ग्रीन एनर्जी की असली कहानी… सोलर नहीं, स्टोरेज तय करेगा भविष्य का पावर गेम; ये 8 स्टॉक्स बदल सकते हैं बाजी

दिन में जब धूप सबसे तेज होती है, तब बिजली ज्यादा बनती है लेकिन खपत कम होती है. नतीजा, बिजली बर्बाद होती है. यही सबसे बड़ी चुनौती है. इस चुनौती का समाधान है बड़े पैमाने पर एनर्जी स्टोरेज. आने वाले सालों में यही तय करेगा कि भारत की ग्रीन एनर्जी कितनी सफल होगी.

solar energy stocks Image Credit: AI

Clean Energy: भारत की क्लीन एनर्जी यात्रा तेज रफ्तार से आगे बढ़ रही है. सोलर और विंड एनर्जी के नए प्लांट लग रहे हैं, सरकार की नीतियां सपोर्टिव हैं और 2030 तक 500 गीगावॉट क्लीन पावर का लक्ष्य साफ दिखता है. लेकिन इस पूरी कहानी में एक ऐसा हिस्सा है, जिस पर निवेशकों और बाजार की नजर अभी भी कम है. यह एनर्जी स्टोरेज सेक्टर है. सच्चाई यह है कि बिना स्टोरेज के भारत की रिन्यूएबल एनर्जी पूरी तरह काम की नहीं बन पाएगी.

दिन में जब धूप सबसे तेज होती है, तब बिजली ज्यादा बनती है लेकिन खपत कम होती है. नतीजा, बिजली बर्बाद होती है. यही सबसे बड़ी चुनौती है. इस चुनौती का समाधान है बड़े पैमाने पर एनर्जी स्टोरेज. आने वाले सालों में यही तय करेगा कि भारत की ग्रीन एनर्जी कितनी सफल होगी.

रिन्यूएबल एनर्जी की सबसे बड़ी समस्या

भारत का पावर ग्रिड पुराने सिस्टम पर बना है. यह सोलर और हवा जैसी बदलती बिजली के लिए तैयार नहीं था. कई राज्यों में दोपहर के समय सोलर बिजली जरूरत से ज्यादा बन जाती है, जिसे ग्रिड संभाल नहीं पाता. कंपनियों को प्रोडक्शन घटाना पड़ता है. यह कोई छोटी तकनीकी दिक्कत नहीं, बल्कि एक बड़ी संरचनात्मक समस्या है.

स्टोरेज क्यों बन गया है जरूरी

बिना स्टोरेज के हर नया सोलर या विंड प्लांट कम उपयोगी होता जा रहा है. स्टोरेज इस सिस्टम का “सेफ्टी वाल्व” है. यही अतिरिक्त बिजली को बचाकर रखता है और जरूरत के समय इस्तेमाल करने लायक बनाता है. राष्ट्रीय बिजली योजना 2023 के मुताबिक:

  • 2027 तक भारत को 16 GW / 82 GWh स्टोरेज चाहिए.
  • 2032 तक यह ज़रूरत बढ़कर 74 GW / 411 GWh हो जाएगी.
  • मतलब, अगले दशक में भारत को स्टोरेज पर उतनी ही तेजी से काम करना होगा, जितनी तेजी से उसने सोलर सेक्टर बनाया था.

नीतियों में बड़ा बदलाव

सरकार ने स्टोरेज को अब मुख्य बिजली सिस्टम का हिस्सा मान लिया है.

  • स्टैंडअलोन स्टोरेज को डी-लाइसेंस किया गया
  • ग्रिड के किसी भी हिस्से पर स्टोरेज लगाने की अनुमति
  • जून 2028 तक ट्रांसमिशन चार्ज में छूट
  • 9,400 करोड़ रुपये की बैटरी स्टोरेज योजना

इन फैसलों से स्टोरेज अब सिर्फ जरूरी ही नहीं, बल्कि मुनाफे वाला सेक्टर भी बन गया है।

कौन बना रहा है भारत का स्टोरेज इकोसिस्टम

बैटरी मैन्युफैक्चरर

Exide Industries बेंगलुरु के पास 6 GWh की लिथियम सेल फैक्ट्री बना रही है.
Amara Raja Energy & Mobility तेलंगाना में 16 GWh की सुविधा पर काम कर रही है.
EPC और इंटीग्रेटर कंपनियां

Larsen & Toubro सोलर-प्लस-स्टोरेज प्रोजेक्ट्स में सक्रिय है.
Servotech Power Systems भी बैटरी स्टोरेज सिस्टम में अपनी पकड़ बढ़ा रही है.
ग्रिड-लेवल स्टोरेज डेवलपर

JSW Energy 2030 तक 40 GWh स्टोरेज का लक्ष्य रखती है.
Tata Power महाराष्ट्र में पंप्ड स्टोरेज प्रोजेक्ट बना रही है.
NTPC और NHPC भी कई राज्यों में प्रोजेक्ट्स ला रही हैं.
सोर्स: Value Research

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