से ही कंपनी सस्ते पार्ट्स, कम समय बनाती है और हाई-मार्जिन बनाने में कामयाब रहती है.
आफ्टर सेल सर्विस असली इंजन
पैसेंजर कार की सेल के मामले में मारुति सुजुकी लीडर है. लेकिन, इसके हाई मार्जिन और मजबूत प्रॉफिट के पीछे असल में आफ्टर सेल सर्विस का इंजन है. मारुति सुजुकी का यह सर्विस बिजनेस ऐसा प्रॉफिट इंजन बन चुका है, जिसके दम कंपनी ने बाकी तमाम ऑटोमेकर्स को स्केल और कमाई दोनों मोर्चों पर पीछे छोड़ दिया है. FY25 में कंपनी ने केवल स्पेयर पार्ट्स और कंपोनेंट्स बेचकर 19,500 करोड़ का कारोबार किया, जो कंपनी के कुल रेवेन्यू का करीब 13% है. लेकिन मार्जिन और प्रॉफिटेबिलिटी पर इसका असर बहुत बड़ा है.
कार एक बार बिकती है, पार्ट्स सालों तक
मारुति सुजुकी का असली मॉडल सिर्फ कार बेचना नहीं, बल्कि लाइफटाइम सर्विसिंग और रिप्लेसमेंट से रिअकरिंग कमाई पैदा करना है. कंपनी की हर चौथी कार भारतीय सड़कों पर है. यही करोड़ों वाहनों का बेस लाखों बंपर, फिल्टर, क्लच प्लेट, बॉडी पार्ट्स और रिपेयरिंग की लगातार मांग खड़ी करता है. यही आफ्टर मार्केट एडवांटेज कंपनी को एक ऐसी स्थिर कमाई देता है, जो नई कारों की बिक्री पर निर्भर नहीं रहती.
स्लोडाउन में भी कमाई जारी
मैक्रो इकोनॉमिक परिस्थितियों के चलते जब पूरा ऑटो सेक्टर में मंदी के दौर में रहता है, उस दौर में भी मारुति के नंबर पीयर्स जितन ज्यादा नहीं गिरते. इसकी वजह है स्पेयर्स का हाई-मार्जिन पूल, इंडस्ट्री के मुताबिक पार्ट्स बिजनेस का EBITDA मार्जिन 25–30% तक जाता है. यानि रेवेन्यू में छोटा हिस्सा, लेकिन मुनाफे में सबसे बड़ा योगदान. यही कारण है कि मारुति के ग्रॉस मार्जिन लगातार पीयर्स से बेहतर रहते हैं.
96% लोकलाइजेशन असली गेमचेंजर
मारुति सुजुकी का आफ्टर मार्केट दबदबा सिर्फ नेटवर्क की वजह से नहीं, बल्कि इसके 96% लोकलाइजेशन से भी आता है. इतना भारी लोकल कंटेंट कंपनी को तीन बड़े फायदे देता है. सस्ते, आसानी से उपलब्ध पार्ट्स, फास्ट डिलीवरी और पूरे देश में सर्विस नेटवर्क की बेमिसाल एफिशिएंसी. यही लोकलाइजेशन मारुति की स्पेयर्स प्राइसिंग को मास फ्रेंडली भी रखता है और यही अफॉर्डेबिलिटी ग्राहक को ब्रांड-लॉक में रखती है. बाजार में कोई अनिश्चितता हो, डॉलर महंगा हो जाए या आयात महंगा हो, इससे मारुति के स्पेयर पार्ट्स इकोसिस्टम पर खास असर नहीं होता है.
लॉजिस्टिक्स का चमत्कार
कंपनी हर महीने लाखों पार्ट्स की सप्लाई करती है और इसके लिए 96,000 से ज्यादा SKUs मैनेज करती है. पार्ट्स कार्ट और इंटेलीसेल्स जैसे B2B ऐप्स रियल टाइम ऑर्डर और इन्वेंटरी विजिबिलिटी देते हैं, जिससे देशभर के वर्कशॉप्स में पार्ट्स की कमी लगभग नहीं के बराबर रहती. पार्ट्स की एविलेबिलिटी भी मारुति का एक बड़ा एडवांटेज है, जो इसे पीयर्स पर भारी बनाता है.
हर डेंट मारुति के लिए प्रॉफिट
कंपनी की असली ताकत नई कारों की बिक्री से ज्यादा वे वाहन हैंं, जो रोज सड़कों पर चल रहे हैं. इन वाहनों को रोजमर्रा में पार्ट्स, सर्विस और रिप्लेसमेंट की जरूरत पैदा करते हैं. एक तरह से मारुति कारें बेचती है, लेकिन असली मुनाफा उन कारों से कमाती है जो पहले से चल रही हैं. जब भी किसी कार में कोई डेंट लगता है, कोई साइड मिरर टूटता, कोई बंपर टकराता है, तो मुनाफ मारुति को होता है.
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