कितना व्यापार कर रहे भारत-रूस, जिससे बौखलाए हुए हैं ट्रंप, क्या टैरिफ सिर्फ बहाना और ब्रिक्स है निशाना?

अमेरिकी राष्ट्रपति कई बार यह कह चुके हैं कि भारत और चीन रूस के साथ व्यापार बंद कर दें, तो यूक्रेन युद्ध खत्म हो जाए. हालांकि, जानकारों का कहना है कि अगर ट्रंप यूक्रेन को हथियार देना बंद कर दें, तो और जल्दी युद्ध खत्म हो जाए. बहरहाल, यहां जानते हैं कि आखिर भारत और रूस कितना व्यापार कर रहे हैं और इस व्यापार से ट्रंप का असल डर क्या है?

भारत-रूस की दोस्ती से ट्रंप चिढ़े Image Credit: Money9live/AI

फरवरी 2022 में रूस और यूक्रेन के बीच शुरू हुई जंग को अब तीन वर्ष से ज्यादा वक्त बीत चुका है. इस दौरान अमेरिका की तरफ से यूक्रेन को 200 अरब डॉलर से ज्यादा की मदद दी गई है. इसमें करीब 70 अरब डॉलर से ज्यादा के हथियार और 106 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता शामिल है. वहीं, इस अवधि में भारत और रूस के बीच करीब कुल 200 अरब डॉलर का कारोबार हुआ है. जबकि, इसी दौरान रूस और यूरोप के बीच 400 अरब डॉलर से ज्यादा का कारोबार हुआ है. जबकि, इस दौरान खुद अमेरिका ने भी रूस के साथ 20 अरब डॉलर से ज्यादा का कारोबार किया है.

देश2022 2023 2024 2025 Q1 कुल
रूस-अमेरिका12.84.573.012.0922.47
भारत-रूस49.3665.707015200.06
रूस-चीन190240.1244.860734.9
रूस-ईयू257.510067.515440.0
आंकड़े अरब डॉलर में है. स्रोत- IMF, UNComtrade, Bloomberg

औपनिवेशिक मानसिकता की झलक

भारत में रूस के राजदूत Denis Alipov का कहना है कि यह अमेरिका और पश्चिमी देशों की औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाता है. जहां, वे खुद रूस के साथ कारोबार करते रहना चाहते हैं, लेकिन भारत को रूस के साथ कारोबार करने से रोकना चाहते हैं.

रूस बनाम अमेरिका की दोस्ती

भारत और रूस के संबंध दशकों पुराने हैं. भारत के लिए रूस समय की कसौटी पर खरा उतरा दोस्त है. वहीं, अमेरिका की दोस्ती सलेक्टिव और रेस्ट्रिक्टिव रही है. यानी अमेरिका भारत के साथ अपने हितों के आधार पर चुनिंदा मसलों पर दोस्ती चाहता है. अमेरिका के लिए चीन को काउंटरवेट करने के लिए हिंद महासागर में भारत की दोस्ती चाहिए. लेकिन, अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए रूस और ईरान के साथ भारत के संबंधों पर आपत्ति होने लगती है. ट्रंप ने टैरिफ डील को भारत पर दबाव का जरिया बना लिया है, ताकि इसकी मदद से भारत को रूस से दूर किया जा सके.

क्या ब्रिक्स से डरे हैं ट्रंप?

डोनाल्ड ट्रंप कई मौकों पर इस बात का डर जाहिर कर चुके हैं कि डॉलर का वर्चस्व खत्म होते ही अमेरिका का रुतबा खत्म हो जाएगा. ट्रंप पूरी दुनिया पर हर हाल में डॉलर को थोपे रखना चाहते हैं. जबकि, रूस और चीन लगातार डॉलर की जगह नए विकल्पों की बात कर रहे हैं. यहां तक कि ब्रिक्स की करेंसी की योजना भी बना ली गई है, जिसे सिर्फ भारत ने रोके रखा है. ऐसे में यह भी माना जा रहा है कि ट्रंप असल में ब्रिक्स की करेंसी के प्लान से ज्यादा खौफजदा हैं, क्योंकि ब्रिक्स दुनिया की दुनिया की करीब 50 फीसदी आबादी और 50 फीसदी GDP को रिप्रेजेंट करता है. अगर ब्रिक्स की अपनी करेंसी बनती है, तो जाहिर तौर पर यह अमेरिकी डॉलर का वर्चस्व खत्म कर देगी.

