गर्मी के साथ बढ़ा बिजली का बोझ, मई-जून में दिल्ली के ग्राहकों को देना होगा ज्यादा बिल
दिल्ली में मई और जून के महीने में बिजली की कीमतों में 7 फीसदी से 10 फीसदी तक की बढ़ोतरी की गई है. यह बढ़ोतरी 'पावर परचेज एडजस्टमेंट कॉस्ट' (PPAC) के तहत हुई है, जो बिजली उत्पादन में बढ़ी लागत के चलते उपभोक्ताओं से वसूली जाती है.
Delhi Electricity Bill Hike: दिल्ली के बिजली उपभोक्ताओं को इस गर्मी में सिर्फ एसी, कूलर और पंखों की वजह से ही नहीं, बल्कि एक नए शुल्क के कारण भी ज्यादा बिजली बिल चुकाना पड़ेगा. मई और जून के महीनों में दिल्ली में बिजली की कीमत 7 से 10 फीसदी तक बढ़ गई हैं. यह बढ़ोतरी किसी स्थायी बिजली टैरिफ में नहीं, बल्कि पावर परचेज एडजस्टमेंट कॉस्ट (PPAC) के तहत की गई है.
क्या है PPAC और कितना बढ़ेगा दर?
PPAC यानी Power Purchase Adjustment Cost एक ऐसा शुल्क है जिसे बिजली कंपनियां समय-समय पर बिजली उत्पादन में बढ़ती लागत के आधार पर उपभोक्ताओं से वसूलती हैं. इसमें कोयला, गैस, ट्रांसपोर्ट और बिजली उत्पादन से जुड़ी दूसरी लागतें शामिल होती हैं. जब इन लागतों में बढ़ोतरी होती है, तो उसका सीधा असर उपभोक्ताओं के बिजली बिल पर पड़ता है. मनीकंट्रोल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली की तीन बड़ी बिजली कंपनियों- बीआरपीएल (BRPL), बीवाईपीएल (BYPL) और टीपीडीडीएल (TPDDL) ने मई-जून के बिल में क्रमशः 7.25 फीसदी, 8.11 फीसदी और 10.47 फीसदी की बढ़ोतरी की है.
URD ने बताया ‘मनमाना फैसला’
दिल्ली की रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशनों (RWAs) के संगठन United Residents of Delhi (URD) ने इस बढ़ोतरी की कड़ी आलोचना की है. संगठन के महासचिव सौरभ गांधी ने आरोप लगाया है कि DERC (दिल्ली इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन) ने यह फैसला कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना लिया है. उन्होंने कहा, “कमीशन ने केवल वर्चुअल पब्लिक हीयरिंग की, जिसमें आम लोगों को अपनी बात रखने का पर्याप्त मौका नहीं दिया गया. हमें उम्मीद थी कि यह कमीशन पारदर्शिता के साथ टैरिफ तय करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.”
गांधी ने यह भी सवाल उठाया कि सभी कंपनियों के लिए ईंधन लागत समान होने के बावजूद PPAC की दरों में अंतर क्यों है? उन्होंने समान दर लागू करने की मांग की.
डिस्कॉम ने किया बचाव
रिपोर्ट के मुताबिक, बिजली कंपनियों (डिस्कॉम) का कहना है कि PPAC पूरी तरह से नियामक के नियमों के अनुसार लगाया गया है और इसका मकसद बढ़ती उत्पादन लागत को समय पर वसूलना है ताकि बिजली आपूर्ति में कोई बाधा न आए. कंपनियों का यह भी कहना है कि अगर यह शुल्क न लिया जाए तो उन्हें बिजली उत्पादन कंपनियों को भुगतान करने में दिक्कत हो सकती है.
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