Hindustan Zinc ने विदेशी फर्म के आरोपों को बताया बेबुनियाद, जानिए क्या होती है ‘ब्रांड फीस’ जिसपर मचा है बवाल
Vedanta और Hindustan Zinc के बीच ब्रांड फीस को लेकर मचा बवाल अब और गहराता जा रहा है. Viceroy Research की एक रिपोर्ट ने नया विवाद खड़ा कर दिया है, लेकिन HZL की ओर से जो सफाई आई है, उसने पूरी तस्वीर को और उलझा दिया है. असली मामला क्या है, जानने के लिए पढ़ें पूरी रिपोर्ट.

Hindustan zinc brand fee agreement: अमेरिकी शॉर्ट-सेलर वाइसरॉय रिसर्च के आरोपों पर हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (HZL) ने साफ शब्दों में जवाब दिया है. कंपनी के CEO अरुण मिश्रा ने कहा कि वेदांता द्वारा ब्रांड फीस को लेकर कोई समझौता नहीं तोड़ा गया है और हर निर्णय तय प्रक्रिया के तहत बोर्ड की मंजूरी से लिया गया है.
क्या है पूरा विवाद?
वाइसरॉय रिसर्च ने अपनी हालिया रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि वेदांता ने HZL से ब्रांड फीस वसूलकर सरकार के साथ हुए समझौते का उल्लंघन किया है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अक्टूबर 2022 में वेदांता ने HZL पर ‘ब्रांड फीस’ लगाई थी, जो न केवल गैर-व्यावसायिक है, बल्कि सरकार के साथ हुए शेयरधारक समझौते का भी उल्लंघन है.
HZL का पलटवार
इन आरोपों को खारिज करते हुए HZL के CEO ने कहा, “हम किसी भी प्रस्ताव को पहले कानूनी जांच और सरकारी नामित निदेशक से विचार-विमर्श के बाद ही बोर्ड के सामने रखते हैं. बोर्ड को प्रस्तावों को समझने और मंजूरी देने के लिए पूरा समय दिया जाता है.” उन्होंने यह भी कहा कि ब्रांड फीस को लेकर कोई गड़बड़ी नहीं है और कंपनी को अपनी प्रक्रिया पर पूरा भरोसा है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, हिंदुस्तान जिंक में भारत सरकार की 27.92 फीसदी और वेदांता की 61.84 फीसदी हिस्सेदारी है. वेदांता ने साल 2002 में भारत सरकार से HZL में हिस्सेदारी खरीद कर कंपनी का निजीकरण किया था.
ब्रांड फीस क्या होती है?
ब्रांड फीस उस राशि को कहते हैं जो किसी कंपनी को एक ब्रांड या ट्रेडमार्क (जैसे नाम, लोगो या पहचान) के इस्तेमाल के बदले चुकानी पड़ती है. अगर कोई कंपनी किसी बड़ी कंपनी के ब्रांड नेम या पहचान को इस्तेमाल करती है, चाहे वह उसका ही ग्रुप हो तो उसे उस ब्रांड के मालिक को एक तयशुदा फीस देनी होती है.
मान लीजिए कि Hindustan Zinc Ltd (HZL) एक स्वतंत्र कंपनी है लेकिन इसका मालिक वेदांता है. अब अगर HZL अपने उत्पादों, विज्ञापन या दस्तावेजों में “Vedanta” ब्रांड या लोगो का इस्तेमाल करता है, तो Vedanta इस उपयोग के लिए HZL से एक ब्रांड फीस वसूल सकता है.
ये फीस दो कंपनियों के बीच हुए एक समझौते के तहत तय होती है और आमतौर पर इसका मकसद ब्रांड के नाम से होने वाले फायदे का एक हिस्सा लेना होता है. HZL और Vedanta के मामले में विवाद इसीलिए है क्योंकि वाइसरॉय का आरोप है कि ब्रांड फीस वसूलने से भारत सरकार के साथ हुआ शेयरधारक समझौता टूटता है, जबकि HZL कह रही है कि सब कुछ बोर्ड और सरकार के प्रतिनिधि की जानकारी में हुआ है.
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वेदांता पर वाइसरॉय की लगातार नजर
यह पहली बार नहीं है जब वाइसरॉय रिसर्च ने वेदांता पर आरोप लगाए हों. बीते कुछ दिनों में वाइसरॉय ने वेदांता और उसकी सहयोगी कंपनियों को लेकर कई रिपोर्ट्स प्रकाशित की हैं. हालांकि HZL का दावा है कि उनकी प्रक्रियाएं पूरी तरह पारदर्शी और नियमों के मुताबिक हैं.
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