तुर्किये को लगेगा एक और झटका, कालीन के बिजनेस में कर रहा है खेल, अब रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की मांग

तुर्किये के मशीन से बने कालीनों पर भारत सरकार से रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की मांग तेज हो गई है. कारपेट एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (CEPC) ने बताया कि तुर्किये भारतीय कालीनों पर 46% शुल्क लगाता है, जबकि भारत केवल 20%. इस असंतुलन से भारत के कारीगरों और कालीन निर्यात को नुकसान हो रहा है. भारत में तुर्की सामान के खिलाफ गुस्से और व्यापार घाटे को देखते हुए यह मांग सरकार तक पहुंचाई गई है.

तुर्किये के मशीन से बने कालीनों पर भारत सरकार से रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की मांग तेज हो गई है. Image Credit: FREE PIK

Carpet Trade Turkiye Tariffs: भारत-पाकिस्तान संघर्ष में तुर्किये का पाक का साइड लेना महंगा पड़ता जा रहा है. जहां एक तरफ उसके प्रोडक्ट का देश में बहिष्कार का मुहिम चल रही है, तो वहीं सरकार ने 15 मई को उसकी सिविल एविएशन से जुड़ी कंपनी सेलेबी का लाइसेंस कैंसिल कर दिया. अब उसे एक और जोरदार झटका लग सकता है. दरअसल, कारपेट एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ने भारत सरकार से मांग की है कि आयात होने वाले मशीन से बने कालीनों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया जाए. अगर ऐसा होता है, तो उसके कालीन भारत में पहले से महंगे हो जाएंगे और बिक्री घट सकती है.

क्यों उठा ये मुद्दा

पाकिस्तान का साथ देने की वजह से देश में तुर्किये के खिलाफ आम जनमानस में नाराजगी देखी जा रही है. लोग उसके प्रोडक्ट का बहिष्कार कर रहे हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया के रिपोर्ट के मुताबिक, कारपेट एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (CEPC) ने सरकार से तुर्किये के कारपेट पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की मांग की है. भारत में तुर्किये के कालीनों पर सिर्फ 20 फीसदी टैरिफ लगता है, जबकि तुर्किये में भारत के कालीनों पर 46 फीसदी टैरिफ लगता है. इसके वजह से भारत की कालीन इंडस्ट्री को घाटा हो रहा है.

सरकार से संरक्षण की मांग

इस मामले में CEPC काउंसिल के चेयरमैन कुलदीप आर. वट्टल के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने भदोही के सांसद विनोद बिंद की मौजूदगी में केंद्रीय राज्य वाणिज्य मंत्री जितिन प्रसाद से मुलाकात की और अपनी मांग रखी. व्यापारियों की मांग है कि सरकार रेसिप्रोकल टैरिफ लगाकर देश के अंदर कालीन उद्योग को प्रतिस्पर्धा से राहत दे.

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भारत को हो रहा है घाटा

भारत और तुर्किये के बीच होने वाले कालीन व्यापार में भारत को घाटा हो रहा है. 2015 में जहां भारत से तुर्किये को 17.08 मिलियन डॉलर का कालीन निर्यात होता था, यह आंकड़ा 2024-25 में जनवरी तक घटकर मात्र 6.5 मिलियन डॉलर रह गया है. इसी अवधि में तुर्किये से भारत में कालीन आयात 4.2 मिलियन से बढ़कर 13.97 मिलियन (2022-23) और 8.8 मिलियन (2024-25) हो गया है.

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