डॉलर के आगे रुपया बेबस, ₹90.42 के निचले स्तर पर पहुंचा, जानें किसे फायदा, किसे हो रहा तगड़ा नुकसान

भारतीय करेंसी लगातार फिसलता जा रहा है. डॉलर के मुकाबले यह पहली बार 90.42 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है. FPI आउटफ्लो, भारत–अमेरिका ट्रेड अनिश्चितता और वैश्विक उतार–चढ़ाव रुपये पर दबाव बढ़ा रहे हैं, जिससे आयात महंगा और अर्थव्यवस्था पर नई चुनौतियां उभर रही हैं.

Dollar vs Rupee Depreciation Image Credit: @AI/Money9live

Dollar vs Rupee Depreciation: दिसंबर के सर्द महीने में आसमान से गिरने वाली ओस और भारतीय करेंसी मार्केट में रुपये के बीच अगर गिरावट की रेस लग जाए, तो गिरने के मामले में रुपया दौड़ जीत सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि गुरुवार, 4 दिसंबर को शुरुआती ट्रेडिंग में भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर 90.42 रुपये पर पहुंच गया. यह कोई पहला मौका नहीं है. बीते दिनों में यह चौथी बार है जब रुपया लगातार अपने निचले स्तर को छू रहा है. अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये पर भारी दबाव के पीछे कई वजहें हैं. इसमें FPI का आउटफ्लो, भारत–US ट्रेड डील पर संकट के बादल और वैश्विक अनिश्चितता जैसे कारण शामिल हैं.

90 का दौर शुरू!

मंगलवार, 2 दिसंबर को भारतीय रुपया पहली बार डॉलर के मुकाबले ₹90 के स्तर को पार कर गया. उसके बाद बुधवार को शुरुआती ट्रेडिंग में यह ₹90.14 के स्तर पर पहुंच गया. आज, 4 दिसंबर को इसमें और भी गिरावट आई और यह 90.42 के स्तर पर पहुंच गया. पिछले 8 कारोबारी दिनों में रुपये ने डॉलर के मुकाबले 1 रुपये की कमजोरी दर्ज की है, यानी 89 रुपये से 90 रुपये के स्तर को पार करने में इसे केवल 8 दिन लगे हैं.

ईंधन आयात होगा महंगा

भारत अपनी 85 फीसदी से ज्यादा पेट्रोल-डीजल की जरूरत विदेश से पूरी करता है. रुपया कमजोर होने से तेल आयात करना महंगा पड़ेगा. पेट्रोल-डीजल के दाम फिलहाल नहीं बढ़ेंगे, लेकिन तेल कंपनियों का मुनाफा कम हो जाएगा और सरकार को सब्सिडी ज्यादा देनी पड़ सकती है. इसके साथ ही भारत खाद (Fertiliser) भी काफी मात्रा में बाहर से मंगाता है. रुपया कमजोर होने से खाद महंगा हो जाएगा. सरकार खाद के दाम कंट्रोल करती है, इसलिए सब्सिडी का खर्च बढ़ेगा. इस साल खाद सब्सिडी के लिए करीब 1.68 लाख करोड़ रुपये का बजट रखा गया है. विदेश में पढ़ने वाले छात्रों को अब ज्यादा रुपये देने पड़ेंगे. डॉलर की फीस के लिए पहले से ज्यादा रुपये लगेंगे. एजुकेशन लोन और उसकी EMI भी बढ़ जाएगी.

महंगाई बढ़ने का डर

आयात महंगा होने से चीजें महंगी हो सकती हैं, लेकिन अभी चिंता की कोई बात नहीं है. अक्टूबर में खुदरा महंगाई रिकॉर्ड कम 0.25 फीसदी पर थी. रुपये के लगातार गिरने से शेयर बाजार में घबराहट की स्थिति उत्पन्न होगी. विदेशी निवेशक इंतजार कर रहे हैं कि रुपया कब स्थिर होगा. उस हिसाब से निवेश के लिए रणनीति अपनाएंगे.

भारत सोना-चांदी का आयात करता है. रुपया कमजोर होने से ये और महंगे हो जाएंगे. पहले से ही चांदी वैश्विक स्तर पर रिकॉर्ड हाई बना रही है. एयरलाइंस कंपनियों का काफी खर्च डॉलर में होता है. ईंधन, विमान का किराया आदि, रुपया कमजोर होने से उनका खर्च बढ़ेगा, जिससे हवाई टिकट महंगा हो सकता है. महंगी कारों और इलेक्ट्रिक गाड़ियों में विदेशी पार्ट्स ज्यादा होते हैं. रुपया कमजोर होने से इनकी कीमत बढ़ जाएगी.

विदेशी कर्ज चुकाना महंगा पड़ेगा

जिन कंपनियों ने डॉलर में कर्ज लिया है, उन्हें अब ज्यादा रुपये देकर कर्ज चुकाना पड़ेगा. हेजिंग का खर्च भी बढ़ेगा. भारतीय बैंक को फायदा हो सकता है क्योंकि लोग विदेशी कर्ज की बजाय यहां से लोन लेंगे. भारत में पहले के मुकाबले अब ज्यादा मोबाइल फोन बन रहे हैं, लेकिन फिर भी कई पार्ट्स बाहर से इमपोर्ट होते हैं. इसलिए इसके दाम बढ़ सकते हैं. साथ ही टीवी, एसी जैसे सामान भी महंगे हो सकते हैं.

निर्यात को बड़ा फायदा, अमेरिकी टैरिफ का असर कम होगा

रुपया कमजोर होने से भारतीय सामान विदेश में सस्ता हो जाता है. इससे निर्यात बढ़ेगा. अमेरिका ने जो हाई टैरिफ लगाए हैं, उसका असर कुछ कम हो जाएगा. Real Effective Exchange Rate (REER) अक्टूबर 2025 में 97.47 पर आ गई है, यानी रुपया अब कम आंका जा रहा है. यह निर्यात के लिए अच्छा है. IT कंपनियों की कमाई ज्यादातर डॉलर में होती है. रुपया कमजोर होने से उन्हें रुपये में ज्यादा पैसा मिलेगा. दवा कंपनियां भी काफी निर्यात करती हैं, उन्हें भी बड़ा फायदा होगा.

बढ़ेगा रेमिटेंस

अब एक डॉलर के बदले भारत में ज्यादा रुपये मिलेंगे. इसलिए विदेश में रहने वाले भारतीय परिवार जो डॉलर भारत भेजेंगे उनके बदले उन्हें ज्यादा रुपये मिलेंगे. इस तरह से भारत का रेमिटेंस बढ़ेगा. पिछले साल भारत को रिकॉर्ड 135.5 अरब डॉलर की रेमिटेंस मिली थी. यह पैसे देश के व्यापार घाटे को संभालने में बड़ी मदद करेंगे.

कुल मिलाकर रुपया कमजोर होने से आयात महंगा जरूर हो रहा है, लेकिन निर्यात, IT, दवा उद्योग और रेमिटेंस को मजबूती मिल रही है.