Silver Rally हाइप या रियलिटी? कीमतें चढ़ीं, उम्मीदें बढ़ीं, सवाल वही- यह मौका या जोखिम भरा नया ट्रैप?

सिल्वर में आई तेज रैली ने निवेशकों का ध्यान खींचा है, लेकिन सवाल बड़ा है कि क्या यह असली ताकत है या सिर्फ हाइप. इंडस्ट्रियल डिमांड, टाइट सप्लाई और ग्रीन एनर्जी थीम इसे सपोर्ट दे रहे हैं, जबकि वोलैटिलिटी और टाइमिंग रिस्क अभी भी ऊंचे हैं. जानें क्या सिल्वर आपके पोर्टफोलियो में जगह बना सकता है और कितना अलोकेशन सही रहेगा.

चांदी में मौका या धोखा Image Credit: money9live/CanvaAI

सिल्वर प्राइस में पिछले कुछ महीनों में इतनी तेजी से चमक आई है कि कई निवेशक इसे नए ‘मल्टीबैगर मेटल’ की तरह देख रहे हैं. लेकिन हर रैली के पीछे एक सच्चाई होती है और हर सच्चाई के पीछे एक चेतावनी. सालों तक तिजोरियों के एक कोने में पड़ी रहने वाली यह धातु अचानक निवेश का इतना बड़ा सवाल बन गई है कि चांदी में निवेश से चूकने वाले लोग FOMO के शिकार हो रहे हैं. क्योंकि, चांदी ने इस साल बंपर रिटर्न दिया. अक्टूबर में जब चांदी का भाव शीर्ष पर था, तो 70% से ज्यादा रिटर्न आ चुका था. चांदी में निवेश को लेकर लोगों में इतना क्रेज था कि सिल्वर की डिमांड पूरी नहीं होने की वजह से तमाम ETF ने नए निवेश लेने से इन्कार कर दिया.

बहरहाल, अभी लोगों के दिमाग से अक्टूबर की रैली का खुमार उतरा भी नहीं है. कई ब्रोकरेज और रिसर्च फर्म ने दावा किया है कि चांदी में फिर से एक रैली देखने को मिल सकती है. मसलन, Emkay Wealth Management की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आने वाले दिनों में सिल्वर की कीमतें 25% तक उछलकर 62 डॉलर प्रति आउंस के नए ऑल टाइम हाई को छू सकती हैं. फिलहाल, यहां जानते हैं सिल्वर की रैली में हाइप ज्यादा है या हकीकत?

सबको रैली दिख रही है

सिल्वर की कीमतों ने जिस तेजी से छलांग लगाई है, उसने खुद ही शोर पैदा किया है. लोग चार्ट फॉरवर्ड कर रहे हैं, रिटर्न्स के स्क्रीनशॉट घूम रहे हैं और सोशल मीडिया पर इसे मल्टीबैगर मेटल बताया जा रहा है. तरह-तरह के दावे हैं, मसलन ‘गोल्ड से सस्ता है, इसलिए आगे जगह है’, ‘ग्रीन एनर्जी सिल्वर को उड़ाएगी’, ‘यह गोल्ड से तेज भागता है’. ये तर्क सुनने में इतने आसान और आकर्षक लगते हैं कि हर निवेशक खुद को सही समय पर सही जगह समझने लगता है. तेज कीमतें हमेशा भीड़ खींचती हैं, और सिल्वर इसकी एक मिसाल है.

क्या है रैली की हकीकत?

सिल्वर की प्राइस में कई बार तेज ग्रोथ आती है, लेकिन उसी रफ्तार से दाम गिर भी जाते हैं. 10 से 20 फीसदी का करेक्शन सिल्वर में आम बात है. वेस्टेड फाइनेंस के पार्थ पारिख बताते हैं कि सिल्वर असल में गोल्ड की तरह शांत नहीं रहती, इसकी चाल इंडस्ट्रियल डिमांड से जुड़ी होती है. अगर ग्लोबल इकोनॉमी धीमी हुई या मैन्युफैक्चरिंग चेन हिली, तो सिल्वर गोल्ड से पहले ठहर जाता है. इसके अलावा फिजिकल सिल्वर को स्टोर करना मुश्किल है, बेचने पर भारी प्रीमियम देना पड़ता है. वहीं, डिजिटल ऑप्शंस में प्लेटफॉर्म रिस्क रहता है. ये सभी बातें लोगों को, तभी याद आती हैं, जब चार्ट उल्टा होने लगता है. रैली देखने वालों से ज्यादा झटका उन लोगों को लगता है जो रैली के बाद एंट्री लेते हैं.

