
डिस्काउंट ब्रोकर्स की बढ़ी मुश्किलें, SEBI के नए नियमों से मुनाफे पर संकट!
सेबी (SEBI) ने पिछले साल 1 अक्टूबर से स्टॉक एक्सचेंजों को ब्रोकर्स को ट्रेडिंग वॉल्यूम के आधार पर छूट देने की प्रथा बंद करने का निर्देश दिया. इस कदम का मकसद पारदर्शिता बढ़ाना था, लेकिन डिस्काउंट ब्रोकर्स, जो हाई-वॉल्यूम ट्रेडिंग और कम मार्जिन पर निर्भर हैं, के मुनाफे पर गहरी चोट पड़ी. इस बदलाव से ब्रोकिंग इंडस्ट्री को मार्च तिमाही में और नुकसान की आशंका है. पहले ब्रोकर्स क्लाइंट्स से ऊंची स्लैब दर वसूलते थे, लेकिन एक्सचेंज को कम शुल्क देते थे, जिससे मुनाफा कमाते थे. अब एकसमान शुल्क संरचना ने इस अंतर को खत्म कर दिया. ग्रोव ने सितंबर से ब्रोकरेज शुल्क को 0.05% से बढ़ाकर 0.1% किया, जबकि एंजल वन ने नवंबर से 0.1% या ₹20 का फ्लैट रेट लागू किया. ब्रोकर्स अब निवेश सलाह, रिसर्च टूल्स और मार्जिन फंडिंग जैसी सेवाओं पर ध्यान दे रहे हैं.
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