भारत और अमेरिका व्यापार

भारत और अमेरिका के बीच फिलहाल 80 से 130 अरब डॉलर के बीच रहता है. जबकि, भारत कुल विदेशी व्यापार 800 अरब डॉलर से 1 लाख करोड़ डॉलर के बीच है. भारत-अमेरिका के बीच अगर व्यापार संतुलन की बात की जाए, तो भारत सरप्लस में रहता है. हालांकि, अमेरिकी इकोनॉमी और द्विपक्षीय व्यापार के लिहाज से देखा जाए, तो यह आंकड़ा मामूली है.

वित्त वर्षभारत से निर्यात अमेरिका से आयातकुल व्यापार व्यापार संतुलन
202246.9 38.7 85.68.2
202340.3 85.5125.845.2
2024 41.8  87.4 129.245.6
2025 (Jan–May)~8.83  ~$3.62~12.45~5.2
सभी आंकड़े अरब डॉलर में स्रोत, वाणिज्य मंत्रालय

क्या चाहते हैं ट्रंप?

20 जनवरी को ट्रंप ने अपने कार्यकाल की शुरुआत के दिन ही कहा था कि वे चाहते हैं कि अमेरिकी तेल कंपनियां जमकर तेल निकालें, जिससे अमेरिकी इकोनॉमी को फायदा हो. माना जा रहा है कि ट्रंप की तरफ से भारत के खिलाफ टैरिफ का दबाव इसी वजह से बनाया जा रहा है, ताकि भारत भी अमेरिकी कंपनियों से तेल खरीदे. हालांकि, अमेरिकी तेल काफी महंगा, जबकि भारत के लिए रूसी तेल डिस्काउंट पर मिल रहा है. ऐसे में भारत अपने राष्ट्रीय हितों को ऊपर रखकर ट्रंप के दबाव में आए बिना रूसी तेल की खरीद कर रहा है. इस मामले में पहले से ही भारत का रुख साफ रहा है कि तेल वहां से खरीदा जाएगा, जहां से सबसे सस्ता मिलेगा, क्योंकि भारत को अपनी ऊर्जा जरूरत पूरी करने के लिए 80 फीसदी तेल आयात करना पड़ता है. ऐसे में किसी तरह के दबाव में आकर भारत इस मामले में कोई समझौता नहीं करेगा.

क्या वाकई युद्ध खत्म करना चाहते हैं ट्रंप?

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सहित दुनिया की कई हस्तियों ने कहा है कि अगर वाकई अमेरिका यूक्रेन में युद्ध रोकना चाहता है, तो उसे रूस को इस बात का भरोसा देना होगा कि नाटो का विस्तार रूस की सीमा तक नहीं किया जाएगा. क्योंकि, नाटो को USSR के खिलाफ बनाया गया था. अब USSR खत्म हो चुका है, तो ऐसे में नाटो का विस्तार सीधे तौर पर रूस की एकता और अखंडता के लिए खतरा है. ऐसे में यूक्रेन में युद्ध खत्म करना अमेरिका के हाथ में है. अगर अमेरिका यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति बंद करे और रूस को भरोसा दिलाए कि नाटो आगे नहीं बढ़ेगा, तो युद्ध खत्म हो जाएगा. लेकिन, ट्रंप का इरादा युद्ध खत्म करने से ज्यादा यूक्रेन के प्राकृतिक संसाधनों पर अमेरिकी कंपनियों का अधिकार है, जिसके लिए वे पहले ही मिनरल डील कर चुके हैं. वहीं, इस युद्ध के बहाने ट्रंप भारत पर भी दबाव बनाना चाहते हैं, ताकि भारत रुपये और रूबल में रूस से तेल खरीदने की जगह पेट्रो-डॉलर पैक्ट वाले देशों से तेल खरीद बढ़ाए और डगमगाते डॉलर को सहारा दे.

Latest Stories

अमेरिकी टैरिफ पर पीयूष गोयल का जवाब, भारत राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए उठाएगा सभी जरूरी कदम; उद्योगों और किसानों के हितों से नहीं होगा समझौता

Adani Enterprises का Q1 प्रॉफिट 50 फीसदी गिरा, रेवेन्यू में 14% की कमी; विंड टरबाइन में मिला पहला एक्सटर्नल ऑर्डर

स्विगी का घाटा 96 फीसदी बढ़कर 1197 करोड़ हुआ, रेवेन्यू में 54 फीसदी का इजाफा, जानें- क्यों बढ़ा लॉस

नुवामा वेल्थ के दफ्तरों पर इनकम टैक्स की रेड, जेन स्ट्रीट की ट्रेडिंग पार्टनर रही है फर्म

RIL छोड़ इस कंपनी में अंबानी परिवार क्यों लगा रहा अपना पैसा, जानें क्या है मुकेश-नीता का प्‍लान

टैरिफ दांव ट्रंप पर न पड़ जाए उल्टा, USA में बढ़ सकती है महंगाई, भारत के इन प्रोडक्ट के भरोसे अमेरिकी