साल के अंत तक रूसी तेल बंद! रिलायंस और नायरा को सीधा झटका, क्या भारत के जेब पर पड़ेगा असर?
भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर एक नई चुनौती मंडरा रही है. अंतरराष्ट्रीय हालात बदल रहे हैं और तेल आपूर्ति पर बड़ा असर पड़ सकता है. इस बीच एक ऐसा फैसला लिया गया है, जिसका सीधा असर भारत की जेब, महंगाई और तेल कंपनियों पर पड़ने वाला है. पूरा मामला जानिए.

यूक्रेन के ड्रोन हमलों से परेशान होकर रूस ने इस साल के अंत तक तेल निर्यात पर रोक लगा दी है. यह फैसला भारत जैसे देशों के लिए चिंता का विषय है, जो रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है. रूसी डिप्टी प्राइम मिनिस्टर अलेक्जेंडर नोवाक ने घोषणा की कि देश पेट्रोल और डीजल के निर्यात पर साल के अंत तक पूर्ण प्रतिबंध लगाएगा. इस फैसले से भारत की ऊर्जा जरूरतों पर गंभीर प्रभाव पड़ने की संभावना है.
भारत की रूसी तेल पर निर्भरता
भारत अपनी कुल तेल आवश्यकताओं का 85 फीसदी आयात करता है और रूस इसका सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है. 2022 के यूक्रेन युद्ध के बाद, भारत का रूसी कच्चे तेल का आयात तेजी से बढ़ा है. 2021 में जहां रूसी तेल की हिस्सेदारी 2 फीसदी से भी कम थी, वहीं 2024-25 में यह 36 फीसदी तक पहुंच गई है. भारत सालाना लगभग 1.8 मिलियन बैरल प्रतिदिन रूसी तेल खरीदता है, जो देश की ऊर्जा जरूरतों का एक तिहाई हिस्सा है.
फैसले का तत्काल प्रभाव
रूस के इस फैसले से वैश्विक ईंधन की आपूर्ति में तनाव बढ़ेगा. हालांकि यह प्रतिबंध मुख्यतः पेट्रोल और डीजल के निर्यात पर है, कच्चे तेल पर नहीं, फिर भी इसका असर भारत पर पड़ेगा. डीजल की वैश्विक कीमतें पहले ही 25-30 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ चुकी हैं, जो 2022 के मध्य के बाद से सबसे अधिक है. यह बढ़त भारतीय रिफाइनरियों के मार्जिन को प्रभावित करेगी और आखिरकार उपभोक्ताओं पर इसका बोझ पड़ सकता है.
रिफाइनरी सेक्टर पर असर
भारत की सबसे बड़ी निजी रिफाइनरियां, रिलायंस इंडस्ट्रीज और नयारा एनर्जी रूसी तेल पर सबसे ज्यादा निर्भर हैं. रिलायंस की जामनगर रिफाइनरी अपनी कुल जरूरत का 50 फीसदी रूसी तेल से पूरा करती है. नायरा एनर्जी, जिसमें रूसी तेल कंपनी रोसनेफ्ट की 49 फीसदी हिस्सेदारी है, अपनी 72 फीसदी जरूरत रूसी तेल से पूरी करती है. इन कंपनियों को अब वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश करनी पड़ सकती है.
तेल भंडार की भूमिका और आर्थिक प्रभाव
भारत के पास वर्तमान में 5.33 मिलियन मीट्रिक टन का रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार है, जो केवल 8-9 दिन की जरूरत पूरी कर सकता है. सरकार छह नई साइटों पर रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (SPR) बढ़ाने की योजना बना रही है ताकि 90 दिन की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके. यह संकट के समय में एनर्जी सिक्येरिटी देने में मदद करेगा.
रूसी तेल आयात से भारत को सालाना $2.5-13 अरब डॉलर की बचत हुई है. बाजार जानकारों का मानना है कि अगर रूसी तेल की आपूर्ति में कमी आती है, तो कच्चे तेल की कीमतें $90-100 प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं. इससे भारत का ईंधन आयात बिल बढ़ेगा और महंगाई दर पर प्रभाव पड़ेगा. पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि से आम जनता पर सीधा असर होगा.
वैकल्पिक आपूर्ति के विकल्प
भारत को रूसी तेल की कमी को पूरा करने के लिए कई विकल्पों पर विचार करना होगा. मध्य पूर्वी देश जैसे इराक, सऊदी अरब और UAE अभी भी भारत के प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं. इराक भारत को प्रतिदिन 898,000 बैरल तेल देता है, जबकि सऊदी अरब 640,000 बैरल प्रतिदिन की आपूर्ति करता है. अमेरिकी तेल का आयात भी 2025 की पहली छमाही में 50 फीसदी बढ़ा है.
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भारत सरकार को अब एक संतुलित ऊर्जा नीति अपनानी होगी. विभिन्न देशों से तेल आयात को बढ़ाना, रणनीतिक भंडार का विस्तार करना और रिफाइनरी क्षमता को बढ़ाना जरूरी होगा. साथ ही वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर भी ध्यान देना जरूरी है. भारत की कुल रिफाइनरी क्षमता 256.8 मिलियन टन सालाना है और इसे 2028 तक 6.19 मिलियन बैरल प्रतिदिन तक बढ़ाने की योजना है.
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