गाय के चारे में मिल रहा है मांस और खून, भारत को मंजूर नहीं अमेरिका की डेयरी नीति; क्या चाहते हैं ट्रंप?

भारत और अमेरिका एक बड़े व्यापार समझौते के करीब हैं, लेकिन एक ऐसा मुद्दा है जो इस डील को रोक रहा है. यह मसला सिर्फ व्यापार का नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और किसानों के भविष्य से जुड़ा है. जानिए क्यों इस बार दूध की एक बूंद ने खड़ा कर दिया विवाद का तूफान.

भारत को मंजूर नहीं अमेरिका की डेयरी नीति Image Credit: Money9 Live

Non Veg milk in India: भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से अटकी व्यापार संधि अब लगभग अंतिम दौर में है, लेकिन इस डील में अब एक रोड़ा सामने आ रहा है. और ये मुश्किल है अमेरिका से आने वाला नॉन वेज दूध और डेयरी प्रोडक्ट्स. अमेरिका ऐसे डेयरी प्रोडक्ट्स इंपोर्ट करना चाहता है जो नॉनवेज हैं यानी जिन पशुओं से ये प्रोडक्ट शुरूआत में इकट्ठा किए गए उनके चारों में मांस की मिलावट रही. भारत की एक बड़ी आबादी, लगभग 39 फीसदी शाकाहारी हैं ऐसे में सरकार नॉनवेज डेयरी की एंट्री भारत में कराने से इंकार कर रही है.

क्या होता है ‘नॉन वेज मिल्क’?

‘नॉन वेज मिल्क’ शब्द का इस्तेमाल भारत में उस दूध के लिए किया जा रहा है जो ऐसी गायों से आता है जिन्हें मांस, खून, हड्डी, और जानवरों की चर्बी से बने चारे पर पाला गया हो. अमेरिका में ऐसी फीडिंग प्रैक्टिस कानूनी है, लेकिन भारत में इसे धार्मिक और नैतिक आधार पर अस्वीकार्य माना जाता है.

रिपोर्ट्स बताती हैं कि अमेरिका में गायों को दिए जाने वाले चारे में मरे हुए जानवरों की चर्बी, सूअर और घोड़ों का खून, मुर्गियों के पंख, बिस्तर का बिछावन, और यहां तक कि कुत्ते और बिल्ली जैसे पालतू जानवरों का मांस भी शामिल हो सकता है. भारत में ऐसे दूध का धार्मिक उपयोग तो छोड़िए, दैनिक उपयोग में भी बड़ी संख्या में लोग स्वीकार नहीं करेंगे.

इंकार की वजह धार्मिक-आर्थिक वजहें शामिल

दोनों देशों में बिजनेस डील पर चर्चाएं और फैसलों ने तेजी पकड़ ली है. भारत गाय के दूध का दुनिया का सबसे बड़ा कंज्यूमर है ऐसे में ट्रंप चाहते हैं कि उनके देश की कंपनियां यहां एंट्री करें, लेकिन नॉन वेज दूध का जिक्र आते ही भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी ऐसे डेयरी प्रोडक्ट को अनुमति नहीं देगा जो ऐसी गायों से आया हो जिन्हें कभी भी मांस या खून से बना चारा दिया गया हो. भारत चाहता है कि हर आयातित डेयरी उत्पाद के साथ एक प्रमाणपत्र दिया जाए जिसमें यह गारंटी हो कि गाय को कभी भी मांस, खून, हड्डी या अंगों से बनी फीड नहीं दी गई.

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सिर्फ धार्मिक वजह ही नहीं, आर्थिक नुकसान की आशंका भी इस विरोध का बड़ा कारण है. भारत का डेयरी क्षेत्र लाखों छोटे किसानों पर टिका है, जिनकी रोजी-रोटी कुछ ही गायों से चलती है. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक अगर अमेरिकी दूध भारत में आया तो भारतीय दूध की कीमतें 15 फीसदी तक गिर सकती हैं, जिससे किसानों को सालाना 1.03 लाख करोड़ रुपये तक का नुकसान हो सकता है.