ग्रीन एनर्जी की कहानी ने बढ़ाया भरोसा

निवेशक मानते हैं कि सोलर, EV, 5G और इलेक्ट्रॉनिक्स से जुड़े तमाम इक्विपमेंट्स में सिल्वर का भारी इस्तेमाल होता है, जिससे इसकी मांग लंबे समय तक बढ़ती रहेगी. यह थीम सुनने में नई और तर्कों के आधार पर मजबूत लगती है. इसे फ्यूचर ग्रोथ की तरह बेचा जा रहा है, इसलिए लोग इसे लॉन्ग-टर्म अपॉर्च्युनिटी मान लेते हैं. लेकिन, यह हाइप उस भरोसे पर टिकी है कि इंडस्ट्रियल सिल्वर की खपत लगातार बढ़ती रहेगी.

डिमांड बेस ताकत में बड़ा रिस्क

सिल्वर की ताकत और कमजोरी दोनों उसकी इंडस्ट्रियल डिमांड से आती हैं. यही डिमांड इसे चढ़ाती भी है और वही गिराती भी. मंदी, सप्लाई चेन झटके या किसी टेक्नोलॉजी में बदलाव से सिल्वर की मांग तुरंत ठंडी पड़ सकती है. गोल्ड की तरह यह सेफ हेवन नहीं है. क्योंकि, इसकी खुद की उतनी ज्यादा इंट्रिंसिक वैल्यू नहीं है, जितनी गोल्ड की है. इसे इकोनॉमिक सायकल की ठंड-गर्मी सबसे पहले लगती है. यही वह हिस्सा है, जिसे चर्चा में सबसे कम बताया जाता है, लेकिन जोखिम में सबसे ज्यादा वजन रखता है.

लोग मान रहे इस बार रैली अलग

हर तेजी में भीड़ यही मानती है कि पिछली बार से यह अलग है. इस बार कारण नए हैं, डिमांड थीम नई है और कहानी लंबी है. यही धारणा हर चढ़ते एसेट को ज्यादा आकर्षक बना देती है. लोग चाहते हैं कि यह रैली उनके पोर्टफोलियो को बदल दे. बहरहाल, सिल्वर में भले तेज चमक दिख रही है. लेकिन यह किसी पोर्टफोलियो को रिपेयर नहीं कर सकता. इसका रोल छोटा और सीमित है. पोर्टफोलियो में इसकी हिस्सेदारी 2 से 5 फीसदी के आसपास ही रहनी चाहिए. इससे ज्यादा एक्सपोजर पोर्टफोलियो को अस्थिर कर सकता है. गोल्ड अब भी भारतीय परिवारों के लिए मुख्य आकर्षण है, सिल्वर हमेशा इसके सपोर्टिंग रोल में है. इसे रैली देखकर खरीदना फायदेमंद नहीं, जरूरत देखकर खरीदना जरूरी है.

कैसे करें निवेश?

ज्यादातर एक्सपर्ट बताते हैं कि सिल्वर में निवेश करने का सबसे सही तरीका डिसिप्लिन के साथ छोटी और सोच-समझकर बनाई गई रणनीति अपनाना है. इसमें 2–5% का सीमित अलोकेशन ही रखें, ताकि पोर्टफोलियो अस्थिर न हो, फिजिकल की बजाय ETF या फंड ऑफ फंड जैसे क्लीन विकल्प चुनें, ऊंची कीमतों पर लंपसम खरीदने की बजाय धीरे-धीरे निवेश बढ़ाएं और हर खरीद से पहले यह तय करें कि आपका मकसद डायवर्सिफिकेशन है, कोई थीमेटिक दांव है या सिर्फ बाजार की चर्चा का असर. सिल्वर में तेजी असली है, लेकिन उसी तेजी ने जोखिम भी बढ़ा है. सवाल यह नहीं कि सिल्वर आगे चढ़ेगा या नहीं, सवाल यह है कि आपके पोर्टफोलियो में इसकी जगह कितनी होनी चाहिए.

डिस्क्लेमर: Money9live किसी स्टॉक, म्यूचुअल फंड, आईपीओ या कमोडिटी में निवेश की सलाह नहीं देता है. यहां पर केवल जानकारी दी गई है. निवेश से पहले अपने वित्तीय सलाहकार की राय जरूर लें.