संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार लाएगी तीन बड़े आर्थिक बिल, बाजार और इंश्योरेंस सेक्टर पर होगा सीधा असर

शीतकालीन सत्र में सरकार तीन बड़े वित्तीय विधेयक पेश करने जा रही है, जिनका असर बाजार से लेकर इंश्योरेंस और दिवालियापन ढांचे तक दिखाई देगा. इन बिलों में क्या बदलाव प्रस्तावित हैं और क्यों इन्हें अहम माना जा रहा है, पूरी जानकारी रिपोर्ट में पढ़ें.

संसद का शीतकालीन सत्र 1 दिसंबर से 19 दिसंबर 2025 तक चलेगा. Image Credit:

केंद्र सरकार ने शुक्रवार को संसद के आगामी शीतकालीन सत्र के लिए जिन महत्वपूर्ण विधेयकों की सूची जारी की है, उनमें वित्तीय क्षेत्र से जुड़े तीन बड़े बिल शामिल हैं. 1 दिसंबर से शुरू हो रहे इस सत्र में सिक्योरिटीज मार्केट, इंश्योरेंस सेक्टर और दिवालियापन ढांचे में बड़े बदलावों को पेश किया जाएगा. इन विधेयकों को केंद्र सरकार देश के वित्तीय सिस्टम को सरल, मजबूत और आधुनिक बनाने की दिशा में अहम कदम मान रही है.

Securities Markets Code Bill

सरकार Securities Markets Code (SMC), 2025 को पेश करने जा रही है, जिसका उद्देश्य शेयर बाजार से जुड़े अलग-अलग कानूनों को एक ही कोड में लाना है. इसमें SEBI Act 1992, Depositories Act 1996 और Securities Contracts (Regulation) Act 1956 को मिलाकर यूनिफाइड कोड बनाने का प्रस्ताव है. इस यूनिफाइड कोड की घोषणा पहली बार केंद्रीय बजट 2021–22 में की गई थी. इसका मकसद निवेशकों, बाजार ब्रोकर्स और रेगुलेटर के लिए नियमों को सरल और अधिक स्पष्ट बनाना है.

Insurance Laws (Amendment) Bill

सरकार Insurance Laws (Amendment) Bill, 2025 भी पेश करेगी, जिसका लक्ष्य देश में बीमा कवरेज बढ़ाना, उद्योग की वृद्धि को गति देना और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार करना है. इस संशोधन के बाद कंपनियों के लिए पूंजी लाना और नए उत्पाद लॉन्च करना आसान हो सकता है.

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Insolvency and Bankruptcy Code (Amendment) Bill

Insolvency and Bankruptcy Code (Amendment) Bill, 2025 को अगस्त में लोकसभा में पेश किया गया था और सेलेक्ट कमेटी को भेजा गया था. इसकी रिपोर्ट का इंतजार है. बिल में creditor-initiated insolvency resolution process (CIIRP) शुरू करने का प्रस्ताव है, जिसमें ऋणदाता खुद दिवालियापन समाधान प्रक्रिया शुरू कर सकेंगे. साथ ही घरेलू समूह दिवालियापन और क्रॉस-बॉर्डर दिवालियापन के लिए भी नए ढांचे बनाने का प्रस्ताव है.

इन तीनों बिलों को वित्तीय क्षेत्र में व्यापक सुधार के रूप में देखा जा रहा है, जिसका असर निवेशकों, कंपनियों और बाजार संचालन पर साफ दिख सकता है.