आ रही हैं तीन नई एयरलाइन, क्या फ्यूचर में नहीं होगी Indigo जैसी प्रॉब्लम! जानें क्यों बिखर जाते हैं बड़े-बड़े दिग्गज

क्षेत्रीय एयरलाइंस और छोटे शहरों को जोड़ने वाले रूट भारत में एक शानदार बाजार हो सकते हैं. सरकार की मदद एवं नई मंजूरी इस दिशा में अच्छा कदम लगता है. लेकिन सिर्फ जुगाड़ और तात्कालिक उपायों से एयरलाइंस नहीं चलतीं. वरना नई कंपनियां भी आसमान में उड़ने का सिर्फ सपना ही देखती रह जाएंगी.

भारत में 3 नई एयरलाइंस की एंट्री

Three New Airlines And Challenge for Indigo And Air India: भारत में खबरों का सुर भी शेयर भी बाजार की तरह उतार-चढ़ाव वाला रहता है. अभी दिसंबर के पहले हफ्ते में इंडिगो द्वारा मचाई गई लापरवाही और उसकी वजह से लाखों यात्रियों की परेशानियों से पूरे देश में गुस्सा था. आम आदमी से लेकर सरकार की भृकुटियां तनी हुई थीं. लग रहा था कि एविएशन सेक्टर में कुछ आमूल-चूल बदलाव होगा और पैसेंजर्स ही भगवान होगा. न्यू ईयर के करीब-करीब आते-आते वो गुस्सा इंडिगो की उड़ाने सामान्य होने से थम गया है. और अब एक नई खबर आई है. देश में तीन नई एयरलाइंस उड़ान भरने को तैयार हैं. केंद्र सरकार ने दो नई एयरलाइंस Al Hind Air और Fly Express को ऑपरेशन की मंजूरी देते हुए NOC जारी कर दिया है, जबकि Shankh Air के 2026 में उड़ानें शुरू करने की संभावना है. सरकार का दावा है कि इन तीन एयरलाइंस से देश के एविएशन बाजार में प्रतिस्पर्धा और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी बढ़ेगी.

तीसरा सबसे बड़ा बाजार फिर भी दर्जनों कंपनियां हो चुकी हैं फेल

इस सवाल का जवाब बहुत जटिल है, क्योंकि ये इंडस्ट्री बेहद खर्चीली और कम मार्जिन वाली है. भारत जैसे प्राइस सेंसिटिव मार्केट में यह दबाव और बढ़ जाता है. इस पर कंपनियों पर टैक्स का भी भारी बोझ है. एयरलाइंस के खर्च में सबसे बड़ी हिस्सेदारी होती है ATF (एयर टर्बाइन फ्यूल) की. भारत में ATF पर टैक्स (VAT/Excise) इसे दुनिया के कई देशों की तुलना में 30-40% तक महंगा बनाते हैं. इस तरह टिकट बेचने से जो कमाई होती है वह अक्सर बेसिक खर्च भी कवर नहीं कर पाती है.

  • भारतीय बाजार में किराया बढ़ाना मुश्किल है, क्योंकि यात्री टिकट की कीमत को लेकर बेहद संवेदनशील हैं. इसलिए कंपनियां लो कॉस्ट मार्जिन पर पर उड़ान भरती हैं. यह मॉडल तब चरमरा जाता है जब जरा सी भी अड़चन आ जाए. जैसे पायलट स्ट्राइक, मेंटेनेंस देरी या फ्यूल की कीमतों में अचानक उछाल आ जाना.
  • भारत में पायलटों और तकनीकी विशेषज्ञों की भारी कमी है. थकान और FDTL नियमों पर विवाद है. बड़ी एयरलाइंस अनुभवी पायलटों को खींच लेती हैं. परिणाम यह होता है कि छोटी और नई एयरलाइंस लॉजिस्टिक शेड्यूल संभाल नहीं पातीं, और कैंसिलेशन बढ़ते हैं.
  • इसके अलावा विमानों का मरम्मत और रख-रखाव महंगा है. उलटे पर्याप्त विमान नहीं और विदेशी विमान निर्माताओं पर निर्भरता भी ज्यादा है.
एयरलाइंस का नामऑपरेशन का समयस्थितिकारण (मुख्य)
NEPC Airlines1993–1997बंदवित्तीय संकट, फंड की कमी
Damania Airways1993–1997बंदउच्च लागत, घाटा
East West Airlines1992–1996बंदआर्थिक नुकसान, प्रबंधन संकट
Modiluft1993–1997बंदनियामक विवाद एवं फंड की कमी
Sahara Airlines (JetLite)1993–2007 → Jet Airways द्वारा अधिग्रहितबंदअधिग्रहण के बाद एकीकरण
Deccan Aviation / Air Deccan2003–2008 → Kingfisher Red में शामिलबंद (विलय)उच्च घाटा, अधिग्रहण
Paramount Airways2005–2010बंदलीज़ विवाद, कानूनी केस
Kingfisher Airlines2005–2012बंद₹9,000 करोड़ का कर्ज़, दिवालियापन
Air Pegasus2014–2016बंदवित्तीय संकट
Air Carnival2016–2017बंदफंडिंग की कमी
Zoom Air2017–2023DGCA ने लाइसेंस रद्द कियासुरक्षा और संचालन संबंधी मुद्दे
Jet Airways1993–2019बंद (पुनर्जीवित होने की कोशिश)कर्ज़, वित्तीय भंग
Go First (GoAir)2005–2023 (संचालन निलंबित)दिवालियापन प्रक्रियाPratt & Whitney इंजन विवाद, नुकसान

