डिफेंस प्रोजेक्ट के लिए भारत मिला रहा जापान, फ्रांस और UK से हाथ, क्या ये है एयर चीफ की नाराजगी का असर?
भारत की डिफेंस नीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. कई सालों से जिन देशों पर भरोसा किया गया, अब वहां से हटकर भारत नए सहयोगियों की ओर देख रहा है. सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि सरकार को अब दूसरी राह चुननी पड़ी? जवाब चौंकाने वाला है.

India fighter jet engine collaboration: हाल ही में एयर चीफ मार्शल ए.पी. सिंह ने भारतीय रक्षा परियोजनाओं में लगातार हो रही देरी पर गहरी चिंता जताई थी. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि “किसी एक भी परियोजना को समय पर पूरा होते नहीं देखा गया है.” इन टिप्पणियों के बाद अब खबर है कि सरकार ने न सिर्फ मौजूदा ठेकेदार कंपनियों से समझौते पर पुनर्विचार शुरू किया बल्कि विदेशी साझेदारों के साथ मिलकर लड़ाकू विमान इंजनों का सह-विकास करने का रास्ता भी खोजने लगी है. इस कदम के पीछे मुख्य उद्देश्य है रक्षा आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करना और घरेलू तकनीकी आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना.
ए.पी. सिंह की नाराजगी ने खोली कमजोरियां
एयर चीफ मार्शल ए.पी. सिंह ने हाल ही में सार्वजनिक मंच से साफ शब्दों में कहा, “जब एक बार समयरेखा तय हो जाती है, उसके बावजूद भी कोई भी परियोजना समय पर पूरी नहीं होती.” उन्होंने विशेष रूप से हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) पर भी टिप्पणी की, जिसने तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट और अन्य प्रोजेक्ट्स में लगातार देरी की हैं. सिंह ने बताया कि ऐसी देरी से न सिर्फ वायुसेना की तैयारियों पर असर पड़ता है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी जोखिम पैदा होता है.
रूस पर निर्भरता से नई बहुपक्षीय रणनीति की ओर
विगत लगभग चार दशकों से, भारत ने रूस से लड़ाकू विमानों और उनके इंजनों की आपूर्ति पर काफी भरोसा रखा था. हाल के वर्षों में अमेरिका के साथ रक्षा साझेदारियां बढ़ीं, लेकिन अब भारत ने देखा है कि एक ही स्रोत पर निर्भर रहने से आपूर्ति में समस्याएं खड़ी हो सकती हैं. इसी चलते नई साझेदारियां खोजने की पहल हुई है. रक्षा मंत्रालय की ओर से वरिष्ठ अधिकारियों ने ब्लूमबर्ग न्यूज को बताया कि अब यूके, फ्रांस और जापान से बातचीत की जा रही है ताकि भारत घरेलू रूप से वायुसेना के लिए आधुनिक और शक्तिशाली इंजनों का निर्माण कर सके.
तेजस विमानों के लिए GE के F404 और F414 इंजन आपूर्ति में देरी के कारण वायुसेना को कई बार ऑपरेशन शेड्यूल बदलना पड़ा. GE एरोस्पेस पर सरकार ने पेनल्टी भी लगाई, बावजूद इसके समस्या का स्थायी हल नहीं निकला. इसी तरह Su-30MKI एडवांस, ध्रुव हेलिकॉप्टर EASA सर्टिफिकेशन और IMRH हेलिकॉप्टर प्रोजेक्ट में भी वर्षों तक देरी रही है. एयर चीफ सिंह की टिप्पणी इसी निरंतर देरी के कारण हुई.
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ब्रिटेन, फ्रांस और जापान के साथ चर्चाएं
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में बताया गया है कि यूके की रोल्स-रॉयस कंपनी, फ्रांस की सफरान (Safran) और जापान के एक गुप्त साझेदार ने भारत को कई ऑफर दिए हैं. रोल्स-रॉयस ने अप्रैल की शुरुआत में नई दिल्ली से आई रक्षा मंत्रालय की टीम को राजसी स्वागत करते हुए कहा कि वे इंजन को-प्रोडक्शन और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए तैयार हैं.
