Indigo पान की दुकान, जब खुद मालिक ने कहा.. क्या मिल गई थी संकट की आहट, इसलिए 30 हजार करोड़ लेकर निकले

इंडिगो इस समय चौतरफा संकट से जूझ रही है. ऐसे में लगता है कि फाउंडर राहुल भाटिया को इस समय दोस्त राकेश गंगवाल की कमी सबसे ज्यादा महसूस हो रही होगी. गंगवाल को दुनिया के सबसे प्रभावशावी एयरलाइन मैनेजर में से एक माना जाता है. और उन्होंने कंपनी को देश की नंबर वन एयरलाइन बनाने में अपने इसी अनुभव को झोका है.

इंडिगो पान की दुकान है, फाउंडर का बयान वायरल Image Credit: Money9live

Indigo Pan Ki Dukan And Founder Rakesh Gangwal Contribution:आज से एक हफ्ते पहले कोई यह कहता कि इंडिगो बहुत लेट-लतीफ है, उसका कोई भरोसा नहीं है. तो शायद यह कोई नहीं मानता . लेकिन 2 दिसंबर से जिस तरह एयरलाइन ने यात्रियों को बंधक बनाकर रखा और भारतीय एविएशन इंडस्ट्री इतिहास की सबसे बड़ी न भूलने वाली घटना को अंजाम दिया. उसने कंपनी की खामियों को उजागर कर दिया है. अकेले तीन दिन में 1000 से ज्यादा फ्लाइट कैंसिल हो गई. यात्री एयरपोर्ट पर बदहवास होकर घूम रहे थे. किसी की बेटी बिना सैनेटरी पैड के ब्लीड कर रही थी. तो कहीं कोई अपने पति के ताबूत को लेकर फंसा हुआ था. लोगों को चंद हजार के टिकट लाख रुपये तक में मिल रहे थे. और यह सब एक ऐसी एयरलाइंस में हो रहा था जो अपने पंक्चुअलिटी और बेहतर प्लानिंग और मैनेजमेंट के लिए जानी जाती रही है. अपने इसी संचालन की वजह से वह भारत की एक मात्र प्रॉफिट कमाने वाली एयरलाइंस भी बन चुकी थी.

फाउंडर ने ही कहा पान की दुकान

इंडिगो ने यह उड़ान दो दोस्तों राहुल भाटिया और राकेश गंगवाल के जुनून और विजन से हासिल की थी. लेकिन जब से यह जोड़ी टूटी है. उसी समय से इंडिगो की चाल और दिशा बदलनी शुरू हो गई. और अब एयरलाइन अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. तो यह सवाल उठने लगा है कि क्या जोड़ी टूटने की वजह इस संकट की आहट तो नहीं थी? क्या राकेश गंगवाल ने छह साल पहले जब अपनी खुद की ही कंपनी को पान की दुकान कहा था. तो उसकी वजह उसका काम करने का तरीका था? और उसमें सुधार ना होता देख ही उन्होंने धीरे-धीरे कंपनी से अपनी हिस्सेदारी बेचने शुरू कर दी ? मई 2025 में वह अपनी पूरी हिस्सेदारी को बेचकर कुल 30,000 करोड़ लेकर, इंडिगो से एग्जिट हो गए. इंडस्ट्री सूत्रों के अनुसार इंडिगो से गंगवाल की दूरी की वजह कार्यप्रणाली ही थी. जिसको लेकर वह सवाल उठा रहे थे.