भारत में क्यों फेल हो जाती हैं एयरलाइन

इस सवाल का जवाब बहुत जटिल है. क्योंकि ये इंडस्ट्री बेहद खर्चीली और कम मार्जिन वाली है. भारत जैसे प्राइस सेंसिटिव मार्केट में यह दबाव और बढ़ जाता है. इस पर कंपनियों पर टैक्स का भी भारी बोझ है. एयरलाइंस के खर्च में सबसे बड़ी हिस्सेदारी होती है ATF (एयर टर्बाइन फ्यूल) की होती है. भारत में ATF पर टैक्स (VAT/Excise) इसे दुनिया के कई देशों की तुलना में 30-40% तक महंगा बनाते हैं. इस तरह टिकट बेचने से जो कमाई होती है, उससे अक्सर बेसिक खर्च भी कवर नहीं हो पाता है.

चुनौतीक्या जरूरी
ATF महंगाGST लाने की मांग तेज़ (28% slab की चर्चा)
पायलट की कमीट्रेनिंग स्कूलों व FTO को बढ़ावा
MRO लागतदेश में MRO हब बनाने की जरूरत
लीजिंग निर्भरताभारत में लीजिंग कंपनियों को बेसिंग की नीति
स्लॉट का संकटसेकेंडरी एयरपोर्ट रणनीति

उड़ान स्कीम उम्मीद पर चुनौतियों से भरपूर

ऐसी संभावना है कि Al Hind Air, FlyExpress और Shankh Air उड़ान स्कीम के तहत अपना आपरेशन शुरू कर सकती हैं. UDAN के तहत सरकार छोटे शहरों को हवाई नेटवर्क से जोड़ने पर सब्सिडी देती है.इसके तहत छोटे शहरों को जोड़ने वाले रूट भारत में एक शानदार बाजार बन सकते हैं. 2016 में शुरू होने के बाद से UDAN योजना ने भारत के विमानन क्षेत्र में अहम भूमिका निभाई है. भारत में आपरेशनल हवाई अड्डों की संख्या 2014 के 74 से बढ़कर 2024 में 160 से अधिक हो गई. अब तक 625 से अधिक रूट शुरू किए जा चुके हैं. अब तक 1.49 करोड़ से अधिक यात्री सस्ती हवाई सेवाओं का लाभ उठा चुके हैं.

नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू ने कहा है कि अगले 10 वर्षों में भारत में कम से कम 4 करोड़ नए नागरिकों को हवाई यात्रा के नेटवर्क से जोड़ा जाएगा. इसके लिए केंद्र सरकार UDAN (उड़े देश का आम नागरिक) योजना को तेजी से विस्तार देने की तैयारी में है. सरकार 120 नए लोकेशनों को UDAN रूट मैप में शामिल करने जा रही है. ये प्लानिंग एयरलाइन इंडस्ट्री की सेहत मजबूत करने में कारगर हैं. लेकिन कैग की रिपोर्ट कई चुनौतियों को भी सामने लाती है.

  • कैग की 2023 में आई रिपोर्ट के अनुसार, उस वक्त तक शुरू किए गए रूट में से सिर्फ 7% रूट ही तीन साल की सब्सिडी अवधि के बाद भी चल पाने में सक्षम हैं.
  • कुल 774 रूट्स में से 52 प्रतिशत (403 रूट्स) पर उड़ान सेवाएं शुरू ही नहीं हो पाईं.
  • शुरू की गई 371 रूट्स में से केवल 112 रूट्स (30 प्रतिशत) ने तीन साल की पूरी रियायत अवधि सफलतापूर्वक पूरी की है.
  • उन 112 रूट्स में से भी केवल 54 रूट्स ही मार्च 2023 तक तीन साल की रियायत अवधि के बाद भी संचालन बनाए रखने में सफल हो सके.
विवरण / ParticularsUDAN-1 (मार्च 2017)UDAN-2 (जनवरी 2018)UDAN-3 (फरवरी 2019)कुल
तीन वर्ष पूरे होने से पहले आपरेशन बंद हुए मामलों की संख्या187843139
तीन वर्ष का आपरेशन अवधि पूरी करने वाले मामलों की संख्या363640112
तीन वर्ष पूरे होने के बाद आपरेशन बंद हुए मामलों की संख्या26141858
तीन वर्ष बाद भी आपरेशन जारी रखने वाले मामलों की संख्या10222254
मार्च 2023 तक आपरेशन में मौजूद रूट्स की संख्या1260102174
शुरू किए गए कुल रूट्स की तुलना में आपरेशनल रूट्स का प्रतिशत21.43%39.47%62.58%46.90% (174 में से 371)
कुल मंजूर (दिए गए) रूट्स की तुलना में आपरेशनल रूट्स का प्रतिशत9.09%19.29%30.82%22.48% (774 में से 174)

क्षेत्रीय एयरलाइंस और छोटे शहरों को जोड़ने वाले रूट भारत में एक शानदार बाजार हो सकते हैं. सरकार की मदद एवं नई मंजूरी इस दिशा में अच्छा कदम लगता है. लेकिन सिर्फ जुगाड़ और तात्कालिक उपायों से एयरलाइंस नहीं चलतीं. काफी कुछ करना बाकी है, वरना नई कंपनियां भी आसमान में उड़ने का सिर्फ सपना ही देखती रह जाएंगी.