सफरान ने भी आई.पी.आर. (Intellectual Property Rights) साझा करने के लिए सहमति जताई है, जिससे भारत को अगले पीढ़ी के इंजन डिजाइन में मदद मिलेगी.
AMCA परियोजना में नई उड़ान
इस समय भारत का एक सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है Advanced Medium Combat Aircraft (AMCA) — पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में AMCA के लिए एक नया “एक्सीक्यूशन मॉडल” मंजूर किया है, जिसके तहत HAL के अलावा निजी क्षेत्र और विदेशी कंपनियां भी बोली लगा सकेंगी. प्रारंभिक दिशा-निर्देशों के मुताबिक, पहले दो प्रोटोटाइप अमेरिकी GE F414 इंजन से संचालित होंगे. लेकिन पांच अन्य स्क्वाड्रन के लिए भारत चाहता है कि 110 किलो न्यूटन थ्रस्ट वाले इंजन विदेशी साझेदारों के साथ मिलकर यहां डिजाइन और निर्मित हों.
इन प्रस्तावों का मूल्यांकन रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) करेगा. रिपोर्ट के मुताबिक योजना यह है कि डीआरडीओ जल्द-से-जल्द इन समझौतों पर विचार करे और टास्क फोर्स का गठन कर जल्द प्रोजेक्ट शुरू हो जाए. डीआरडीओ वैज्ञानिकों का मानना है कि विदेशी तकनीक मिलेगी तो भारत की इंजन डिजाइन एवं निर्माण क्षमता अगले 5-7 वर्षों में काफी बेहतर हो सकती है. इससे विदेशी आपूर्ति पर अत्यधिक निर्भरता कम होगी और घरेलू प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी.
वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों के बीच आत्मनिर्भरता की जरूरत
चीन की J-20 और संभावित छठी पीढ़ी के विमानों की प्रगति, साथ ही पाकिस्तान का चीनी J-35A लैस होना, दिल्ली की चिंताओं को और बढ़ा देता है. ऐसी स्थिति में भारत के पास तीन विकल्प हैं: रूस पर भरोसा जारी रखना, अमेरिका से साझेदारी को और मजबूत करना या नए साझेदार खोजकर खुद को विविधवादी बनाना.
रोल्स-रॉयस द्वारा तकनीक हस्तांतरण का ऑफर, सफरान द्वारा IPR साझा करने की पेशकश और जापानी साझेदार से अपेक्षित एडवांस इंजन डिजाइन आने से भारत की एयरोस्पेस ईकोसिस्टम को बहुत लाभ मिलेगा. इससे न केवल AMCA में इस्तेमाल होने वाले इंजन विकसित होंगे, बल्कि भविष्य में भारत अपनी अगली पीढ़ी के प्रोपल्शन सिस्टम का भी डिजाइन और उत्पादन कर सकेगा. इससे लंबी अवधि में नौसैनिक सतर्कता, वायु रक्षा और रणनीतिक ताकत दोनों ही क्षेत्रों में मजबूती आएगी.
अगले कुछ महीनों में डीआरडीओ द्वारा Expression of Interest (EOI) जारी किया जाएगा, जिसमें घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कंपनियां तकनीकी प्रस्ताव जमा करेंगी. इसके बाद टेंडर प्रक्रिया शुरू होगी. अनुमान है कि 2026 के मध्य तक पहला इंजन प्रोटोटाइप तैयार हो सकता है, जो AMCA पायलट विमान के साथ उड़ान भरेगा. पांच स्क्वाड्रन के 100 से अधिक विमान अगले दशक में इन घरेलू-विदेशी इंजनों से न्यस्त होंगे.
रक्षा मंत्रालय ने यह भी संकेत दिए हैं कि निजी क्षेत्र के साथ मिलकर इंजन उत्पादन करने पर कर-रियायतों और वित्तीय सहायता जैसे उपायों पर विचार किया जा रहा है, ताकि प्रारंभिक लागत और रिसर्च-डेवलपमेंट खर्च को भी साझा किया जा सके. इससे भारतीय ईकोसिस्टम में छोटे-छोटे सब- इंडस्ट्र्री और पार्ट सप्लायर्स को भी अवसर मिलेंगे.
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