पहले ही गड़बड़ियों के लिए कर दिया था अलर्ट

गंगवाल ने राहुल भाटिया के साथ मिलकर 2004 में इंडिगो की शुरुआत की थी. और उसे इस मुकाम पर पहुंचाया कि दुनिया भर में उसकी चर्चा होती है. गंगवाल और उनके परिवार की हिस्सेदारी एक समय लगभग 37 फीसदी हुआ करती थी. लेकिन दोस्त राहुल भाटिया के साथ बढ़ते विवादों के बीच गंगवाल ने फरवरी 2022 में इंडिगो के बोर्ड से इस्तीफा दे दिया और उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपनी हिस्सेदारी धीरे-धीरे कम करने की योजना का ऐलान कर दिया था. इसके पहले गंगवाल ने 2019 में सेबी को लिखे लेटर में कहा था कि इंडिगो अपने सिद्धांतों और संचालन के मूल्यों से भटक चुकी है. एक पान की दुकान इससे ज्यादा बेहतर तरीके से मामलों को सुलझा सकती है. गंगवाल ने उस वक्त रिलेटेड पार्टी ट्रांजेक्शंस (आरपीटी) पर सवाल उठाते हुए कहा था कि शेयरहोल्डर्स के एग्रीमेंट से भाटिया को इंडिगो पर असामान्य नियंत्रण का अधिकार मिल गया है. संचालन से जुड़े मूलभूत नियम और कानूनों का पालन नहीं किया जा रहा है और अगर तुरंत एक्शन नहीं लिए गए तो नतीजे दुर्भाग्यपूर्ण होंगे.

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क्या गंगवाल की कमी महसूस कर रही है इंडिगो

गंगवाल ने जिस संकट पर सवाल उठाए थे. वही आज उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती बन कर खड़े हो गए हैं. असल में गंगवाल इन्हीं चुनौतियों से निपटने में माहिर माने जाते रहे हैं. इंडिगो में उन्होंने ऐसा करके दिखाया है. साल 2004 में जब उनके दोस्त राहुल भाटिया ने इंटर ग्लोब कंपनी यानी इंडिगो की शुरूआत की थी तो वह 2 साल तक प्लेन नहीं खरीद पाए थे. उस वक्त गंगवाल के कनेक्शन और एविएशन इंडस्ट्री की समझ ही काम आई. गंगवाल ने शुरुआत के लिए एयरबस से उधार पर 100 एयरप्लेन दिलाए. तब जाकर चार अगस्त 2006 से कंपनी अपनी उड़ान शुरू कर पाई. जब इंडिगो ने अपना सफर शुरू किया तो भारत में एविएशन इंडस्ट्री मुश्किल दौर से गुजर रही थी. ऐसे में कंपनी ने सबसे पहले उन लोगों को अपना कस्टमर बनाया जो हवाई सफर तो करना चाहते थे लेकिन उनके पास ज्यादा पैसे नहीं थे. इससे इंडिगो के अधिक से अधिक टिकट बिके और उसे नुकसान ना के बराबर हुआ.

इसके अलावा गंगवाल ने विमानों के टाइमिंग पर सबसे ज्यादा फोकस रखा. इंडस्ट्री में यहां तक कहा जाता था कि गंगवाल ने इंडिगो में आर्मी की पंक्चुअलिटी लाई . यही नहीं फ्लीट के यूज पर कड़ा अनुशासन लागू किया. उन्होंने एयरबस से बड़े ऑर्डर सुनिश्चित किए, जिससे इंडिगो की लागत घटी और उसके पास 400 से ज्यादा विमानों का मजबूत बेड़ा भी तैयार हो गया. इसके अलावा गंगवाल की अगुआई में इंडिगो में प्रवासी प्रोफेशनल को शामिल किया गया जो भारतीय मैनेजरों के साथ मिलकर इसका बेहतर संचालन करने में कामयाब रहे.

इंडिगो में गंगवाल का एयरलाइन ऑपरेशन पर पूरा फोकस था. उन्होंने एक ऑपरेटिंग टेम्पलेट भी बनाया जिसका कंपनी ने वर्षों तक पालन किया. कंपनी से निकलने के बाद भी इंडिगो में गंगवाल का सिस्टम चलता रहा. लेकिन शायद अब वह मिलिट्री वाला अनुशासन और आपरेशन पर पैनी नजर नहीं रही है. जिसका असर इंडिगो पर दिख रहा है. गंगवाल को दुनिया के सबसे प्रभावशावी एयरलाइन मैनेजर में से एक माना जाता है. इंडिगो इस समय चौतरफा संकट से जूझ रही है. ऐसे में लगता है कि दोस्त राहुल भाटिया को इस समय राकेश गंगवाल की कमी सबसे ज्यादा महसूस हो रही होगी.