फोरेक्स रिजर्व एक्सप्रेस में 8 सप्ताह बाद लगा ब्रेक, जानें कितनी गिरावट आई, क्या रही वजह?
पिछले 8 सप्ताह से ताबड़तोड़ तेजी से लगातार नए ऑल टाइम हाई लेवल पार कर रहे फोरेक्स रिजर्व की ग्रोथ पर ब्रेक लग गए हैं. रिजर्व बैंक की तरफ से जारी डाटा के मुताबिक 4 अक्टूबर को खत्म हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है.
23 अगस्त को खत्म हुए सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 674 अरब डॉलर था. इसके बाद लगातार 8 सप्ताह तक विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ता रहा. इस 8 सप्ताह के दौरान भारत के विदेशी मुद्रा कोष में करीब 30 अरब डॉलर से ज्यादा की संपत्तियां जुड़ीं. शुक्रवार को रिजर्व बैंक की तरफ से जारी किए गए डाटा के मुताबिक 4 अक्टूबर को खत्म हुए सप्ताह में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 3 अरब डॉलर से ज्यादा की कमी दर्ज की गई है. हालांकि, यह इसके बाद भी 700 अरब डॉलर के मैजिकल मार्क से ऊपर ही बना हुआ है.
रिजर्व बैंक की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक भारत के विदेशी मुद्रा भंडार 4 अक्टूबर को खत्म हुए सप्ताह में 3.7 अरब डॉलर की कमी आई. इससे भारत का रिजर्व घटकर 701.18 बिलियन डॉलर रह गया. इसके अलावा शुक्रवार को भारतीय रुपये की कीमत डॉलर की तुलना में सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गई है.
भारतीय रिजर्व बैंक नकदी तरलता के प्रबंधन और रुपये के अत्यधिक अवमूल्यन को रोकने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करता है. हालांकि, रिजर्व बैंक की तरफ से रुपये के मूल्य को किसी विशिष्ट विनिमय दर के आधार पर लक्षित कर यह हस्तक्षेप नहीं किया जाता है. रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप का मकसद बाजार के लिए हालात को व्यवस्थित बनाए रखना होता है.
रिजर्व बैंक की तरफ से जारी साप्ताहिक आंकड़ों के मुताबिक इस गिरावट की वजह से विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों (एफसीए) में 3.51 अरब डॉलर की कमी आई है. यह भंडार में रखी गई गैर-अमेरिकी मुद्राओं के मूल्य में उतार-चढ़ाव की वजह से भी होता है. इसके अलावा गोल्ड रिजर्व और विशेष आहरण अधिकार (SDR) में भी मामूली गिरावट देखी गई है.
एफसीए और गोल्ड रिजर्व कमी
गिरावट के बाद फिलहाल एफसीए में 612.6 बिलियन डॉलर जमा हैं. इस दौरान गोल्ड रिजर्व 4 करोड़ डॉलर घटकर 65.76 अरब डॉलर रह गया. एसडीआर में भी 12.3 करोड़ डॉलर की गिरावट के 18.43 अरब डॉलर रह गया है. इसके अलावा आईएमएफ रिजर्व में 3.5 करोड़ डॉलर की गिरावट आई है. यह अब घटकर 4.35 अरब डॉलर रह गया है.
इन वजहों से आई गिरावट
भारतीय मुद्रा के अवमूल्यन और कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि, त्योहारी सीजन के चलते आयात में वृद्धि जैसे कारण इस गिरावट के पीछे बताए जा रहे हैं. इसके अलावा एपसीए में शामिल यूरो, पाउंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी इकाइयों की गणना भी इनके डॉलर के साथ एक्सचेंज मूल्य के आधार पर की जाती है. इस लिहाज से जब इन मुद्राओं की डॉलर की तुलना में कीमत घटती है, तो हमारे विदेशी मुद्रा भंडार के मूल्यांकन में भी कमी आती है.