भारत के रक्षा क्षेत्र के लिए अलादीन का चिराग साबित हो रहा रूस-यूक्रेन युद्ध, जो चाहा मिलता जा रहा
भारत की पहचान दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातक की रही है. यह पहचान भारत के रक्षा क्षेत्र की एक बड़ी कमजोरी को दिखाती है. लेकिन, भारत अब इस पहचान को बदलने की कोशिशों में जुटा है. पिछले कुछ वर्षों में देश के रक्षा उद्योग का आकार और क्षमता तेजी से बढ़ी है. भारत के इस लक्ष्य के लिहाज से रूस-यूक्रेन युद्ध भी फलदायी साबित हो रहा है. आइये जानते हैं कि कैसे यह युद्ध भारत के सपनों को साकार करने में मदद कर रहा है.
भारत जैसे ईंधन और ऊर्जा के भूखे देश को क्या चाहिए, जाहिर तौर पर ढेर सारा किफायती ईंधन. यह काम भारत के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध कर रहा है. इसके अलावा भारत के लिए रक्षा निर्यात के अवसर कौन दे रहा है, यह युद्ध. ऐसे में इस युद्ध को भारत के लिए अलादीन का चिराग कहा जाए, तो गलत नहीं होगा. देश के तीव्र आर्थिक विकास के लिए किफायती ऊर्जा और निर्यात दो अहम स्तंभ हैं. रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से वैश्विक राजनीति में इस तरह के समीकरण बने हैं कि भारत के लिए दोनों तरह के अवसर मिल रहे हैं.
युद्ध के चलते रूस पर तमाम आर्थिक प्रतिबंध लगे हैं. इनकी वजह से रूस अपना कच्चा तेल बेहद कम कीमत पर बेचने को मजबूर है. हालांकि, रूस से तेल खरीदने की सुविधा भी सभी देशों के पास नहीं है. भारत और चीन ही ऐसे देश हैं, जो खुलकर रूस से तेल खरीद रहे हैं. इनमें से भी सिर्फ भारत है, जिसके रास्ते में रूस से तेल खरीदने के चलते अमेरिका और पश्चिमी देशों ने कोई बाधा नहीं डाली है.
रूस के साथ गहरे आर्थिक और रक्षा संबंधों के चलते अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली सहित तमाम बड़े यूरोपीय देशों ने चीन के सामने कई तरह के आर्थिक और व्यापारिक व्यवधान खड़े कर दिए हैं. यही वजह है कि चीन की अर्थव्यवस्था लगातार डगमगा रही है. दुनिया की फैक्ट्री का दर्जा रखने वाले चीन से हर दिन हजारों निवेशक अपनी पूंजी निकाल रहे हैं. इसके एपल सहित तमाम बड़ी कंपनियां चीन से निकलकर भारत में विनिर्माण करने लगी हैं.
मोबाइल, टीवी, लैपटॉप जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बाद अब भारत डिफेंस के क्षेत्र के लिए भी रूस-यूक्रेन युद्ध फलदायी साबित हो रहा है. एंटीक स्टॉक ब्रोकिंग की डिफेंस कॉन्फ्रेंस 3.0 रिपोर्ट के मुताबिक भारत का रक्षा निर्यात 2017 में 1500 करोड़ रुपये था. 2024 में 46% की CAGR से बढ़ते हुए 21 हजार करोड़ पार हो गया है. सरकार की मदद से देश में निजी क्षेत्र की कंपनियां भी रक्षा उद्योग में तेजी से विकास कर रही हैं.
चीन+1 की रणनीति से भारत को लाभ
रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया चीन+1 की रणनीति पर चल रही है. इससे वैश्विक आपूर्ति शृंखला में व्यापक बदलाव हुए हैं. खासतौर पर रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से रक्षा क्षेत्र की आपूर्ति शृंखला भारी अंतराल आया है. इस अंतराल को भरने के लिए भारत को अवसर मिल रहे हैं, जिससे वैश्विक रक्षा उद्योग में भारत की हिस्सेदारी बढ़ रही है.
रक्षा उद्योग के लिए जो चाहिए सब मौजूद
रिपोर्ट में बताया गया है कि देश का दीर्घकालिक लक्ष्य वैश्विक रक्षा विनिर्माण केंद्र बनना है. इसके लिए रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (डीपीएसयू), निजी उद्यमों, स्टार्ट-अप और एमएसएमई को सरकार से पूरा समर्थन मिल रहा है. इस वजह से वैश्विक आपूर्ति शृंखला में जो अंतराल आया है, उससे मिलने वाले अवसरों को भुनाने के लिए भारत के पास एक सुविकसित घरेलू पारिस्थितिकी तंत्र मौजूद है.
एयरोस्पेस रखरखाव का अहम केंद्र बनने की संभावना
रिपोर्ट में बताया गया है कि रक्षा मंत्रालय ने भारतीय रक्षा उद्योग के निजी हिस्सेदारों और वैश्विक मूल उपकरण निर्माताओं (ओईएम) को आकर्षित करने के लिए कई पहल की हैं. इनमें एयरोस्पेस पार्क और रक्षा गलियारे अहम हैं. इसके अलावा एयरोस्पेस रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल (एमआरओ) के क्षेत्र में कम लागत पर तकनीकी विशेषज्ञता उपलब्ध कराने की क्षमता को भी रेखांकित किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि लागत-प्रतिस्पर्धी समाधानों के कारण भारत वैश्विक एयरोस्पेस कंपनियों के लिए रखरखाव और मरम्मत का अहम केंद्र बन सकता है.
2029 तक 3 लाख करोड़ का होगा घरेलू रक्षा उद्योग
सरकार का लक्ष्य 2029 तक घरेलू रक्षा उद्योग के आकार को 3 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ाना है. इसमें निर्यात के लिए 500 अरब रुपये का लक्ष्य रखा गया है. यह वृद्धि एक तरफ सरकार के आयात बिल को कम करेगी. दूसरी तरफ देश को रक्षा उपकरणों का शुद्ध निर्यातक भी बना सकती है. यही वजह है कि आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत मौजूदा वित्त वर्ष में रक्षा क्षेत्र पर पूंजी व्यय का 75 फीसदी घरेलू उद्योगों के लिए आरक्षित रखा है. 2021 में यह 49 फीसदी था.
घरेलू रक्षा उद्योग में 8.3 लाख करोड़ निवेश की तैयारी
रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक राजनीतिक चुनौतियों और अपने सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण की जरूरतों को ध्यान में रखकर भारत घरेलू खरीद में 8.3 लाख करोड़ रुपये के निवेश की योजना बना रहा है. इससे स्थानीय कंपनियों के लिए पर्याप्त व्यावसायिक अवसर मिलेंगे. इसके साथ ही वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भी उल्लेखनीय भागीदारी तय होगी.